प्रकाशितवाक्य 10
10
स्वर्गदूत और छोटी पुस्तक
1फिर मैंने एक और शक्तिशाली स्वर्गदूत#10:1 शक्तिशाली स्वर्गदूत: उसने सात स्वर्गदूतों को पहले देखा था जिन्होंने तुरहियां फूँकी थी प्रका. 8:2, उसने छः स्वर्गदूतों को सफलता पूर्वक तुरही फूँकते हुए देखा था, अब वह एक और स्वर्गदूत को देखता हैं, जो उन सबसे अलग हैं। को बादल ओढ़े हुए स्वर्ग से उतरते देखा; और उसके सिर पर मेघधनुष था, और उसका मुँह सूर्य के समान और उसके पाँव आग के खम्भे के समान थे; 2और उसके हाथ में एक छोटी सी खुली हुई पुस्तक थी। उसने अपना दाहिना पाँव समुद्र पर, और बायाँ पृथ्वी पर रखा; 3और ऐसे बड़े शब्द से चिल्लाया, जैसा सिंह गरजता है; और जब वह चिल्लाया तो गर्जन के सात शब्द सुनाई दिए। 4जब सातों गर्जन के शब्द सुनाई दे चुके, तो मैं लिखने पर था, और मैंने स्वर्ग से यह शब्द सुना, “जो बातें गर्जन के उन सात शब्दों से सुनी हैं, उन्हें गुप्त रख#10:4 गुप्त रख: अर्थ यहाँ हैं, वह उन बातों को न लिखें, परन्तु उन्होंने जो सुना हैं वह अपने मन में ही रखें, जैसे की मानो उस पर मुहर लगा दी गई है जिसे तोड़ना मना है।, और मत लिख।” (दानि. 8:26, दानि. 12:4) 5जिस स्वर्गदूत को मैंने समुद्र और पृथ्वी पर खड़े देखा था; उसने अपना दाहिना हाथ स्वर्ग की ओर उठाया (व्यव. 32:40) 6और उसकी शपथ खाकर जो युगानुयुग जीवित है, और जिसने स्वर्ग को और जो कुछ उसमें है, और पृथ्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उसमें है सृजा है उसी की शपथ खाकर कहा कि “अब और देर न होगी।” (प्रका. 4:11) 7वरन् सातवें स्वर्गदूत के शब्द देने के दिनों में, जब वह तुरही फूँकने पर होगा, तो परमेश्वर का वह रहस्य पूरा हो जाएगा#10:7 परमेश्वर का वह रहस्य पूरा हो जाएगा: इसका मतलब यहाँ हैं, परमेश्वर का उद्देश्य या सच्चाई जो छुपा हुआ था, और इससे पहले मनुष्यों को नहीं बताया गया था।, जिसका सुसमाचार उसने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया था। (आमो. 3:7, इफि. 3:3) 8जिस शब्द करनेवाले को मैंने स्वर्ग से बोलते सुना था, वह फिर मेरे साथ बातें करने लगा, “जा, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृथ्वी पर खड़ा है, उसके हाथ में की खुली हुई पुस्तक ले ले।” 9और मैंने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, “यह छोटी पुस्तक मुझे दे।” और उसने मुझसे कहा, “ले, इसे खा ले; यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुँह में मधु जैसी मीठी लगेगी।” (यहे. 3:1-3) 10अतः मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया। वह मेरे मुँह में मधु जैसी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया। 11तब मुझसे यह कहा गया, “तुझे बहुत से लोगों, जातियों, भाषाओं, और राजाओं के विषय में फिर भविष्यद्वाणी करनी होगी।”
Currently Selected:
प्रकाशितवाक्य 10: IRVHin
Highlight
Share
Copy
Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in
copyright © 2017, 2018 Bridge Connectivity Solutions