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मत्ती 7

7
दूसरों पर दोष नहीं लगाना
1“दोष नहीं लगाओ, जिससे तुम पर भी दोष न लगाया जाये;#रोम 2:1; 1 कुर 4:5 क्‍योंकि 2जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्‍हारे लिए भी नापा जाएगा।#मक 4:24 3जब तुम्‍हें अपनी ही आँख के लट्ठे का पता नहीं, तो तुम अपने भाई-बहिन की आँख का तिनका क्‍यों देखते हो? 4जब तुम्‍हारी ही आँख में लट्ठा है, तो तुम अपने भाई-बहिन से कैसे कह सकते हो, ‘लाओ, मैं तुम्‍हारी आँख का तिनका निकाल दूँ?’ 5ओ ढोंगी! पहले अपनी ही आँख का लट्ठा निकाल। तभी तू अपने भाई-बहिन की आँख से तिनका निकालने के लिए अच्‍छी तरह देख सकेगा।
अपवित्रीकरण
6“पवित्र वस्‍तु कुत्तों को मत दो और अपने मोती सूअरों के सामने मत फेंको। कहीं ऐसा न हो कि वे उन्‍हें अपने पैरों तले रौंदें और पलट कर तुम्‍हें फाड़ डालें।#मत 10:11; नीति 9:7
प्रार्थना का प्रभाव
7“माँगो तो तुम्‍हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ तो तुम्‍हारे लिए खोला जाएगा।#मक 11:24; लू 11:9-13; यिर 29:13-14; यो 14:13; 16:23 8क्‍योंकि जो माँगता है, उसे मिलता है; जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोला जाता है।
9“यदि तुम्‍हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन पिता है जो उसे पत्‍थर देगा 10अथवा मछली माँगे, तो उसे साँप देगा? 11#याक 1:17 बुरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्‍चों को सहज ही अच्‍छी वस्‍तुएँ देते हो, तो तुम्‍हारा स्‍वर्गिक पिता अपने माँगने वालों को अच्‍छी वस्‍तुएँ क्‍यों नहीं देगा?
स्‍वर्णिम नियम
12“हर समय दूसरों से अपने प्रति जैसा व्‍यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही व्‍यवहार किया करो; क्‍योंकि व्‍यवस्‍था-ग्रन्‍थ और नबियों की यही शिक्षा है।#मत 22:39-40; रोम 13:8-10; तोब 4:15
दो मार्ग
13“सँकरे द्वार से प्रवेश करो। चौड़ा है वह फाटक और विस्‍तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्‍या बड़ी है।#लू 13:24; यो 10:7-9; प्रव 15:17 14किन्‍तु सँकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्‍या थोड़ी है।#मत 19:24; प्रे 14:22
झूठे नबी
15“झूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के वेश में तुम्‍हारे पास आते हैं, किन्‍तु वे भीतर से खूंखार भेड़िये हैं।#मत 24:4-5,24; प्रे 20:29 16उनके फलों से तुम उन्‍हें पहचान जाओगे। क्‍या लोग कंटीली झाड़ियों से अंगूर या ऊंट-कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?#याक 3:12; प्रव 27:6 17इस तरह हर अच्‍छा पेड़ अच्‍छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है।#मत 12:33 18अच्‍छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्‍छे फल। 19जो पेड़ अच्‍छा फल नहीं देता, उसे काटा और आग में झोंक दिया जाता है।#मत 3:10 20इसलिए उनके फलों से ही तुम उन्‍हें पहचान जाओगे।
कथनी और करनी
21“जो लोग मुझे ‘प्रभु! प्रभु!’ कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्‍वर्गराज्‍य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्‍वर्गिक पिता की इच्‍छा पूरी करता है, वही स्‍वर्गराज्‍य में प्रवेश करेगा।#मत 21:29; रोम 2:13; याक 1:22,25; 2:14; 1 कुर 12:3 22उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ‘प्रभु! प्रभु! क्‍या हम ने आपके नाम से नबूवत नहीं की? आपके नाम से भूतों को नहीं निकाला? आपके नाम से सामर्थ्य के अनेक कार्य नहीं किए?’#यिर 14:14; 27:15; लू 13:25-27; 1 कुर 13:1-2 23तब मैं उन्‍हें साफ-साफ बता दूँगा, ‘मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियो! मुझ से दूर हटो।’#मत 13:41; 25:41; 2 तिम 2:19; भज 6:8
पक्‍की और कच्‍ची नींव
24“जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्‍य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।#मत 7:21 25पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और वेगपूर्वक उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्‍योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।
26“जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्‍तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया। 27पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।”#यहेज 13:10-11
28जब येशु ने अपना यह उपदेश समाप्‍त किया, तब जनसमूह उनकी शिक्षा सुनकर आश्‍चर्यचकित हो गया;#मत 11:1; 13:53; 19:1; 26:1; मक 1:22; लू 4:32 29क्‍योंकि येशु उनके शास्‍त्रियों की तरह नहीं बल्‍कि अधिकार के साथ उन्‍हें शिक्षा देते थे।#यो 7:46

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