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यिर्मयाह 9

9
1 # 9:1 मूल में 8:23 काश, मेरा मस्‍तिष्‍क सागर होता,
मेरी आंखें आँसुओं की झील होती,
तो मैं अपने लोगों के महासंहार के कारण
दिन-रात फूट-फूट कर रोता।
2 # 9:2 मूल में 9:1 काश, निर्जन प्रदेश में मुझे
टिकने के लिए सराय मिल जाती,
तो मैं अपने लोगों को छोड़कर चला जाता;
क्‍योंकि वे सब के सब व्‍यभिचारी हैं;
और वे विश्‍वासघातियों का संघ बन गए हैं।
3वे झूठ का शब्‍द फेंकने के लिए
धनुष के सदृश अपनी जीभ को,
प्रत्‍यंचा पर चढ़ाते हैं;
सच्‍चाई नहीं, वरन् असत्‍य की फसल
सारे देश में खूब पैदा हो रही है!
वे दुष्‍कर्म पर दुष्‍कर्म करते जाते हैं।
उनके विषय में स्‍वयं प्रभु कहता है:
‘वे मेरी उपस्‍थिति का अनुभव नहीं करते हैं।’#9:3 अथवा, ‘वे मुझे नहीं जानते हैं’
4प्रत्‍येक मनुष्‍य अपने पड़ोसी से सावधान रहे,
और न अपने भाई पर भरोसा करे।
क्‍योंकि भाई, भाई को धोखा देता है,#9:4 अथवा, ‘याकूब की तरह धोखा देता है।’
पड़ोसी, पड़ोसी की निन्‍दा करता है।
5हर आदमी अपने पड़ोसी को ठगता है,
उन्‍होंने सच न बोलने की कसम खा रखी है,
वे सदा झूठ बोलते हैं,
वे दुष्‍कर्म करते हैं,
और पश्‍चात्ताप से मुंह फेर लेते हैं।
6वे अत्‍याचार पर अत्‍याचार,
बार-बार छल-कपट करते हैं;
उनके विषय में स्‍वयं प्रभु कहता है:
‘वे मेरी उपस्‍थिति का अनुभव करना नहीं
चाहते।’
प्रभु दण्‍ड देगा
7अत: स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है:
‘मैं उनको आग में शुद्ध करूँगा,
और उनको परखूंगा।
इसके अतिरिक्‍त मैं
उनके साथ और क्‍या कर सकता हूं;
क्‍योंकि वे मेरे निज लोग हैं?
8उनकी जीभ मानो विष-बुझा तीर है;
वह निरंतर छल-कपट की बातें उगलती
रहती है।
ये लोग मुंह से तो अपने पड़ोसी से प्रेम की
बातें करते हैं;
पर हृदय में उस पर घात लगाने की योजना
बनाते हैं।
9क्‍या मुझे उनके इन दुष्‍कर्मों के लिए उन्‍हें दण्‍ड
नहीं देना चाहिए?
क्‍या मैं ऐसी जाति से प्रतिशोध न लूं?’
प्रभु की यह वाणी है।
10मैं पर्वतों के लिए रोऊंगा, शोक मनाऊंगा;
निर्जन प्रदेश के चरागाह के लिए विलाप
करूंगा;
क्‍योंकि वे उजाड़ हो गए हैं,
राहगीर उधर से अब नहीं गुजरते।
पशुओं का रंभाना भी नहीं सुनाई देता।
आकाश के पक्षी उनको छोड़ चले गए हैं;
जंगली पशु भी भाग गए हैं।
11प्रभु कहता है,
‘मैं यरूशलेम को खण्‍डहरों का ढेर
और गीदड़ों की मांद बना दूंगा।
मैं यहूदा प्रदेश के नगरों को उजाड़ दूंगा,
वे निर्जन हो जाएंगे।’
दण्‍ड का कारण
12कौन मनुष्‍य इतना बुद्धिमान है कि वह इन घटनाओं का भेद समझ सके? किस मनुष्‍य को स्‍वयं प्रभु ने इनका अर्थ समझाया है, कि वह सब मनुष्‍यों पर उसको घोषित करे? देश क्‍यों खण्‍डहर बन गया? वह निर्जन प्रदेश के समान उजाड़ क्‍यों पड़ा है? राहगीर वहां से क्‍यों नहीं गुजरते? 13प्रभु कहता है: ‘जो व्‍यवस्‍था मैंने उनके सम्‍मुख प्रतिष्‍ठित की थी, उसको उन्‍होंने त्‍याग दिया। उन्‍होंने मेरे वचनों को नहीं सुना, और न मेरी आज्ञाओं के अनुसार आचरण किया। 14वे हठपूर्वक अपने हृदय के अनुरूप बुरे मार्ग पर चलते रहे। वे बअल देवताओं का अनुसरण करते रहे, जैसा उनके पूर्वजों ने उन्‍हें सिखाया था।’ 15अत: इस्राएल का परमेश्‍वर, स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘ओ यिर्मयाह, सुन! इस कारण मैं इन लोगों को कड़ुवा साग-पात खिलाऊंगा, और पीने को विष-मिला पानी दूंगा। 16मैं इनको विश्‍व की समस्‍त जातियों में बिखेर दूंगा, जिन को न ये जानते हैं, और न इनके पूर्वज ही जानते थे। मैं इनके पीछे अपनी तलवार लगा दूंगा; और जब तक वह उनको मौत के घाट न उतार देगी, तब तक वह उनके पीछे लगी रहेगी।’
यरूशलेम के लिए शोक गीत
17स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है:
‘जाओ, विलाप करनेवाली औरतों को बुलाओ;
छाती पीट-पीटकर मातम मनानेवाली
स्‍त्रियों को लाओ।
18वे शीघ्र आएं, और हमारे लिए रोएं,
कि हमारी आंखों से भी आंसुओं की नदी
बहने लगे,
हमारी पलकें आंसुओं के सागर में डूब जाएं।
19सियोन से यह शोक गीत सुनाई दे रहा है:
“हम बरबाद हो गए!
हम अपमान से भूमि में गड़ गए।
हमें अपने देश को छोड़ना पड़ा।
शत्रुओं ने हमारे निवास-स्‍थान ध्‍वस्‍त कर
दिए।” ’
मृत्‍यु का आतंक
20ओ मातम मनानेवाली स्‍त्रियो,
प्रभु का यह आदेश सुनो;
स्‍वयं प्रभु के मुंह से निकला हुआ वचन
ध्‍यान से सुनो।
तुम अपनी पुत्रियों को शोक-गीत, और
अपनी पड़ोसिन को विलाप-गीत सिखाना;
21क्‍योंकि मृत्‍यु हमारी खिड़कियों तक पहुंच
चुकी है,
वह हमारे महलों में घुस आयी है।
वह गली-कूचों में बच्‍चों का वध कर रही है,
और चौराहों पर जवानों का।
22प्रभु यों कहता है, ‘ओ यिर्मयाह, यह कह:
युद्ध में मरनेवालों की लाशें
ऐसी पड़ी रहेंगी
जैसे खेत में खाद का ढेर लगा रहता है,
जैसे फसल काटनेवाले के पीछे पूले पड़े
रहते हैं!
उन लाशों को उठानेवाला नहीं मिलेगा।’
सच्‍ची बुद्धिमत्ता
23प्रभु यों कहता है,
‘बुद्धिमान मनुष्‍य अपनी बुद्धि पर गर्व न करे,
और न बलवान अपने बल पर।
धनवान मनुष्‍य अपने धन का घमण्‍ड न करे।
24किन्‍तु यदि कोई मनुष्‍य किसी बात पर घमण्‍ड करना चाहता है तो उसे इस बात पर घमण्‍ड करना चाहिए कि वह मुझे जानता है,#9:24 अथवा, ‘मेरी उपस्‍थिति का अनुभव करता है’ उसको मेरे विषय मे यह समझ है कि मैं पृथ्‍वी पर दया, न्‍याय और धर्म की स्‍थापना करनेवाला प्रभु हूं; और मैं इन्‍हीं बातों से प्रसन्न होता हूं,’ प्रभु की यह वाणी है।#1 कुर 1:31; 2 कुर 10:17; याक 1:9
शारीरिक खतने से कोई लाभ नहीं
25प्रभु यों कहता है, ‘देखो, वे दिन आ रहे हैं जब मैं उन कौमों को दण्‍ड दूंगा, जिनका शारीरिक खतना तो हुआ है पर हृदय से खतना-रहित हैं।
26वे ये कौमें हैं: मिस्री, यहूदी, एदोमी, अम्‍मोनी, मोआबी और मरुस्‍थल में रहनेवाली अरबी कौम, जो अपने गालों के बालों को मूंड़ती है। ये सब खतना-रहित हैं, और इस्राएल के वंशज भी हृदय से खतना-रहित हैं।’#प्रे 7:51

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