प्रकाशितवाक्य 5
5
मुहरबन्द पुस्तक कौन खोल सकता है?
1और जो सिंहासन पर बैठा था, मैंने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। (यहे. 2:9-10) 2फिर मैंने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था “इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?” 3और न स्वर्ग में#5:3 और न स्वर्ग में: इसका अभिप्राय यह हैं कि स्वर्ग में ऐसा कोई नहीं था – जो उसे खोल सकता था - विशेषकर यह सृजित प्राणियों की ओर इशारा करता हैं।, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला#5:3 न .... उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला: यह उनकी शक्ति से परे नहीं था कि केवल पुस्तक को देखें जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि यूहन्ना स्वयं उस पुस्तक को उसके हाथ में देख रहा था जो उस सिंहासन पर बैठा था।। 4तब मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने, या उस पर दृष्टि करने के योग्य कोई न मिला। 5इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, “मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है।” (उत्प. 49:9, यशा. 11:1, यशा. 11:10)
6तब मैंने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानो एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा; उसके सात सींग और सात आँखें थीं; ये परमेश्वर की सातों आत्माएँ हैं, जो सारी पृथ्वी पर भेजी गई हैं। (जक. 4:10) 7उसने आकर उसके दाहिने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा था, वह पुस्तक ले ली, (प्रका. 5:1) 8जब उसने पुस्तक ले ली, तो वे चारों प्राणी और चौबीसों प्राचीन उस मेम्ने के सामने गिर पड़े; और हर एक के हाथ में वीणा और धूप से भरे हुए सोने के कटोरे थे, ये तो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएँ हैं। (प्रका. 5:14, प्रका. 19:4)
9और वे यह नया गीत गाने लगे,
“तू इस पुस्तक के लेने, और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है;
क्योंकि तूने वध होकर अपने लहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से
परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है। (प्रका. 5:12)
10“और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया;
और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” (प्रका. 1:6)
स्वर्गदूतों द्वारा मेम्ने की प्रशंसा
11जब मैंने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियों और उन प्राचीनों के चारों ओर बहुत से स्वर्गदूतों का शब्द सुना, जिनकी गिनती लाखों और करोड़ों की थी। (दानि. 7:10) 12और वे ऊँचे शब्द से कहते थे, “वध किया हुआ मेम्ना ही सामर्थ्य, और धन, और ज्ञान, और शक्ति, और आदर, और महिमा, और स्तुति के योग्य है#5:12 स्तुति के योग्य है: यहाँ अर्थ है कि वह योग्य था कि उसे इन सब बातों का श्रेय प्राप्त हो।।” (प्रका. 5:9) 13फिर मैंने स्वर्ग में, और पृथ्वी पर, और पृथ्वी के नीचे, और समुद्र की सब रची हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उनमें हैं, यह कहते सुना, “जो सिंहासन पर बैठा है, उसकी, और मेम्ने की स्तुति, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।” 14और चारों प्राणियों ने आमीन कहा, और प्राचीनों ने गिरकर दण्डवत् किया।
Currently Selected:
प्रकाशितवाक्य 5: IRVHin
Highlight
Share
Copy
Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in
copyright © 2017, 2018 Bridge Connectivity Solutions