मत्ती 21
21
यरूशलेम में येशु का प्रवेश
1जब येशु यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बेतफगे के समीप आए, तब येशु ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा#मक 11:1-10; लू 19:29-38; यो 12:12-19 , 2“सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें खूंटे से बंधी हुई एक गदही मिलेगी और उसके साथ उसका एक बछेरू होगा। उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ। 3यदि कोई तुम से कुछ बोले, तो कह देना, ‘प्रभु को इनकी जरूरत है।’ और वह उन्हें तुरन्त भेज देगा।#21:3 अथवा, ‘और वह (अर्थात् प्रभु) उन्हें शीघ्र ही भेज देंगे।’ ”#मत 26:18 4यह इसलिए हुआ कि नबी का यह कथन पूरा हो जाए :
5“सियोन नगरी से कहो :
देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है।
वह विनम्र है।
वह गदही पर और उसके बछेरू पर,
वरन् लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार
है।”#जक 9:9; यश 62:11
6दोनों शिष्य चले गए। येशु ने जैसा आदेश दिया, उन्होंने वैसा ही किया। 7वे गदही और उसके बछेरू को ले आए। उन्होंने उन पर अपनी चादरें बिछा दीं, जिन पर येशु बैठ गए। 8भीड़ में से बहुत-से लोगों ने अपनी चादरें रास्ते में बिछा दीं। कुछ लोगों ने पेड़ों की डालियाँ काट कर रास्ते में फैला दीं।#2 रा 9:13 9येशु के आगे-आगे और उनके पीछे आनेवाले लोग यह नारा लगा रहे थे, “दाऊद के वंशज की जय हो! जय हो!#21:9 मूल में, ‘होशाना’ अर्थात् ‘हमें बचा’। इस शब्द का प्रयोग जय-जयकार के अर्थ में होता है। धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आता है! सर्वोच्च स्वर्ग में जय हो! जय हो!”#भज 118:25-26; 2 शम 14:4 10जब येशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया तब समस्त नगर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन हैं?” 11जनसमूह ने कहा, “यह गलील प्रदेश के नासरत-निवासी नबी येशु हैं।”#मत 21:46
मन्दिर से बिक्री करने वालों को निकालना
12येशु ने मन्दिर में प्रवेश किया और वहाँ से उन सब को बाहर निकाल दिया, जो मन्दिर में क्रय-विक्रय कर रहे थे।#मक 11:11-24; लू 19:45-48; यो 2:14-16 उन्होंने सराफों की मेजें और कबूतर बेचने वालों की चौकियाँ उलट दीं#मत 3:1 13और उन से कहा, “धर्मग्रन्थ में लिखा है : ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा,’ परन्तु तुम लोग उसे लुटेरों का अड्डा बना रहे हो।”#यश 56:7; यिर 7:11
बालकों के मुँह से जय-जयकार
14अन्धे और लंगड़े येशु के पास मन्दिर में आए और येशु ने उन को स्वस्थ कर दिया। 15जब महापुरोहितों और शास्त्रियों ने उनके आश्चर्यपूर्ण कार्य देखे और बालकों को मन्दिर में यह जयघोष करते सुना − “दाऊद के वंशज की जय!” तो वे क्रुद्ध हो गए।#भज 118:25 16वे येशु से बोले, “क्या तुम सुन रहे हो कि ये क्या कह रहे हैं?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “हाँ, सुन रहा हूँ। क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में यह नहीं पढ़ा, ‘बालकों और दुधमुँहे बच्चों के मुख से तूने अपना गुणगान कराया’?”#भज 8:2 (यू. पाठ) 17तब येशु उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बेतनियाह गाँव को चले गए और रात वहीं व्यतीत की।
अंजीर का पेड़
18सबेरे नगर को लौटते समय येशु को भूख लगी। 19उन्होंने मार्ग के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखा। वह उसके पास आए। परन्तु उन्होंने उस में पत्तों को छोड़कर और कुछ नहीं पाया। येशु ने पेड़ से कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और उसी क्षण अंजीर का वह पेड़ सूख गया। #लू 13:6 20यह देख कर शिष्य अचम्भे में पड़ गये और बोले, “अंजीर का यह पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया है?” 21येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : यदि तुम विश्वास करो और सन्देह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे, जो मैंने अंजीर के पेड़ के साथ किया है; परन्तु यदि तुम इस पहाड़ से यह कहोगे, ‘उठ और समुद्र में जा गिर’, तो वैसा ही हो जाएगा।#मत 17:20 22और जो कुछ तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।”
येशु के अधिकार पर शंका
23येशु मन्दिर में लौटे। जब वह लोगों को शिक्षा दे रहे थे#मक 11:27-33; लू 20:1-8 , तब महापुरोहित और समाज के धर्मवृद्ध उनके पास आ कर बोले, “आप किस अधिकार से ये कार्य कर रहे हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया है?#यो 2:18 ” 24येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ। 25योहन का बपतिस्मा किस की ओर से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से?#21:25 इस पद का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, ‘बपतिस्मा देने का अधिकार योहन को कहाँ से प्राप्त हुआ था? परमेश्वर की ओर से या मनुष्यों की ओर से?’”
वे यह कहते हुए आपस में तर्क-वितर्क करने लगे, “यदि हम कहें : ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेंगे, ‘तब आप लोगों ने योहन पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 26यदि हम कहें : ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें जनता से डर लगता है; क्योंकि सब योहन को नबी मानते हैं।”#मत 14:5 27इसलिए उन्होंने येशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” इस पर येशु ने उन से कहा, “तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊंगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ।
दो पुत्रों का दृष्टान्त
28“तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जा कर कहा, ‘बेटा! जाओ, आज अंगूर-उद्यान में काम करो।’ 29उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊंगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।#मत 7:21 30पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ, पिताजी! मैं जाता हूँ।’ किन्तु वह नहीं गया। 31दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने येशु को उत्तर दिया, “पहले ने।” इस पर येशु ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : चुंगी-अधिकारी और वेश्याएँ तुम लोगों से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर रहे हैं।#लू 18:14 32योहन धर्म का मार्ग दिखाते हुए तुम्हारे पास आए और तुम लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया, परन्तु चुंगी-अधिकारियों और वेश्याओं ने उन पर विश्वास किया। तुम ने यह देखा; फिर भी तुम ने बाद में पश्चात्ताप नहीं किया और न उन पर विश्वास किया।#लू 7:29
अंगूर-उद्यान का दृष्टान्त
33“एक और दृष्टान्त सुनो : एक जमींदार था।#मक 12:1-12; लू 20:9-19 उसने अंगूर का एक उद्यान लगाया और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा। उसने उसमें रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे किसानों को पट्टे पर दे कर वह परदेश चला गया।#मत 25:14; यश 5:1-2 34फसल का समय आने पर उसने अपनी फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए किसानों के पास अपने सेवकों को भेजा। 35किन्तु किसानों ने उसके सेवकों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला। 36इसके बाद उसने पहले से अधिक सेवकों को भेजा और किसानों ने उनके साथ भी वैसा ही किया। 37अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 38किन्तु पुत्र को देख कर किसानों ने एक दूसरे से कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी पैतृक-सम्पत्ति पर कब्जा कर लें।’#मत 27:18 39उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंगूर-उद्यान से बाहर निकाल कर मार डाला। 40जब अंगूर-उद्यान का स्वामी लौटेगा, तो वह उन किसानों का क्या करेगा?” 41उन्होंने येशु से कहा, “वह उन दुष्टों का सर्वनाश करेगा और अपने अंगूर-उद्यान का पट्टा दूसरे किसानों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे”।
42येशु ने उनसे कहा, “क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढ़ा : ‘कारीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर फेंक दिया था, वही कोने की नींव का पत्थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है और हमारी दृष्टि में अद्भुत है।’?#भज 118:22-23; प्रे 4:11; रोम 9:33; 1 पत 2:6-8 43इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ : परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा और ऐसे राष्ट्र को दिया जाएगा, जो उसका उचित फल उत्पन्न करेगा।
44“[जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चूर-चूर हो जाएगा और जिस पर यह पत्थर गिरेगा, उस को पीस डालेगा।#दान 2:34-35,44-45]”#21:44 कुछ प्राचीन प्रतियों में यह पद नहीं मिलता
45महापुरोहित और फरीसी येशु के दृष्टान्तों को सुनकर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं। 46वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु वे जनता से डरते थे; क्योंकि वह येशु को नबी मानती थी।
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मत्ती 21
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यरूशलेम में येशु का प्रवेश
1जब येशु यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बेतफगे के समीप आए, तब येशु ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा#मक 11:1-10; लू 19:29-38; यो 12:12-19 , 2“सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें खूंटे से बंधी हुई एक गदही मिलेगी और उसके साथ उसका एक बछेरू होगा। उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ। 3यदि कोई तुम से कुछ बोले, तो कह देना, ‘प्रभु को इनकी जरूरत है।’ और वह उन्हें तुरन्त भेज देगा।#21:3 अथवा, ‘और वह (अर्थात् प्रभु) उन्हें शीघ्र ही भेज देंगे।’ ”#मत 26:18 4यह इसलिए हुआ कि नबी का यह कथन पूरा हो जाए :
5“सियोन नगरी से कहो :
देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है।
वह विनम्र है।
वह गदही पर और उसके बछेरू पर,
वरन् लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार
है।”#जक 9:9; यश 62:11
6दोनों शिष्य चले गए। येशु ने जैसा आदेश दिया, उन्होंने वैसा ही किया। 7वे गदही और उसके बछेरू को ले आए। उन्होंने उन पर अपनी चादरें बिछा दीं, जिन पर येशु बैठ गए। 8भीड़ में से बहुत-से लोगों ने अपनी चादरें रास्ते में बिछा दीं। कुछ लोगों ने पेड़ों की डालियाँ काट कर रास्ते में फैला दीं।#2 रा 9:13 9येशु के आगे-आगे और उनके पीछे आनेवाले लोग यह नारा लगा रहे थे, “दाऊद के वंशज की जय हो! जय हो!#21:9 मूल में, ‘होशाना’ अर्थात् ‘हमें बचा’। इस शब्द का प्रयोग जय-जयकार के अर्थ में होता है। धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आता है! सर्वोच्च स्वर्ग में जय हो! जय हो!”#भज 118:25-26; 2 शम 14:4 10जब येशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया तब समस्त नगर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन हैं?” 11जनसमूह ने कहा, “यह गलील प्रदेश के नासरत-निवासी नबी येशु हैं।”#मत 21:46
मन्दिर से बिक्री करने वालों को निकालना
12येशु ने मन्दिर में प्रवेश किया और वहाँ से उन सब को बाहर निकाल दिया, जो मन्दिर में क्रय-विक्रय कर रहे थे।#मक 11:11-24; लू 19:45-48; यो 2:14-16 उन्होंने सराफों की मेजें और कबूतर बेचने वालों की चौकियाँ उलट दीं#मत 3:1 13और उन से कहा, “धर्मग्रन्थ में लिखा है : ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा,’ परन्तु तुम लोग उसे लुटेरों का अड्डा बना रहे हो।”#यश 56:7; यिर 7:11
बालकों के मुँह से जय-जयकार
14अन्धे और लंगड़े येशु के पास मन्दिर में आए और येशु ने उन को स्वस्थ कर दिया। 15जब महापुरोहितों और शास्त्रियों ने उनके आश्चर्यपूर्ण कार्य देखे और बालकों को मन्दिर में यह जयघोष करते सुना − “दाऊद के वंशज की जय!” तो वे क्रुद्ध हो गए।#भज 118:25 16वे येशु से बोले, “क्या तुम सुन रहे हो कि ये क्या कह रहे हैं?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “हाँ, सुन रहा हूँ। क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में यह नहीं पढ़ा, ‘बालकों और दुधमुँहे बच्चों के मुख से तूने अपना गुणगान कराया’?”#भज 8:2 (यू. पाठ) 17तब येशु उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बेतनियाह गाँव को चले गए और रात वहीं व्यतीत की।
अंजीर का पेड़
18सबेरे नगर को लौटते समय येशु को भूख लगी। 19उन्होंने मार्ग के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखा। वह उसके पास आए। परन्तु उन्होंने उस में पत्तों को छोड़कर और कुछ नहीं पाया। येशु ने पेड़ से कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और उसी क्षण अंजीर का वह पेड़ सूख गया। #लू 13:6 20यह देख कर शिष्य अचम्भे में पड़ गये और बोले, “अंजीर का यह पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया है?” 21येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : यदि तुम विश्वास करो और सन्देह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे, जो मैंने अंजीर के पेड़ के साथ किया है; परन्तु यदि तुम इस पहाड़ से यह कहोगे, ‘उठ और समुद्र में जा गिर’, तो वैसा ही हो जाएगा।#मत 17:20 22और जो कुछ तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।”
येशु के अधिकार पर शंका
23येशु मन्दिर में लौटे। जब वह लोगों को शिक्षा दे रहे थे#मक 11:27-33; लू 20:1-8 , तब महापुरोहित और समाज के धर्मवृद्ध उनके पास आ कर बोले, “आप किस अधिकार से ये कार्य कर रहे हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया है?#यो 2:18 ” 24येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ। 25योहन का बपतिस्मा किस की ओर से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से?#21:25 इस पद का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, ‘बपतिस्मा देने का अधिकार योहन को कहाँ से प्राप्त हुआ था? परमेश्वर की ओर से या मनुष्यों की ओर से?’”
वे यह कहते हुए आपस में तर्क-वितर्क करने लगे, “यदि हम कहें : ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेंगे, ‘तब आप लोगों ने योहन पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 26यदि हम कहें : ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें जनता से डर लगता है; क्योंकि सब योहन को नबी मानते हैं।”#मत 14:5 27इसलिए उन्होंने येशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” इस पर येशु ने उन से कहा, “तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊंगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ।
दो पुत्रों का दृष्टान्त
28“तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जा कर कहा, ‘बेटा! जाओ, आज अंगूर-उद्यान में काम करो।’ 29उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊंगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।#मत 7:21 30पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ, पिताजी! मैं जाता हूँ।’ किन्तु वह नहीं गया। 31दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने येशु को उत्तर दिया, “पहले ने।” इस पर येशु ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : चुंगी-अधिकारी और वेश्याएँ तुम लोगों से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर रहे हैं।#लू 18:14 32योहन धर्म का मार्ग दिखाते हुए तुम्हारे पास आए और तुम लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया, परन्तु चुंगी-अधिकारियों और वेश्याओं ने उन पर विश्वास किया। तुम ने यह देखा; फिर भी तुम ने बाद में पश्चात्ताप नहीं किया और न उन पर विश्वास किया।#लू 7:29
अंगूर-उद्यान का दृष्टान्त
33“एक और दृष्टान्त सुनो : एक जमींदार था।#मक 12:1-12; लू 20:9-19 उसने अंगूर का एक उद्यान लगाया और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा। उसने उसमें रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे किसानों को पट्टे पर दे कर वह परदेश चला गया।#मत 25:14; यश 5:1-2 34फसल का समय आने पर उसने अपनी फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए किसानों के पास अपने सेवकों को भेजा। 35किन्तु किसानों ने उसके सेवकों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला। 36इसके बाद उसने पहले से अधिक सेवकों को भेजा और किसानों ने उनके साथ भी वैसा ही किया। 37अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 38किन्तु पुत्र को देख कर किसानों ने एक दूसरे से कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी पैतृक-सम्पत्ति पर कब्जा कर लें।’#मत 27:18 39उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंगूर-उद्यान से बाहर निकाल कर मार डाला। 40जब अंगूर-उद्यान का स्वामी लौटेगा, तो वह उन किसानों का क्या करेगा?” 41उन्होंने येशु से कहा, “वह उन दुष्टों का सर्वनाश करेगा और अपने अंगूर-उद्यान का पट्टा दूसरे किसानों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे”।
42येशु ने उनसे कहा, “क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढ़ा : ‘कारीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर फेंक दिया था, वही कोने की नींव का पत्थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है और हमारी दृष्टि में अद्भुत है।’?#भज 118:22-23; प्रे 4:11; रोम 9:33; 1 पत 2:6-8 43इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ : परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा और ऐसे राष्ट्र को दिया जाएगा, जो उसका उचित फल उत्पन्न करेगा।
44“[जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चूर-चूर हो जाएगा और जिस पर यह पत्थर गिरेगा, उस को पीस डालेगा।#दान 2:34-35,44-45]”#21:44 कुछ प्राचीन प्रतियों में यह पद नहीं मिलता
45महापुरोहित और फरीसी येशु के दृष्टान्तों को सुनकर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं। 46वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु वे जनता से डरते थे; क्योंकि वह येशु को नबी मानती थी।
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