भजन संहिता 56
56
उत्पीड़कों से राहत के लिये प्रार्थना
प्रधान बजानेवाले के लिये योनतेलेखद्दोकीम में दाऊद का मिक्ताम जब पलिश्तियों ने उसको गत नगर में पकड़ा था
1हे परमेश्वर, मुझ पर दया कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं;
वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं।
2मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं,
क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझसे लड़ते हैं वे बहुत हैं।
3जिस समय मुझे डर लगेगा,
मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा।
4परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा,
परमेश्वर पर मैंने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूँगा।
कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है?
5वे दिन भर मेरे वचनों को, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैं;
उनकी सारी कल्पनाएँ मेरी ही बुराई करने की होती है#56:5 उनकी सारी कल्पनाएँ मेरी ही बुराई करने की होती है: उनकी सब योजनाएँ, युक्तियाँ और उद्देश्य मेरी भलाई से दूर है। वे सदैव मुझे हानि पहुँचाने का अवसर खोजते हैं। ।
6वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं;
वे मेरे कदमों को देखते भालते हैं
मानो वे मेरे प्राणों की घात में ताक लगाए बैठे हों।
7क्या वे बुराई करके भी बच जाएँगे?
हे परमेश्वर, अपने क्रोध से देश-देश के लोगों को गिरा दे!
8तू मेरे मारे-मारे फिरने का हिसाब रखता है;
तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले!
क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है#56:8 क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है: क्या वे तेरी स्मरण पुस्तक में अंकित करके लिखे नहीं गए कि तू उन्हें भूल न जाए??
9तब जिस समय मैं पुकारूँगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे।
यह मैं जानता हूँ, कि परमेश्वर मेरी ओर है।
10परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा,
यहोवा की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा।
11मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूँगा।
मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?
12हे परमेश्वर, तेरी मन्नतों का भार मुझ पर बना है;
मैं तुझको धन्यवाद-बलि चढ़ाऊँगा।
13क्योंकि तूने मुझ को मृत्यु से बचाया है;
तूने मेरे पैरों को भी फिसलने से बचाया है,
ताकि मैं परमेश्वर के सामने जीवितों के उजियाले में चलूँ#56:13 ताकि मैं परमेश्वर के सामने .... चलूँ: उसकी उपस्थिति में उसकी मित्रता और उसकी कृपा का सुख भोंगू। फिरूँ।
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उत्पीड़कों से राहत के लिये प्रार्थना
प्रधान बजानेवाले के लिये योनतेलेखद्दोकीम में दाऊद का मिक्ताम जब पलिश्तियों ने उसको गत नगर में पकड़ा था
1हे परमेश्वर, मुझ पर दया कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं;
वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं।
2मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं,
क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझसे लड़ते हैं वे बहुत हैं।
3जिस समय मुझे डर लगेगा,
मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा।
4परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा,
परमेश्वर पर मैंने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूँगा।
कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है?
5वे दिन भर मेरे वचनों को, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैं;
उनकी सारी कल्पनाएँ मेरी ही बुराई करने की होती है#56:5 उनकी सारी कल्पनाएँ मेरी ही बुराई करने की होती है: उनकी सब योजनाएँ, युक्तियाँ और उद्देश्य मेरी भलाई से दूर है। वे सदैव मुझे हानि पहुँचाने का अवसर खोजते हैं। ।
6वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं;
वे मेरे कदमों को देखते भालते हैं
मानो वे मेरे प्राणों की घात में ताक लगाए बैठे हों।
7क्या वे बुराई करके भी बच जाएँगे?
हे परमेश्वर, अपने क्रोध से देश-देश के लोगों को गिरा दे!
8तू मेरे मारे-मारे फिरने का हिसाब रखता है;
तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले!
क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है#56:8 क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है: क्या वे तेरी स्मरण पुस्तक में अंकित करके लिखे नहीं गए कि तू उन्हें भूल न जाए??
9तब जिस समय मैं पुकारूँगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे।
यह मैं जानता हूँ, कि परमेश्वर मेरी ओर है।
10परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा,
यहोवा की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा।
11मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूँगा।
मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?
12हे परमेश्वर, तेरी मन्नतों का भार मुझ पर बना है;
मैं तुझको धन्यवाद-बलि चढ़ाऊँगा।
13क्योंकि तूने मुझ को मृत्यु से बचाया है;
तूने मेरे पैरों को भी फिसलने से बचाया है,
ताकि मैं परमेश्वर के सामने जीवितों के उजियाले में चलूँ#56:13 ताकि मैं परमेश्वर के सामने .... चलूँ: उसकी उपस्थिति में उसकी मित्रता और उसकी कृपा का सुख भोंगू। फिरूँ।
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