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नीतिवचन 20

20
1शराब शराबी को उपहास का पात्र
बनाती है,
मदिरा उससे हल्‍ला-गुल्‍ला करवाती है;
जो मनुष्‍य उसके रास्‍ते पर चलता है,
वह बुद्धिमान नहीं है।#नीति 23:29-32
2राजा का क्रोध सिंह की दहाड़ के समान
भयावह होता है;
जो मनुष्‍य राजा का क्रोध भड़काता है,
वह अपने प्राण से हाथ धोता है।
3लड़ाई-झगड़ों में हाथ न डालना
मनुष्‍य के लिए गौरव की बात है;
मूर्ख मनुष्‍य ही झगड़े के लिए
सदा तैयार रहता है।
4आलसी किसान खरीफ के मौसम में
हल नहीं जोतता,
इसलिए जब वह कटनी के समय
फसल खोजता है,
तब उसके हाथ कुछ नहीं लगता।
5मनुष्‍य के मन में विचार
अथाह जल के समान हैं;
पर मनुष्‍य की समझ
उनको वहां से निकाल लेती है।
6अनेक मनुष्‍य अपनी मित्रता का दावा करते हैं;
पर सच्‍चा मित्र किसे मिल सकता है?#मत 6:2
7उस पिता की सन्‍तान धन्‍य है,
जो धार्मिक है,
जिसका आचरण निर्दोष है।
8जो राजा न्‍याय-आसन पर बैठता है,
वह आंखों से ही अन्‍याय को छांट लेता है।
9कौन यह दावा कर सकता है,
कि मैंने अपना हृदय शुद्ध कर लिया है,
मैं पाप से मुक्‍त होकर
पवित्र हो गया हूँ?#1 यो 1:8
10दो तरह के बाट और दो तरह के नाप
दोनों से प्रभु घृणा करता है।
11बच्‍चा भी अपने कामों से पहचाना जाता है
कि उसका आचरण कैसा है,
भला अथवा बुरा।
12कान जो सुनते हैं,
आंखें जो देखती हैं,
दोनों को प्रभु ने बनाया है।#नि 4:11; भज 94:9
13नींद को प्‍यार मत करो,
अन्‍यथा तुम गरीब हो जाओगे;
आंखें खोलकर कठोर परिश्रम करो
तो तुम्‍हें रोटी का अभाव न होगा।
14मोल लेते समय खरीदार कहता है,
“वस्‍तु अच्‍छी नहीं है।”
पर कम कीमत पर वस्‍तु खरीद लेने के बाद
वह शेखी मारता है।
15मनुष्‍य के पास बहुत सोना और मणि हो
सकते हैं,
परन्‍तु बुद्धिमान मनुष्‍य की वाणी ही अमोल
मोती है।
16यदि कोई मनुष्‍य अजनबी की जमानत देता है,
तो उसको अजनबी के वस्‍त्र गिरवी रख
लेना चाहिए;
और यदि वह किसी विदेशी की जमानत
देता है
तो उससे बंधक की वस्‍तु लेना चाहिए।#नीति 27:13
17छल-कपट से कमाई गई रोटी
मनुष्‍य को खाते समय मीठी लगती है,
परन्‍तु कुछ समय के पश्‍चात्
उसका मुंह कंकड़ों से भर जाता है।
18योजनाएं विचार-विमर्श से निश्‍चित की
जाती हैं,
युद्ध भी बुद्धिपूर्ण मार्ग-दर्शन में लड़ा
जाता है।
19जो मनुष्‍य यहां-वहां गप्‍प मारता फिरता है,
वह गुप्‍त बातें भी प्रकट कर देता है,
अत: मूर्खतापूर्ण बातें करनेवाले की
संगति मत करो।
20जो अपने माता-पिता को अपशब्‍द कहता है,
उसकी धन-सम्‍पत्ति#20:20 अथवा, ‘उसका दीपक’। पूर्णत: नष्‍ट हो जाएगी। #नि 21:17
21जो सम्‍पत्ति आरम्‍भ में
बिना दीर्घ परिश्रम के प्राप्‍त होती है,
वह अन्‍त में अधिक समय तक नहीं
टिकती।
22यह मत कहो, “मैं बुराई का बदला लूंगा,”
पर प्रभु पर भरोसा रखो,
वही तुम्‍हारी सहायता करेगा।#रोम 12:17
23दो तरह के बाटों से प्रभु घृणा करता है;
झूठा तराजू रखना, उचित नहीं है।
24मनुष्‍य के सब पग
प्रभु ही निश्‍चित करता है,
तब मनुष्‍य अपना मार्ग
कैसे समझ सकता है?
25जो मनुष्‍य उतावली में कहता है,
‘यह प्रभु को अर्पित है’,
और उसकी मन्नत मानकर
पुन: विचार करता है,
तो वह जाल में फंसता है।
26बुद्धिमान राजा दुर्जनों को छांट कर
अलग करता,
और उन पर दावने का पहिया चलवाता है।
27मनुष्‍य की चेतना प्रभु का दीपक है,
जो मनुष्‍य के सब भीतरी अंगों को
प्रकाश देता है।
28यदि राजा निष्‍ठावान और सच्‍चा है,
तो वह सुरक्षित रहता है,
धर्मपूर्ण आचरण से
उसका सिंहासन टिका रहता है।
29जवान पुरुष की सुन्‍दरता
उसका बल होता है;
पर बूढ़े मनुष्‍य की शोभा
उसके सफेद बाल हैं।
30जो घाव चोट लगने से होते हैं,
उनसे बुराई दूर होती है;
कोड़ों की मार
हमारे शरीर के भीतरी अंगों को भी
स्‍वस्‍थ कर देती है।

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