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नीतिवचन 16

16
1मनुष्‍य मन में योजनाएं बनाता है,
परन्‍तु उनको सफल करना−
यह प्रभु की इच्‍छा पर निर्भर है।
2मनुष्‍य अपनी दृष्‍टि में
अपने प्रत्‍येक आचरण को शुद्ध मानता है;
किन्‍तु प्रभु उसकी आत्‍मा को तौलता है। #नीति 21:2
3अपना कार्य प्रभु को सौंप दो,
तो तुम्‍हारी योजनाएं अवश्‍य सफल होंगी।
4प्रभु ने हर एक वस्‍तु को विशेष उद्देश्‍य के
लिए रचा है;
अत: दुर्जन निस्‍सन्‍देह दु:ख भोगेगा! #रोम 9:22
5प्रत्‍येक अहंकारी व्यक्‍ति से
प्रभु घृणा करता है;
मैं निश्‍चय के साथ कहता हूं:
प्रभु उसको अवश्‍य दण्‍ड देगा।
6दुष्‍कर्म का प्रायश्‍चित्त करुणा और सच्‍चाई है;
प्रभु की भक्‍ति करने से
मनुष्‍य बुराई से बचा रहता है।#तोब 12:9
7जब प्रभु मनुष्‍य के आचरण से
प्रसन्न होता है,
तब वह उसके शत्रुओं को भी
उसके मित्र बना देता है।#उत 26:28
8अन्‍याय से कमाए गए अपार धन से,
धर्म से कमाया गया थोड़ा धन श्रेष्‍ठ है!
9मनुष्‍य मन में अपना मार्ग तो निश्‍चित करता है
पर उस पर चलना, यह प्रभु के हाथ में होता है।
10राजा के मुंह में दिव्‍य वाणी निवास करती है,
अत: न्‍याय करने में वह गलती नहीं करता।
11सच्‍चा तराजू और धर्म-कांटा,
नाप-तौल के सब बाट
प्रभु ने ही निश्‍चित किए हैं।
12दुष्‍कर्म करना राजा के लिए
घृणित कार्य है;
क्‍योंकि उसका सिंहासन
धर्म से ही स्‍थिर रहता है।
13धर्म-वचन कहनेवाले मनुष्‍य से
राजा प्रसन्न होता है;
वह सच बोलनेवाले व्यक्‍ति से प्रेम करता है।
14राजा का क्रोध मृत्‍यु-दूत के समान है,
पर बुद्धिमान मनुष्‍य
उसको ठण्‍डा कर देता है।
15राजा के मुख की चमक
जीवन प्रदान करती है;
उसकी कृपा मानो वर्षा के बादल हैं,
जो फसल पकने के समय
जल बरसाते हैं।
16बुद्धि की प्राप्‍ति
सोना को प्राप्‍त करने से श्रेष्‍ठ है;
समझदार बनना
चांदी को पाने से कहीं अधिक मूल्‍यवान है।
17बुराई से दूर रहना
निष्‍कपट मनुष्‍य का सदाचरण है।
जो मनुष्‍य अपने आचरण की चौकसी
करता है,
वह अपने जीवन की रक्षा करता है।
18मनुष्‍य विनाश के पहले अहंकारी,
और पतन के पूर्व घमण्‍डी हो जाता है।
19घमण्‍डी मनुष्‍य के साथ
उसकी लूट-मार में हिस्‍सा बांटने की
अपेक्षा
गरीब मनुष्‍य के साथ
विनम्रता से रहना श्रेष्‍ठ है।
20जब मनुष्‍य प्रभु के वचन पर ध्‍यान देता है,
तब वह सफल होता है;
धन्‍य है वह मनुष्‍य
जो प्रभु पर भरोसा करता है। #भज 2:12
21जिसके मस्‍तिष्‍क में बुद्धि का निवास है,
वह समझदार कहलाता है;
मधुर वचन बोलने से
मनुष्‍य अपनी विद्या में वृद्धि करता है।
22जिस मनुष्‍य में बुद्धि है,
उसके पास जीवन का झरना है।
पर मूर्ख व्यक्‍ति की ताड़ना
स्‍वयं उसकी मूर्खता है।
23बुद्धिमान मनुष्‍य का मन
उसके वचन को ज्ञान से परिपूर्ण करता है,
और उसकी वाणी में विद्या की वृद्धि करता है।
24मीठे वचन मधु की तरह हैं
जो प्राण को मीठा लगता है,
जो शरीर को स्‍वस्‍थ रखता है।
25एक ऐसा भी मार्ग है
जो मनुष्‍य को उचित प्रतीत होता है;
किन्‍तु वह पथिक को मृत्‍यु के
द्वार पर पहुंचाता है।#नीति 14:12
26मजदूर की भूख ही उसको काम करने के
लिए प्रेरित करती है;
पेट ही उसको विवश करता है।
27अधर्मी मनुष्‍य बुराई की योजनाएं बनाता है;
उसकी वाणी मानो धधकती अग्‍नि है।#याक 3:6
28कुटिल मनुष्‍य झगड़ा उत्‍पन्न करता है,
कानाफूसी करनेवाला घनिष्‍ठ मित्रों में भी
फूट डाल देता है।#प्रव 28:13-26
29हिंसा करनेवाला मनुष्‍य
अपने पड़ोसी को फुसलाता है,
और उसको बुरे मार्ग पर ले जाता है।
30आंख से सैन करनेवाला मनुष्‍य
छल-कपट की योजनाएं बनाता है;
और जो ओंठ चबाता है,
वह दुष्‍कर्म करता है।
31जिस सिर के बाल
दीर्घ आयु के कारण पके हैं,
वह सुन्‍दर मुकुट के सदृश है।
यह मुकुट सदाचरण के द्वारा प्राप्‍त होता है।
32विलम्‍ब से क्रोध करनेवाला मनुष्‍य
महा योद्धा से श्रेष्‍ठ है;
अपने मन पर संयम रखनेवाला मनुष्‍य
उस विजेता से श्रेष्‍ठ है
जो नगर को जीतता है।
33निर्णय करने के लिए चिट्ठी डाली जाती है;
पर निर्णय करना प्रभु के हाथ में है।

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