योहन 6
6
पाँच हजार लोगों को भोजन कराना
1इसके पश्चात् येशु गलील की झील, अर्थात् तिबेरियस झील के उस पार चले गये।#मत 14:13-21; 15:32-39; मक 6:32-44; 8:1-10; लू 9:10-17
2एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने वे अद्भुत चिह्न देखे थे, जो येशु ने रोगियों पर दिखाए थे। 3येशु पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये। 4यहूदियों का पास्का [फसह] पर्व निकट था।#यो 2:13; 11:55; लू 22:1
5येशु ने अपनी आँखे ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है। उन्होंने फिलिप से यह कहा, “हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?” 6उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वह तो जानते ही थे कि वह क्या करेंगे। 7फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों#6:7 मूल में, “दीनार” की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके।” 8उनके शिष्यों में से एक, सिमोन पतरस के भाई अन्द्रेयास ने कहा, 9“यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह इतने लोगों के लिए क्या है?”#2 रा 4:42-43 10येशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार थी। 11येशु ने रोटियाँ ले लीं और परमेश्वर को धन्यवाद देकर बैठे हुए लोगों में उन्हें वितरित किया। इसी प्रकार मछलियाँ भी, जितनी वे चाहते थे, वितरित कीं। 12जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तब येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न हो।” 13इसलिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर लीं, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे। 14लोग येशु का यह आश्चर्यपूर्ण कार्य देख कर बोल उठे, “निश्चय ही यह वह नबी हैं, जो संसार में आने वाले थे।”#व्य 18:15
15जब येशु ने यह देखा कि लोग आ कर उन्हें राजा बनाने के लिए पकड़ना चाहते हैं, तो वह अकेले ही पहाड़ी पर फिर चले गये।#यो 18:36
येशु पानी पर चलते हैं
16सन्ध्या हो जाने पर शिष्य झील के तट पर आए।#मत 14:22-23; मक 6:45-52 17वे नाव पर सवार हो कर कफरनहूम नगर की ओर झील पार कर रहे थे। रात हो चली थी और येशु अब तक उनके पास नहीं आए थे। 18इस बीच झील में लहरें उठने लगीं, क्योंकि हवा जोरों से बह रही थी। 19लगभग पाँच-छ: किलो मीटर#6:19 मूल में, “पच्चीस-तीस स्तडियन” तक नाव खेने के बाद शिष्यों ने देखा कि येशु झील पर चलते हुए, नाव के समीप आ रहे हैं।#भज 77:19 वे डर गये, 20किन्तु येशु ने उन से कहा, “मैं हूँ। डरो मत।”#यश 43:11,15-16 21वे उन्हें नाव में चढ़ाना चाहते ही थे कि नाव तुरन्त उस किनारे, जहाँ वे जा रहे थे, लग गयी।
कफरनहूम में स्वर्ग की रोटी की प्रतिज्ञा
22जो लोग झील के उस पार रह गये थे, उन्होंने दूसरे दिन देखा था कि वहाँ केवल एक ही नाव थी और येशु अपने शिष्यों के साथ उस नाव पर सवार नहीं हुए थे− उनके शिष्य अकेले ही चले गये थे। 23अब तिबेरियस नगर की ओर से कुछ अन्य नावें उस स्थान के समीप आईं जहाँ प्रभु येशु की धन्यवाद की प्रार्थना के बाद लोगों ने रोटी खायी थी।#यो 6:11 24जब जनसमूह ने देखा कि वहाँ न तो येशु हैं और न उनके शिष्य ही, तो वे नावों पर सवार हुए और येशु को खोजते हुए कफरनहूम नगर की ओर गये। 25उन्होंने झील पार की और येशु को वहाँ पा कर उन से कहा, “गुरुजी! आप यहाँ कब आए?” 26येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; तुम मुझे इस लिए नहीं खोज रहे हो कि तुम ने आश्चर्यपूर्ण चिह्न देखा, बल्कि इसलिए कि तुम ने पेट भर रोटियाँ खाई हैं। 27नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो शाश्वत जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव-पुत्र तुम्हें देगा; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव-पुत्र पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाई है।”#यो 4:14; 5:36; मत 16:12; प्रव 24:19-22 28लोगों ने उन से पूछा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिए हम क्या करें?” 29येशु ने उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है कि जिसे उसने भेजा है, उसमें विश्वास करो।”#1 यो 3:23
30लोगों ने उन से कहा, “आप हमें कौन-सा चिह्न दिखा सकते हैं, जिसे देख कर हम आप में विश्वास करें? आप क्या कर सकते हैं?#यो 2:18; मक 8:11 31हमारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मन्ना खाया था, जैसा कि लिखा है : ‘उसने खाने के लिए उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।’ ”#नि 16:13-14; भज 78:24; प्रज्ञ 16:20-21 32येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : मूसा ने तुम्हें स्वर्ग से रोटी नहीं दी थी। मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी दे रहा है।#यो 6:49 33परमेश्वर की रोटी तो वह है, जो स्वर्ग से उतर कर संसार को जीवन प्रदान करती है।” #यो 6:51
जीवन की रोटी मैं हूँ
34लोगों ने येशु से कहा, “प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें।” 35उन्होंने उत्तर दिया, “जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।#यो 4:14; 6:48; 7:37 36फिर भी, जैसा कि मैंने तुम से कहा, तुम मुझे देख कर भी विश्वास नहीं करते।#यो 6:26,29 37पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आएँगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी बाहर नहीं निकालूँगा;#यो 17:6-8; मत 11:28 38क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।#यो 4:34; मत 26:39 39जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक को भी नष्ट न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।#यो 10:28-29; 17:12 40मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को देखे और उस में विश्वास करे, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।”#यो 5:29; 11:24
41येशु ने कहा था, “स्वर्ग से उतरी हुई रोटी मैं हूँ।” इस पर यहूदी लोग यह कहते हुए भुनभुनाने लगे, 42“क्या यह यूसुफ का पुत्र येशु नहीं है? हम इसके माँ-बाप को जानते हैं। तो अब यह कैसे कह सकता है, ‘मैं स्वर्ग से उतरा हूँ’?”#लू 4:22 43येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “आपस में मत भुनभुनाओ। 44जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, आकर्षित न करे, कोई मेरे पास नहीं आ सकता है; और मैं उसे अंतिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।#यो 6:37,65 45नबी-ग्रन्थों में लिखा है ,‘वे सब परमेश्वर से शिक्षा पाएँगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।#यश 54:13; यिर 31:33-34
46“यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; केवल उसी ने पिता को देखा है, जो परमेश्वर की ओर से आया है।#यो 1:18 47मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : जो विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है।#यो 3:16 48जीवन की रोटी मैं हूँ।#यो 6:35 49तुम्हारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मन्ना खाया; फिर भी वे मर गये।#यो 6:31-32; 1 कुर 10:3,5 50मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता। 51स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। और जो रोटी मैं दूँगा, वह मेरी देह#6:51 अथवा, ‘शरीर’ है जो मैं संसार के जीवन के लिए अर्पित करूँगा।”#इब्र 10:5,10
52इस पर वे यहूदी लोग आपस में वाद-विवाद करने लगे, “यह हमें खाने के लिए अपनी देह कैसे दे सकता है?”#यो 6:60 53इसलिए येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; यदि तुम मानव-पुत्र की देह नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम में जीवन नहीं होगा। 54जो मेरी देह खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है और मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा; 55क्योंकि मेरी देह सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय। 56जो मेरी देह खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में रहता है और मैं उसमें।#यो 15:4; 1 यो 3:24; 2:24 57जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है, उसी तरह जो मुझे खाता है, उस को मुझ से जीवन मिलेगा। 58यही वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरी है। यह उस रोटी के सदृश नहीं है, जो पूर्वजों ने खायी थी। वे तो मर गये; किन्तु जो यह रोटी खाएगा, वह सदा जीवित रहेगा।”
अनेक शिष्यों द्वारा येशु को छोड़ना
59येशु ने कफरनहूम के सभागृह में शिक्षा देते समय यह कहा। 60यह सुनकर उनके बहुत-से शिष्यों ने कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है?” 61येशु ने मन में जाना कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, तो उन्होंने उन से कहा, “क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो? 62जब तुम मानव-पुत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे, जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे?#यो 3:13 63आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, शरीर से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम से जो वचन कहे हैं, वे आत्मा और जीवन हैं।#2 कुर 3:6; प्रज्ञ 9:13-18 64फिर भी तुम में से अनेक मुझ पर विश्वास नहीं करते।” येशु तो प्रारम्भ से ही यह जानते थे कि कौन मुझ पर विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा#6:64 अथवा, “मुझे पकड़वाएगा” ।#यो 13:11 65उन्होंने कहा, “इसलिए मैंने तुम लोगों से कहा था कि जब तक पिता से यह वरदान न मिले, कोई मेरे पास नहीं आ सकता।”#यो 4:44
66इसके पश्चात् येशु के बहुत-से शिष्य पीछे हट गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया। 67इसलिए येशु ने बारहों से कहा, “क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो?” 68सिमोन पतरस ने उन्हें उत्तर दिया, “प्रभु! हम किसके पास जाएँ! आपके पास शाश्वत जीवन के वचन हैं।#यो 6:63 69हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप परमेश्वर के पवित्र व्यक्ति हैं।”#यो 1:49; 11:27; मत 14:33; 16:16 70येशु ने उनसे कहा, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? तब भी तुम में से एक शैतान#6:70 अथवा, “विरोधी” है।” 71यह उन्होंने शिमोन इस्करियोती के पुत्र यूदस#6:71 अथवा, ‘यहूदा’ के विषय में कहा। वही उनके साथ विश्वासघात करने वाला था और वह बारहों में से एक था।
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योहन 6
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पाँच हजार लोगों को भोजन कराना
1इसके पश्चात् येशु गलील की झील, अर्थात् तिबेरियस झील के उस पार चले गये।#मत 14:13-21; 15:32-39; मक 6:32-44; 8:1-10; लू 9:10-17
2एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने वे अद्भुत चिह्न देखे थे, जो येशु ने रोगियों पर दिखाए थे। 3येशु पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये। 4यहूदियों का पास्का [फसह] पर्व निकट था।#यो 2:13; 11:55; लू 22:1
5येशु ने अपनी आँखे ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है। उन्होंने फिलिप से यह कहा, “हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?” 6उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वह तो जानते ही थे कि वह क्या करेंगे। 7फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों#6:7 मूल में, “दीनार” की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके।” 8उनके शिष्यों में से एक, सिमोन पतरस के भाई अन्द्रेयास ने कहा, 9“यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह इतने लोगों के लिए क्या है?”#2 रा 4:42-43 10येशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार थी। 11येशु ने रोटियाँ ले लीं और परमेश्वर को धन्यवाद देकर बैठे हुए लोगों में उन्हें वितरित किया। इसी प्रकार मछलियाँ भी, जितनी वे चाहते थे, वितरित कीं। 12जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तब येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न हो।” 13इसलिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर लीं, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे। 14लोग येशु का यह आश्चर्यपूर्ण कार्य देख कर बोल उठे, “निश्चय ही यह वह नबी हैं, जो संसार में आने वाले थे।”#व्य 18:15
15जब येशु ने यह देखा कि लोग आ कर उन्हें राजा बनाने के लिए पकड़ना चाहते हैं, तो वह अकेले ही पहाड़ी पर फिर चले गये।#यो 18:36
येशु पानी पर चलते हैं
16सन्ध्या हो जाने पर शिष्य झील के तट पर आए।#मत 14:22-23; मक 6:45-52 17वे नाव पर सवार हो कर कफरनहूम नगर की ओर झील पार कर रहे थे। रात हो चली थी और येशु अब तक उनके पास नहीं आए थे। 18इस बीच झील में लहरें उठने लगीं, क्योंकि हवा जोरों से बह रही थी। 19लगभग पाँच-छ: किलो मीटर#6:19 मूल में, “पच्चीस-तीस स्तडियन” तक नाव खेने के बाद शिष्यों ने देखा कि येशु झील पर चलते हुए, नाव के समीप आ रहे हैं।#भज 77:19 वे डर गये, 20किन्तु येशु ने उन से कहा, “मैं हूँ। डरो मत।”#यश 43:11,15-16 21वे उन्हें नाव में चढ़ाना चाहते ही थे कि नाव तुरन्त उस किनारे, जहाँ वे जा रहे थे, लग गयी।
कफरनहूम में स्वर्ग की रोटी की प्रतिज्ञा
22जो लोग झील के उस पार रह गये थे, उन्होंने दूसरे दिन देखा था कि वहाँ केवल एक ही नाव थी और येशु अपने शिष्यों के साथ उस नाव पर सवार नहीं हुए थे− उनके शिष्य अकेले ही चले गये थे। 23अब तिबेरियस नगर की ओर से कुछ अन्य नावें उस स्थान के समीप आईं जहाँ प्रभु येशु की धन्यवाद की प्रार्थना के बाद लोगों ने रोटी खायी थी।#यो 6:11 24जब जनसमूह ने देखा कि वहाँ न तो येशु हैं और न उनके शिष्य ही, तो वे नावों पर सवार हुए और येशु को खोजते हुए कफरनहूम नगर की ओर गये। 25उन्होंने झील पार की और येशु को वहाँ पा कर उन से कहा, “गुरुजी! आप यहाँ कब आए?” 26येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; तुम मुझे इस लिए नहीं खोज रहे हो कि तुम ने आश्चर्यपूर्ण चिह्न देखा, बल्कि इसलिए कि तुम ने पेट भर रोटियाँ खाई हैं। 27नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो शाश्वत जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव-पुत्र तुम्हें देगा; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव-पुत्र पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाई है।”#यो 4:14; 5:36; मत 16:12; प्रव 24:19-22 28लोगों ने उन से पूछा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिए हम क्या करें?” 29येशु ने उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है कि जिसे उसने भेजा है, उसमें विश्वास करो।”#1 यो 3:23
30लोगों ने उन से कहा, “आप हमें कौन-सा चिह्न दिखा सकते हैं, जिसे देख कर हम आप में विश्वास करें? आप क्या कर सकते हैं?#यो 2:18; मक 8:11 31हमारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मन्ना खाया था, जैसा कि लिखा है : ‘उसने खाने के लिए उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।’ ”#नि 16:13-14; भज 78:24; प्रज्ञ 16:20-21 32येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : मूसा ने तुम्हें स्वर्ग से रोटी नहीं दी थी। मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी दे रहा है।#यो 6:49 33परमेश्वर की रोटी तो वह है, जो स्वर्ग से उतर कर संसार को जीवन प्रदान करती है।” #यो 6:51
जीवन की रोटी मैं हूँ
34लोगों ने येशु से कहा, “प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें।” 35उन्होंने उत्तर दिया, “जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।#यो 4:14; 6:48; 7:37 36फिर भी, जैसा कि मैंने तुम से कहा, तुम मुझे देख कर भी विश्वास नहीं करते।#यो 6:26,29 37पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आएँगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी बाहर नहीं निकालूँगा;#यो 17:6-8; मत 11:28 38क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।#यो 4:34; मत 26:39 39जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक को भी नष्ट न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।#यो 10:28-29; 17:12 40मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को देखे और उस में विश्वास करे, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।”#यो 5:29; 11:24
41येशु ने कहा था, “स्वर्ग से उतरी हुई रोटी मैं हूँ।” इस पर यहूदी लोग यह कहते हुए भुनभुनाने लगे, 42“क्या यह यूसुफ का पुत्र येशु नहीं है? हम इसके माँ-बाप को जानते हैं। तो अब यह कैसे कह सकता है, ‘मैं स्वर्ग से उतरा हूँ’?”#लू 4:22 43येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “आपस में मत भुनभुनाओ। 44जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, आकर्षित न करे, कोई मेरे पास नहीं आ सकता है; और मैं उसे अंतिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।#यो 6:37,65 45नबी-ग्रन्थों में लिखा है ,‘वे सब परमेश्वर से शिक्षा पाएँगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।#यश 54:13; यिर 31:33-34
46“यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; केवल उसी ने पिता को देखा है, जो परमेश्वर की ओर से आया है।#यो 1:18 47मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : जो विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है।#यो 3:16 48जीवन की रोटी मैं हूँ।#यो 6:35 49तुम्हारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मन्ना खाया; फिर भी वे मर गये।#यो 6:31-32; 1 कुर 10:3,5 50मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता। 51स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। और जो रोटी मैं दूँगा, वह मेरी देह#6:51 अथवा, ‘शरीर’ है जो मैं संसार के जीवन के लिए अर्पित करूँगा।”#इब्र 10:5,10
52इस पर वे यहूदी लोग आपस में वाद-विवाद करने लगे, “यह हमें खाने के लिए अपनी देह कैसे दे सकता है?”#यो 6:60 53इसलिए येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; यदि तुम मानव-पुत्र की देह नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम में जीवन नहीं होगा। 54जो मेरी देह खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है और मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा; 55क्योंकि मेरी देह सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय। 56जो मेरी देह खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में रहता है और मैं उसमें।#यो 15:4; 1 यो 3:24; 2:24 57जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है, उसी तरह जो मुझे खाता है, उस को मुझ से जीवन मिलेगा। 58यही वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरी है। यह उस रोटी के सदृश नहीं है, जो पूर्वजों ने खायी थी। वे तो मर गये; किन्तु जो यह रोटी खाएगा, वह सदा जीवित रहेगा।”
अनेक शिष्यों द्वारा येशु को छोड़ना
59येशु ने कफरनहूम के सभागृह में शिक्षा देते समय यह कहा। 60यह सुनकर उनके बहुत-से शिष्यों ने कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है?” 61येशु ने मन में जाना कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, तो उन्होंने उन से कहा, “क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो? 62जब तुम मानव-पुत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे, जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे?#यो 3:13 63आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, शरीर से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम से जो वचन कहे हैं, वे आत्मा और जीवन हैं।#2 कुर 3:6; प्रज्ञ 9:13-18 64फिर भी तुम में से अनेक मुझ पर विश्वास नहीं करते।” येशु तो प्रारम्भ से ही यह जानते थे कि कौन मुझ पर विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा#6:64 अथवा, “मुझे पकड़वाएगा” ।#यो 13:11 65उन्होंने कहा, “इसलिए मैंने तुम लोगों से कहा था कि जब तक पिता से यह वरदान न मिले, कोई मेरे पास नहीं आ सकता।”#यो 4:44
66इसके पश्चात् येशु के बहुत-से शिष्य पीछे हट गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया। 67इसलिए येशु ने बारहों से कहा, “क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो?” 68सिमोन पतरस ने उन्हें उत्तर दिया, “प्रभु! हम किसके पास जाएँ! आपके पास शाश्वत जीवन के वचन हैं।#यो 6:63 69हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप परमेश्वर के पवित्र व्यक्ति हैं।”#यो 1:49; 11:27; मत 14:33; 16:16 70येशु ने उनसे कहा, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? तब भी तुम में से एक शैतान#6:70 अथवा, “विरोधी” है।” 71यह उन्होंने शिमोन इस्करियोती के पुत्र यूदस#6:71 अथवा, ‘यहूदा’ के विषय में कहा। वही उनके साथ विश्वासघात करने वाला था और वह बारहों में से एक था।
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