YouVersion Logo
Search Icon

विलापगीत 2

2
# 2:0 यह अध्याय एक अक्षरबद्ध कविता है जिसकी पंक्तियां हिब्री वर्णमाला के क्रमिक अक्षरों से आरंभ होती हैं 1हमारे प्रभु ने कैसे अपने कोप में
ज़ियोन की पुत्री को एक मेघ के नीचे डाल दिया है!
उन्होंने इस्राएल के वैभव को
स्वर्ग से उठाकर पृथ्वी पर फेंक दिया है;
उन्होंने अपनी चरण चौकी को
अपने क्रोध के अवसर पर स्मरण न रखा.
2प्रभु ने याकोब के समस्त आवासों को निगल लिया है
उन्होंने कुछ भी नहीं छोड़ा है;
अपने कोप में उन्होंने यहूदिया की पुत्री के
गढ़ नगरों को भग्न कर दिया है.
उन्होंने राज्य तथा इसके शासकों को अपमानित किया है,
उन्होंने उन सभी को धूल में ला छोड़ा है.
3उन्होंने उग्र क्रोध में इस्राएल के
समस्त बल को निरस्त कर दिया है.
उन्होंने उनके ऊपर से अपना सुरक्षा देनेवाला दायां हाथ खींच लिया है,
जब शत्रु उनके समक्ष आ खड़ा हुआ था.
वह याकोब में प्रचंड अग्नि बन जल उठे
जिससे उनके निकटवर्ती सभी कुछ भस्म हो गया.
4एक शत्रु के सदृश उन्होंने अपना धनुष खींचा;
एक विरोधी के सदृश उनका दायां हाथ तत्पर हो गया.
ज़ियोन की पुत्री के शिविर में ही
उन सभी का संहार कर दिया;
जो हमारी दृष्टि में मनभावने थे
उन्होंने अपने कोप को अग्नि-सदृश उंडेल दिया.
5हमारे प्रभु ने एक शत्रु का स्वरूप धारण कर लिया है;
उन्होंने इस्राएल को निगल लिया है.
उन्होंने समस्त राजमहलों को मिटा दिया है
और इसके समस्त गढ़ नगरों को उन्होंने नष्ट कर दिया है.
यहूदिया की पुत्री
में उन्होंने विलाप एवं रोना बढ़ा दिया है.
6अपनी कुटीर को उन्होंने ऐसे उजाड़ दिया है, मानो वह एक उद्यान कुटीर था;
उन्होंने अपने मिलने के स्थान को नष्ट कर डाला है.
याहवेह ने ज़ियोन के लिए उत्सव
तथा शब्बाथ#2:6 शब्बाथ सातवां दिन जो विश्राम का पवित्र दिन है विस्मृत करने की स्थिति ला दी है;
उन्होंने अपने प्रचंड कोप में सम्राट
तथा पुरोहित को घृणास्पद बना दिया है.
7हमारे प्रभु को अब अपनी ही वेदी से घृणा हो गई है
और उन्होंने पवित्र स्थान का त्याग कर दिया है.
राजमहल की दीवारें
अब शत्रु के अधीन हो गई है;
याहवेह के भवन में कोलाहल उठ रहा है
मानो यह कोई निर्धारित उत्सव-अवसर है.
8यह याहवेह का संकल्प था कि
ज़ियोन की पुत्री की दीवारें तोड़ी जाएं.
मापक डोरी विस्तीर्ण कर विनाश के लिए
उन्होंने अपने हाथों को न रोका.
परिणामस्वरूप किलेबंदी तथा दीवार विलाप करती रही;
वे वेदना-विलाप में एकजुट हो गईं.
9उसके प्रवेश द्वार भूमि में धंस गए;
उन्होंने उसकी सुरक्षा छड़ों को तोड़कर नष्ट कर दिया है.
उसके राजा एवं शासक अब राष्ट्रों में हैं,
नियम-व्यवस्था अब शून्य रह गई है,
अब उसके भविष्यवक्ताओं को याहवेह की
ओर से प्रकाशन प्राप्‍त ही नहीं होता.
10ज़ियोन की पुत्री के पूर्वज
भूमि पर मौन बैठे हुए हैं;
उन्होंने अपने सिर पर धूल डाल रखी है
तथा उन्होंने टाट पहन ली है.
येरूशलेम की युवतियों के
सिर भूमि की ओर झुके हैं.
11रोते-रोते मेरे नेत्र अपनी ज्योति खो चुके हैं,
मेरे उदर में मंथन हो रहा है;
मेरा पित्त भूमि पर बिखरा पड़ा है;
इसके पीछे मात्र एक ही कारण है; मेरी प्रजा की पुत्री का सर्वनाश,
नगर की गलियों में
मूर्च्छित पड़े हुए शिशु एवं बालक.
12वे अपनी-अपनी माताओं के समक्ष रोकर कह रहे हैं,
“कहां है हमारा भोजन, कहां है हमारा द्राक्षारस?”
वे नगर की गली में
घायल योद्धा के समान पड़े हैं,
अपनी-अपनी माताओं की गोद में
पड़े हुए उनका जीवन प्राण छोड़ रहे है.
13येरूशलेम की पुत्री,
क्या कहूं मैं तुमसे,
किससे करूं मैं तुम्हारी तुलना?
ज़ियोन की कुंवारी कन्या,
तुम्हारी सांत्वना के लक्ष्य से
किससे करूं मैं तुम्हारा साम्य?
तथ्य यह है कि तुम्हारा विध्वंस महासागर के सदृश व्यापक है.
अब कौन तुम्हें चंगा कर सकता है?
14तुम्हारे भविष्यवक्ताओं ने तुम्हारे लिए व्यर्थ
तथा झूठा प्रकाशन देखा है;
उन्होंने तुम्हारी पापिष्ठता को प्रकाशित नहीं किया,
कि तुम्हारी समृद्धि पुनःस्थापित हो जाए.
किंतु वे तुम्हारे संतोष के लिए ऐसे प्रकाशन प्रस्तुत करते रहें,
जो व्यर्थ एवं भ्रामक थे.
15वे सब जो इस ओर से निकलते हैं
तुम्हारी स्थिति को देखकर उपहास करते हुए;
येरूशलेम की पुत्री पर
सिर हिलाते तथा विचित्र ध्वनि निकालते हैं:
वे विचार करते हैं, “क्या यही है वह नगरी,
जो परम सौन्दर्यवती
तथा समस्त पृथ्वी का उल्लास थी?”
16तुम्हारे सभी शत्रु तुम्हारे लिए अपमानपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हुए;
विचित्र ध्वनियों के साथ दांत पीसते हुए उच्च स्वर में घोषणा करते हैं,
“देखो, देखो! हमने उसे निगल लिया है! आह, कितनी प्रतीक्षा की है हमने इस दिन की;
निश्चयतः आज वह दिन आ गया है आज वह हमारी दृष्टि के समक्ष है.”
17याहवेह ने अपने लक्ष्य की पूर्ति कर ही ली है;
उन्होंने अपनी पूर्वघोषणा की निष्पत्ति कर दिखाई;
वह घोषणा, जो उन्होंने दीर्घ काल पूर्व की थी.
जिस रीति से उन्होंने तुम्हें फेंक दिया उसमें थोड़ी भी करुणा न थी,
उन्होंने शत्रुओं के सामर्थ्य को ऐसा विकसित कर दिया,
कि शत्रु तुम्हारी स्थिति पर उल्‍लसित हो रहे हैं.
18ज़ियोन की पुत्री की दीवार
उच्च स्वर में अपने प्रभु की दोहाई दो.
दिन और रात्रि
अपने अश्रुप्रवाह को उग्र जलधारा-सदृश
प्रवाहित करती रहो;
स्वयं को कोई राहत न दो,
और न तुम्हारी आंखों को आराम.
19उठो, रात्रि में दोहाई दो,
रात्रि प्रहर प्रारंभ होते ही;
जल-सदृश उंडेल दो अपना हृदय
अपने प्रभु की उपस्थिति में.
अपनी संतान के कल्याण के लिए
अपने हाथ उनकी ओर बढ़ाओ,
उस संतान के लिए, जो भूख से
हर एक गली के मोड़ पर मूर्छित हो रही है.
20“याहवेह, ध्यान से देखकर विचार कीजिए:
कौन है वह, जिसके साथ आपने इस प्रकार का व्यवहार किया है?
क्या यह सुसंगत है कि स्त्रियां अपने ही गर्भ के फल को आहार बनाएं,
जिनका उन्होंने स्वयं ही पालन पोषण किया है?
क्या यह उपयुक्त है कि पुरोहितों एवं भविष्यवक्ताओं का संहार
हमारे प्रभु के पवित्र स्थान में किया जाए?
21“सड़क की धूलि में
युवाओं एवं वृद्धों के शव पड़े हुए हैं;
मेरे युवक, युवतियों का संहार
तलवार से किया गया है.
अपने कोप-दिवस में
आपने उनका निर्दयतापूर्वक संहार कर डाला है.
22“आपने तो मेरे आतंकों का आह्वान चारों ओर से इस ढंग से किया,
मानो आप इन्हें किसी उत्सव का आमंत्रण दे रहे हैं.
यह सब याहवेह के कोप के दिन हुआ है,
इसमें कोई भी बचकर शेष न रह सका;
ये वे सब थे, जिनका आपने अपनी गोद में रखकर पालन पोषण किया था,
मेरे शत्रुओं ने उनका सर्वनाश कर दिया है.”

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in