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नीतिवचन 10

10
राजा सुलेमान के नीतिवचनों का संग्रह
सामान्‍य अक्षरों में
1राजा सुलेमान के नीतिवचन :
बुद्धिमती संतान के कारण
पिता आनन्‍दित रहता है;
पर मूर्ख संतान से मां को दु:ख होता है।#नीति 15:20; 17:25
2जो धन अन्‍याय से प्राप्‍त किया जाता है,
उससे किसी को लाभ नहीं होता;
पर धार्मिकता मनुष्‍य को मृत्‍यु से बचाती है।
3प्रभु धार्मिक मनुष्‍य को भूखा मरने नहीं देता;
पर वह दुर्जन की लालसा पर
पानी फेर देता है।
4गरीबी का कारण आलस्‍य है;
पर कठोर परिश्रम से
गरीब मनुष्‍य भी धनवान हो जाता है।
5ग्रीष्‍म ऋतु में,
अपने आहार की व्‍यवस्‍था करनेवाला
मनुष्‍य
बुद्धिमान है;
पर, जो मनुष्‍य फसल की कटाई के समय
सोता है,
वह निंदा का कारण बनता है।
6धार्मिक मनुष्‍य के सिर पर
आशिषों की वर्षा होती है;
पर दुर्जन के मुंह में
हिंसा ही हिंसा भरी रहती है।
7धार्मिक मनुष्‍य की मृत्‍यु के बाद भी
लोग उसका स्‍मरण कर,
दूसरों को आशीर्वाद देते हैं,
पर दुर्जन का नाम शीघ्र मिट जाता है।
8बुद्धिमान मनुष्‍य हृदय से
आज्ञाओं पर ध्‍यान देता है;
पर बकवादी मूर्ख पूर्णत: नष्‍ट हो जाता है।
9जिसका आचरण खरा है, वह सुरक्षित है;
किन्‍तु कुटिल मार्ग पर चलनेवाले का
आचरण अन्‍त में प्रकट हो जाता है।
10जो मनुष्‍य आंखों से संकेत की भाषा में बात
करता है,
वह दूसरों को दु:ख देता है;
पर साहस से चेतावनी देनेवाला मनुष्‍य
शान्‍ति स्‍थापित करता है।#10:10 यूनानी अनुवाद से।
11धार्मिक मनुष्‍य का मुख जीवन का झरना है;
पर दुर्जन के मुख में हिंसा निवास करती है!
12घृणा लड़ाई-झगड़ों को जन्‍म देती है;
पर प्रेम सब अपराधों को क्षमा कर देता है।#1 कुर 13:4,7; याक 5:20; 1 पत 4:8
13जिस मनुष्‍य में समझ है,
उसके ओंठों पर बुद्धि निवास करती है;
पर मूर्ख को छड़ी से हांकना पड़ता है।
14बुद्धिमान अपनी बातों से ज्ञान का कोष एकत्र
करता है,
पर जब मूर्ख बक-बक करता है,
तब उसका विनाश समीप आ जाता है!
15धनी का धन उसका दृढ़ नगर है;
किन्‍तु गरीब की गरीबी
उसके विनाश का कारण है।
16धार्मिक मनुष्‍य का परिश्रम
उसको जीवन को ओर ले जाता है;
पर दुर्जन की कमाई
उसको पाप की ओर अग्रसर करती है।
17जो मनुष्‍य शिक्षा की बातों पर ध्‍यान देता है,
वह जीवन के मार्ग पर चलता है;
पर जो व्यक्‍ति चेतावनी की उपेक्षा करता है;
वह जीवन के मार्ग से भटक जाता है।
18जो मनुष्‍य घृणा को मन में छिपाकर रखता है,
उसके ओंठों से झूठ निकलता है;
निन्‍दा करनेवाला मनुष्‍य
वास्‍तव में मूर्ख होता है।
19जो मनुष्‍य अधिक बोलता है,
वह अपराध करने से बच नहीं सकता;
पर अपनी जीभ को वश में रखनेवाला
मनुष्‍य बुद्धिमान है!#याक 1:19; 3:8
20धार्मिक मनुष्‍य के शब्‍द
सर्वोत्तम चांदी के सदृश बहुमूल्‍य होते हैं;
पर दुर्जन के विचारों का कोई मूल्‍य नहीं
होता।
21धार्मिक मनुष्‍य के शब्‍दों से
अनेक लोगों का भला होता है;
पर मूर्ख मनुष्‍य समझ के अभाव में मर जाता है।
22प्रभु की आशिष से ही
मनुष्‍य धनवान बनता है।
आशिष के साथ प्रभु दु:ख नहीं देता।#10:22 अथवा, ‘उस धन में कठोर परिश्रम कुछ नहीं बढ़ाता’। #भज 127:1
23मुर्ख व्यक्‍ति पाप कर्म को
हंसी की बात समझता है,
पर समझदार व्यक्‍ति
सदाचरण को प्रशंसा की बात मानता है।
24जिस बात से दुर्जन डरता है,
वह उस पर आती है;
पर धार्मिक मनुष्‍य की मनोकामनाएं पूर्ण
होती हैं।
25बवंडर आता है तो दुर्जन उड़ जाता है;
पर धार्मिक मनुष्‍य सदा टिका रहता है।#मत 7:24-27
26जैसे सिरका दांतों को,
और धुआं आंखों को अप्रिय है
वैसे ही भेजनेवाले को आलसी दूत
अप्रिय होता है।
27प्रभु की भक्‍ति करने से
मनुष्‍य लम्‍बी आयु प्राप्‍त करता है;
पर दुर्जन असमय में ही मर जाता है।
28धार्मिक मनुष्‍य की आशाएं पूर्ण होती हैं,
और वह आनन्‍दित होता है,
पर दुर्जन की आशा
निराशा में बदल जाती है।
29निष्‍कपट मनुष्‍य का गढ़ है− प्रभु;
किन्‍तु प्रभु दुष्‍कर्मियों का संहार करता है।
30धार्मिक मनुष्‍य अपने देश में
स्‍थायी रूप से निवास करेगा,
पर दुर्जन का डेरा उखड़ जाएगा।#भज 37:29
31धार्मिक मनुष्‍य के ओंठों से
बुद्धि के वचन निकलते हैं;
पर कुटिल जिह्‍वा काट दी जाएगी!
32धार्मिक मनुष्‍य समझ-बूझकर
ग्रहणयोग्‍य बातें ही बोलता है,
पर दुर्जन के ओंठों से
कुटिल बातें ही निकलती हैं।

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