यशायाह 42
42
प्रभु का सेवक
1यह है मेरा सेवक! इसको मैं सम्भाले
हुए हूं।
यह मेरा मनोनीत है! इससे मैं प्रसन्न हूं।
मैंने इसको अपना आत्मा प्रदान किया है,
जिससे वह राष्ट्रों में न्याय की स्थापना करे।#यश 49:3; 50:10; 52:13; मत 12:18; 3:17; 17:5; यश 11:2
2वह न चिल्लाएगा,
और न ऊंचे स्वर में शोर मचाएगा,
वह न गली-कूचों में आवाज देगा।
3वह मुड़े हुए सरकंडे को तोड़ेगा नहीं,
वह टिमाटिमाते हुए दीपक को बुझाएगा
नहीं।
वह सच्चाई से न्याय की स्थापना करेगा।
4जब तक वह पृथ्वी पर
न्याय की स्थापना नहीं कर लेगा
तब तक उसका उत्साह बुझेगा नहीं,
वह हिम्मत नहीं हारेगा।
द्वीप उसके धर्म-नियमों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
5प्रभु परमेश्वर, जिसने आकाश को बनाया
और उसको विस्तृत फैलाया है,
जिसने पृथ्वी और उस पर होनेवाली
प्रत्येक वस्तु की रचना की है;
जो पृथ्वी के सब लोगों में प्राण डालता है,
जो पृथ्वी पर विचरनेवालों को आत्मा प्रदान
करता है,
वह यों कहता है:#प्रे 17:25 6‘मैं प्रभु हूं;
मैंने तुझे धार्मिक अभिप्राय से बुलाया है।
मैंने तेरा हाथ थामकर तुझे सहारा दिया है।#42:6 अथवा, “मैंने तेरा हाथ थामा, और तुझे गढ़ा है।”
मैंने तुझे कौम#42:6 अथवा, “(अपनी) प्रजा” । के लिए विधान और
राष्ट्रों के लिए ज्योति नियुक्त किया है,#लू 2:32; यो 8:12; प्रे 13:47; 26:23; यश 49:6
7ताकि तू अंधी आंखों को दृष्टि प्रदान करे,
बन्दियों को बन्दीगृह से बाहर निकाले,
कारागार के अंधकार में बैठे हुओं को
बाहर प्रकाश में लाए।#लू 4:18; यो 8:32; प्रे 26:18
8मैं प्रभु हूं, यही मेरा नाम है,
मैं अपनी महिमा दूसरों को न दूंगा,
जो स्तुति मुझे अर्पित की जाती है,
वह मैं गढ़ी हुई मूर्तियों को नही दूंगा।
9देख, पुरानी बातें पूरी हो चुकीं,
अब मैं नई बातें घोषित करता हूं,
उनके होने से पहले ही
मैं तुझे उनके विषय में सुना रहा हूं।’
प्रभु की कृपा से प्राप्त विजय
10प्रभु के लिए नया गीत गाओ।
पृथ्वी के सीमान्तों तक उसकी स्तुति गूंज
उठे।
सागर और उसके सब जलचर,
भूमध्यसागर तट के सब द्वीपों के निवासी,
प्रभु की स्तुति गाएँ।#प्रक 5:9
11मरुस्थल और उसके नगर,
केदार के ग्रामवासी उच्च स्वर में गाएँ,
सेला के रहनेवाले जयजयकार करें,
वे पहाड़ के शिखरों से जयघोष करें।
12वे प्रभु की महिमा करें,
वे भूमध्यसागर के तटवर्ती द्वीपों में
उसका गुणगान करें।
13प्रभु महायोद्धा के सदृश
बाहर निकल रहा है;
सशक्त सैनिक के समान
वह अपने क्रोध को उभाड़ रहा है।
वह युद्ध-नाद करता है,
वह ऊंची आवाज में
अपने बैरियों को ललकारता है;
वह अपने शत्रुओं पर
अपना महाबल प्रकट करता है:#गण 10:35; शास 5:4
14‘मैं बहुत समय तक चुप रहा,
मैं शांत रहा, और अपने को रोकता रहा।
परन्तु अब मैं प्रसव-पीड़ित स्त्री की तरह
चिल्लाऊंगा,
मैं हांफ-हांफ कर सांस भरूंगा।
15मैं पर्वतों और पहाड़ियों को उजाड़ दूंगा,
मैं उनकी समस्त वनस्पति को सुखा दूंगा।
मैं नदियों को द्वीप बना दूंगा;
मैं तालाबों को सुखा दूंगा।
16मैं अनजान मार्ग पर अंधों का मार्ग-दर्शन
करूंगा,
मैं अपरिचित राह पर उनका पथ-प्रदर्शन
करूंगा।
मैं उनके सम्मुख अंधकार को प्रकाश में
बदल दूंगा,
ऊबड़-खाबड़ स्थानों को समतल मैदान
बना दूंगा।
मैं यह सब आश्चर्यपूर्ण कार्य करूंगा,
और उनको कभी नहीं त्यागूंगा।
17जो गढ़ी हुई मूर्तियों को ईश्वर मानते हैं,
और उन पर भरोसा करते हैं;
जो ढली हुई मूर्तियों से यह कहते हैं
“तुम ही हमारे देवी-देवता हो” ,
वे पीठ दिखाएंगे, वे पूर्णत: लज्जित होंगे।’
अवज्ञाकारियों को चेतावनी
18प्रभु कहता है: ‘ओ बहरो, सुनो;
ओ अंधो, आंखें खोलो, जिससे तुम देख
सको!
19मेरे सेवक इस्राएल के अतिरिक्त
और कौन अंधा है?
मेरे संदेश-वाहक को छोड़कर
और कौन बहरा है?
मेरे भक्त के तुल्य और कौन अंधा है?
मेरे सेवक के सदृश और कौन बहरा है?#मत 13:9-15
20वह अनेक बातों को देखता है,
किन्तु उन पर ध्यान नहीं देता,
उसके कान खुले तो हैं, पर वह नहीं सुनता।’
21अपनी धार्मिकता के कारण
अपनी व्यवस्था को महिमा देने के लिए,
उसको गौरव प्रदान करने के लिए
प्रभु अपने सेवक इस्राएल से प्रसन्न हुआ था।
22पर वे लोग लुटे हुए हैं,
वे सबके सब मांदों में फंस गए हैं,
वे बन्दीगृह में दुबके बैठे हैं।
वे शिकार हो गए,
उनको छुड़ानेवाला कोई नहीं है।
वे ऐसी लूट हैं, जिनको कोई वापस नहीं
करता!
23तुममें से कौन व्यक्ति,
इन बातों पर कान देता है?
कौन व्यक्ति ध्यान देकर
भविष्य की बातों को सुनता है?
24किसने याकूब को लुटेरों के हाथ में सौंपा था?
किसने इस्राएल को डाकुओं के हाथ में दे
दिया था?
क्या प्रभु ने ही यह कार्य नहीं किया था?
क्योंकि हमने उसके प्रति पाप किया था।
हम उसके बताए हुए मार्ग पर नहीं चले थे;
हमने उसकी व्यवस्था का पालन नहीं
किया था।
25अत: उसने इस्राएली राष्ट्र पर
अपनी क्रोधाग्नि की वर्षा की,
युद्ध का आतंक फैलाया।
विनाश की आग से
इस्राएली राष्ट्र चारों ओर से घिर गया,
पर उसने उसको नहीं समझा,
कि यह क्यों हुआ।
आग ने उसको झुलसा दिया, पर वह नहीं
चेता।
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यशायाह 42: HINCLBSI
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यशायाह 42
42
प्रभु का सेवक
1यह है मेरा सेवक! इसको मैं सम्भाले
हुए हूं।
यह मेरा मनोनीत है! इससे मैं प्रसन्न हूं।
मैंने इसको अपना आत्मा प्रदान किया है,
जिससे वह राष्ट्रों में न्याय की स्थापना करे।#यश 49:3; 50:10; 52:13; मत 12:18; 3:17; 17:5; यश 11:2
2वह न चिल्लाएगा,
और न ऊंचे स्वर में शोर मचाएगा,
वह न गली-कूचों में आवाज देगा।
3वह मुड़े हुए सरकंडे को तोड़ेगा नहीं,
वह टिमाटिमाते हुए दीपक को बुझाएगा
नहीं।
वह सच्चाई से न्याय की स्थापना करेगा।
4जब तक वह पृथ्वी पर
न्याय की स्थापना नहीं कर लेगा
तब तक उसका उत्साह बुझेगा नहीं,
वह हिम्मत नहीं हारेगा।
द्वीप उसके धर्म-नियमों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
5प्रभु परमेश्वर, जिसने आकाश को बनाया
और उसको विस्तृत फैलाया है,
जिसने पृथ्वी और उस पर होनेवाली
प्रत्येक वस्तु की रचना की है;
जो पृथ्वी के सब लोगों में प्राण डालता है,
जो पृथ्वी पर विचरनेवालों को आत्मा प्रदान
करता है,
वह यों कहता है:#प्रे 17:25 6‘मैं प्रभु हूं;
मैंने तुझे धार्मिक अभिप्राय से बुलाया है।
मैंने तेरा हाथ थामकर तुझे सहारा दिया है।#42:6 अथवा, “मैंने तेरा हाथ थामा, और तुझे गढ़ा है।”
मैंने तुझे कौम#42:6 अथवा, “(अपनी) प्रजा” । के लिए विधान और
राष्ट्रों के लिए ज्योति नियुक्त किया है,#लू 2:32; यो 8:12; प्रे 13:47; 26:23; यश 49:6
7ताकि तू अंधी आंखों को दृष्टि प्रदान करे,
बन्दियों को बन्दीगृह से बाहर निकाले,
कारागार के अंधकार में बैठे हुओं को
बाहर प्रकाश में लाए।#लू 4:18; यो 8:32; प्रे 26:18
8मैं प्रभु हूं, यही मेरा नाम है,
मैं अपनी महिमा दूसरों को न दूंगा,
जो स्तुति मुझे अर्पित की जाती है,
वह मैं गढ़ी हुई मूर्तियों को नही दूंगा।
9देख, पुरानी बातें पूरी हो चुकीं,
अब मैं नई बातें घोषित करता हूं,
उनके होने से पहले ही
मैं तुझे उनके विषय में सुना रहा हूं।’
प्रभु की कृपा से प्राप्त विजय
10प्रभु के लिए नया गीत गाओ।
पृथ्वी के सीमान्तों तक उसकी स्तुति गूंज
उठे।
सागर और उसके सब जलचर,
भूमध्यसागर तट के सब द्वीपों के निवासी,
प्रभु की स्तुति गाएँ।#प्रक 5:9
11मरुस्थल और उसके नगर,
केदार के ग्रामवासी उच्च स्वर में गाएँ,
सेला के रहनेवाले जयजयकार करें,
वे पहाड़ के शिखरों से जयघोष करें।
12वे प्रभु की महिमा करें,
वे भूमध्यसागर के तटवर्ती द्वीपों में
उसका गुणगान करें।
13प्रभु महायोद्धा के सदृश
बाहर निकल रहा है;
सशक्त सैनिक के समान
वह अपने क्रोध को उभाड़ रहा है।
वह युद्ध-नाद करता है,
वह ऊंची आवाज में
अपने बैरियों को ललकारता है;
वह अपने शत्रुओं पर
अपना महाबल प्रकट करता है:#गण 10:35; शास 5:4
14‘मैं बहुत समय तक चुप रहा,
मैं शांत रहा, और अपने को रोकता रहा।
परन्तु अब मैं प्रसव-पीड़ित स्त्री की तरह
चिल्लाऊंगा,
मैं हांफ-हांफ कर सांस भरूंगा।
15मैं पर्वतों और पहाड़ियों को उजाड़ दूंगा,
मैं उनकी समस्त वनस्पति को सुखा दूंगा।
मैं नदियों को द्वीप बना दूंगा;
मैं तालाबों को सुखा दूंगा।
16मैं अनजान मार्ग पर अंधों का मार्ग-दर्शन
करूंगा,
मैं अपरिचित राह पर उनका पथ-प्रदर्शन
करूंगा।
मैं उनके सम्मुख अंधकार को प्रकाश में
बदल दूंगा,
ऊबड़-खाबड़ स्थानों को समतल मैदान
बना दूंगा।
मैं यह सब आश्चर्यपूर्ण कार्य करूंगा,
और उनको कभी नहीं त्यागूंगा।
17जो गढ़ी हुई मूर्तियों को ईश्वर मानते हैं,
और उन पर भरोसा करते हैं;
जो ढली हुई मूर्तियों से यह कहते हैं
“तुम ही हमारे देवी-देवता हो” ,
वे पीठ दिखाएंगे, वे पूर्णत: लज्जित होंगे।’
अवज्ञाकारियों को चेतावनी
18प्रभु कहता है: ‘ओ बहरो, सुनो;
ओ अंधो, आंखें खोलो, जिससे तुम देख
सको!
19मेरे सेवक इस्राएल के अतिरिक्त
और कौन अंधा है?
मेरे संदेश-वाहक को छोड़कर
और कौन बहरा है?
मेरे भक्त के तुल्य और कौन अंधा है?
मेरे सेवक के सदृश और कौन बहरा है?#मत 13:9-15
20वह अनेक बातों को देखता है,
किन्तु उन पर ध्यान नहीं देता,
उसके कान खुले तो हैं, पर वह नहीं सुनता।’
21अपनी धार्मिकता के कारण
अपनी व्यवस्था को महिमा देने के लिए,
उसको गौरव प्रदान करने के लिए
प्रभु अपने सेवक इस्राएल से प्रसन्न हुआ था।
22पर वे लोग लुटे हुए हैं,
वे सबके सब मांदों में फंस गए हैं,
वे बन्दीगृह में दुबके बैठे हैं।
वे शिकार हो गए,
उनको छुड़ानेवाला कोई नहीं है।
वे ऐसी लूट हैं, जिनको कोई वापस नहीं
करता!
23तुममें से कौन व्यक्ति,
इन बातों पर कान देता है?
कौन व्यक्ति ध्यान देकर
भविष्य की बातों को सुनता है?
24किसने याकूब को लुटेरों के हाथ में सौंपा था?
किसने इस्राएल को डाकुओं के हाथ में दे
दिया था?
क्या प्रभु ने ही यह कार्य नहीं किया था?
क्योंकि हमने उसके प्रति पाप किया था।
हम उसके बताए हुए मार्ग पर नहीं चले थे;
हमने उसकी व्यवस्था का पालन नहीं
किया था।
25अत: उसने इस्राएली राष्ट्र पर
अपनी क्रोधाग्नि की वर्षा की,
युद्ध का आतंक फैलाया।
विनाश की आग से
इस्राएली राष्ट्र चारों ओर से घिर गया,
पर उसने उसको नहीं समझा,
कि यह क्यों हुआ।
आग ने उसको झुलसा दिया, पर वह नहीं
चेता।
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