अय्यूब 7
7
अय्यूब का दुःख और बेचैनी
1“क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती?
क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते? (अय्यू. 14:5,13,14)
2जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, या
मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे;
3वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ,
और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं। (अय्यू. 15:31)
4जब मैं लेट जाता, तब कहता हूँ,
‘मैं कब उठूँगा?’ और रात कब बीतेगी?
और पौ फटने तक छटपटाते-छटपटाते थक जाता हूँ।
5 मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है#7:5 मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है: नि:सन्देह अय्यूब अपनी रोगावस्था के बारे में कह रहा है और घावों में कीड़े पड़ जाने और अन्य रोगों की चर्चा की गई है। ;
मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है। (यशा. 14:11)
6मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक फुर्ती से चलनेवाले हैं
और निराशा में बीते जाते हैं।
7“याद कर#7:7 याद कर: हे परमेश्वर यह स्पष्टतः परमेश्वर को पुकारना है। अपने प्राण की पीड़ा के कारण अय्यूब अपने सृजनहार की ओर आँखें और मन लगाता है और कारण जानने की याचना करता है कि उसके जीवन को समाप्त करने का कारण उसके पास क्या है। कि मेरा जीवन वायु ही है;
और मैं अपनी आँखों से कल्याण फिर न देखूँगा।
8जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूँगा;
तेरी आँखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूँगा।
9जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है,
वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहाँ से नहीं लौट सकता;
10वह अपने घर को फिर लौट न आएगा,
और न अपने स्थान में फिर मिलेगा।
11“इसलिए मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा;
अपने मन का खेद खोलकर कहूँगा;
और अपने जीव की कड़वाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूँगा।
12क्या मैं समुद्र हूँ, या समुद्री अजगर हूँ,
कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?
13जब जब मैं सोचता हूँ कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी,
और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा;
14तब-तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता,
और दर्शनों से भयभीत कर देता है;
15यहाँ तक कि मेरा जी फांसी को,
और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।
16मुझे अपने जीवन से घृणा आती है;
मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता।
मेरा जीवनकाल साँस सा है, इसलिए मुझे छोड़ दे।
17 मनुष्य क्या है कि तू उसे महत्त्व दे#7:17 मनुष्य क्या है कि तू उसे महत्त्व दे: परमेश्वर की तुलना में मनुष्य इतना महत्वहीन है कि यह पूछा जा सकता है कि उसे अपनी आवश्यकताओं के लिए इतनी सावधानी से क्यों प्रदान करना चाहिए। उसके कल्याण के लिए इतना पर्याप्त प्रावधान क्यों करें?,
और अपना मन उस पर लगाए,
18और प्रति भोर को उसकी सुधि ले,
और प्रति क्षण उसे जाँचता रहे?
19तू कब तक मेरी ओर आँख लगाए रहेगा,
और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूँ?
20हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैंने पाप तो किया होगा, तो मैंने तेरा क्या बिगाड़ा?
तूने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है,
यहाँ तक कि मैं अपने ऊपर आप ही बोझ हुआ हूँ?
21और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता?
और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता?
अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊँगा,
और तू मुझे यत्न से ढूँढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।”
Currently Selected:
अय्यूब 7: IRVHin
Highlight
Share
Copy
Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in
copyright © 2017, 2018 Bridge Connectivity Solutions