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हुज़ूर ईसा का नासरत में आना
1फिर हुज़ूर ईसा वहां से अपने शहर को रवाना हुए, और उन के शागिर्द भी उन के साथ गये। 2जब सबत का दिन आया, आप मक़ामी यहूदी इबादतगाह तालीम देने लगे, बहुत से लोग हुज़ूर ईसा की तालीम सुन कर हैरान हुए और कहने लगे।
“इस ने ये सारी बातें कहां से सीखी हैं? ये कैसी हिक्मत है जो इन्हें अता की गई है? और उन के हाथों कैसे-कैसे मोजिज़े होते हैं? 3क्या ये बढ़ई नहीं? जो मरियम का बेटा और याक़ूब, योसेस#6:3 योसेस यूनानी ज़बान में यूसुफ़ की एक शक्ल है।, यहूदाह, और शमऊन के भाई नहीं? क्या इन की बहनें हमारे यहां नहीं रहतीं?” और उन्होंने उन के सबब से ठोकर खाई।
4चुनांचे हुज़ूर ईसा ने उन से कहा, “नबी की बेक़द्री उस के अपने शहर, रिश्तेदारों और घर वालों में ही होती है और कहीं नहीं।” 5और आप चंद बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें शिफ़ा देने, के सिवा कोई बड़ा मोजिज़ा वहां न दिखा सके। 6हुज़ूर ईसा ने वहां के लोगों की बेएतक़ादी पर तअज्जुब किया।
बारह शागिर्दों का मुनादी के लिये भेजा जाना
और वह वहां से निकल कर इर्दगिर्द के गांव और क़स्बों में तालीम देने लगे। 7हुज़ूर ईसा ने अपने, बारह शागिर्दों को बुलाया और उन्हें दो-दो कर के रवाना किया और उन्हें बदरूहों को निकालने का इख़्तियार बख़्शा।
8उन्हें ये भी हिदायत दी, “अपने सफ़र के लिये सिवाए लाठी के और कुछ न लेना, न रोटी न थैला, न कमरबन्द में पैसे। 9जूती तो पहनना मगर दो-दो कुर्ते नहीं। 10हुज़ूर ईसा ने उन से ये भी कहा के जहां भी तुम किसी घर में दाख़िल हो, तो उस शहर से रुख़्सत होने तक उसी घर में ठहरे रहना। 11अगर किसी जगह लोग तुम्हें क़बूल न करें और कलाम सुनना न चाहें तो वहां से रुख़्सत होने तक अपने पांव की गर्द भी वहां से झाड़ देना ताके वह उन के ख़िलाफ़ गवाही दे।”
12चुनांचे वह रवाना हुए और मुनादी करने लगे के तौबा करो। 13उन्होंने बहुत सी बदरूहों को निकाला और बहुत से बीमारों को तेल मलकर शिफ़ा बख़्शी।
हज़रत यहया पाक-ग़ुस्ल देने वाले का क़त्ल
14हेरोदेस बादशाह ने हुज़ूर ईसा का ज़िक्र सुना, क्यूंके उन का नाम काफ़ी मशहूर हो चुका था। बाज़ लोग कहते थे, “हज़रत यहया पाक-ग़ुस्ल देने वाले मुर्दों में से जी उठे हैं, और इसीलिये तो उन में मोजिज़े दिखाने की क़ुदरत है।”
15मगर बाज़ कहते थे, “वह एलियाह हैं।”
और बाज़ लोगों का कहना था, “वह पुराने नबियों जैसे एक नबी हैं।”
16जब हेरोदेस ने ये सुना, तो उस ने कहा, “यहया पाक-ग़ुस्ल देने वाला जिस का मैंने सर क़लम करवा दिया था, फिर से जी उठा है!”
17असल में हेरोदेस ने हज़रत यहया को पकड़वा कर क़ैदख़ाने में डाल दिया था, वजह ये थी के हेरोदेस, ने अपने भाई फ़िलिप्पुस की बीवी, हेरोदियास से ब्याह कर लिया था। 18और हज़रत यहया हेरोदेस से कह रहे थे, “तुझे अपने भाई की बीवी अपने पास रखना जायज़ नहीं है।” 19हेरोदियास भी हज़रत यहया से दुश्मनी रखती थी और उन्हें क़त्ल करवाना चाहती थी। लेकिन मौक़ा नहीं मिलता था, 20इसलिये के हज़रत यहया, हेरोदेस बादशाह की नज़र में एक रास्तबाज़ और पाक आदमी थे। वह उन का बड़ा एहतिराम किया करता था और उन की हिफ़ाज़त करना अपना फ़र्ज़ समझता था, वह हज़रत यहया की बातें सुन कर परेशान तो ज़रूर होता था; लेकिन सुनता शौक़ से था।
21लेकिन हेरोदियास को एक दिन मौक़ा मिल ही गया। जब हेरोदेस ने अपनी सालगिरह की ख़ुशी में अपने उम्रा-ए-दरबार और फ़ौजी अफ़सरान और गलील के रईसों की दावत की। 22इस मौक़े पर हेरोदियास की बेटी ने महफ़िल में आकर रक़्स, किया और हेरोदेस बादशाह और उस के मेहमानों को इस क़दर ख़ुश कर दिया के बादशाह लड़की से मुख़ातिब होकर कहने लगा।
तू जो चाहे मुझ से मांग ले, “मैं तुझे दूंगा।” 23बल्के इस ने क़सम खाकर कहा, “जो कुछ तू मुझ से मांगेगी, मैं तुझे दूंगा चाहे वह मेरी आधी सल्तनत ही क्यूं न हो।”
24लड़की ने बाहर जा कर अपनी मां, से पूछा, “मैं क्या मांगूं?”
तब उस की मां ने जवाब दिया, “यहया पाक-ग़ुस्ल देने वाले का सर।”
25लड़की फ़ौरन बादशाह के पास वापस आई और अर्ज़ करने लगी: “मुझे अभी एक थाल में यहया पाक-ग़ुस्ल देने वाले का सर चाहिये।”
26बादशाह को बेहद अफ़सोस हुआ, लेकिन वह मेहमानों के सामने क़सम दे चुका था, इसलिये बादशाह इन्कार न कर सका। 27चुनांचे बादशाह ने उसी वक़्त हिफ़ाज़ती दस्ता के एक सिपाही को हुक्म दिया के वह जाये, और हज़रत यहया का सर ले आये। सिपाही ने क़ैदख़ाने में जा कर, हज़रत यहया का सर तन से जुदा किया, 28और उसे एक थाल में रखकर लाया और लड़की के हवाले कर दिया, और लड़की ने उसे ले जा कर अपनी मां को दे दिया। 29जब हज़रत यहया के शागिर्दों ने ये ख़बर सुनी तो वह आये और उन की लाश उठाकर ले गये और उन्हें एक क़ब्र में दफ़न कर दिया।
पांच हज़ार आदमियों को खिलाना
30हुज़ूर ईसा के पास रसूल वापस आये और जो कुछ उन्होंने काम किये और तालीम सिखाई थी उन सब को आप से बयान किया। 31आप ने उन से कहा, “हम किसी वीरान और अलग जगह पर चलें और थोड़ी देर आराम करें, क्यूंके उन के पास बहुत से लोगों की आमद-ओ-रफ़्त लगी रहती थी और उन्हें खाने तक की फ़ुर्सत न मिलती थी।”
32तब हुज़ूर ईसा कश्ती में बैठ कर दूर एक वीरान जगह की तरफ़ रवाना हुए। 33लोगों ने उन्हें जाते देख लिया और पहचान लिया। और तमाम शहरों के लोग इकट्-ठे होकर पैदल ही दौड़े और आप से पहले वहां पहुंच गये। 34जब हुज़ूर ईसा कश्ती से किनारे पर उतरे तो आप ने एक बड़े हुजूम को देखा, और आप को उन पर बड़ा तरस आया, क्यूंके वह लोग उन भेड़ों की मानिन्द थे जिन का कोई गल्लेबान न हो। लिहाज़ा वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगे।
35इसी दौरान शाम हो गई, और शागिर्दों ने उन के पास आकर कहा, “ये जगह वीरान है, और दिन ढल चुका है। 36इन लोगों को रुख़्सत कर दीजिये ताके वह आस-पास की बस्तीयों और गांव में चले जायें और ख़रीद कर कुछ खा पी लें।”
37लेकिन हुज़ूर ईसा ने जवाब में कहा, “तुम ही इन्हें खाने को दो।”
शागिर्दों ने कहा, “क्या हम जायें और उन के खाने के लिये दो सौ दीनार#6:37 दो सौ दीनार यानी एक दीनार एक दिन की मज़दूरी थी।! की रोटियां ख़रीद कर लायें?”
38उन्होंने पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? जाओ और देखो।”
उन्होंने दरयाफ़्त कर के, बताया, “पांच रोटियां और दो मछलियां हैं।”
39तब हुज़ूर ईसा ने लोगों को छोटी-छोटी क़तारें बना कर सब्ज़ घास पर बैठ जाने का हुक्म दिया। 40और वह सौ-सौ और पचास-पचास की क़तारें बना कर बैठ गये। 41हुज़ूर ईसा ने वह पांच रोटियां और दो मछलियां लीं और आसमान, की तरफ़ नज़र उठाकर उन पर बरकत मांगी। फिर आप ने उन रोटियों के टुकड़े तोड़ कर शागिर्दों को दिये और कहा के इन्हें लोगों के सामने रखते जायें। इसी तरह ख़ुदावन्द ने दो मछलियां भी उन सब लोगों में तक़्सीम कर दीं। 42और सब लोग खाकर सेर हो गये, 43रोटियों और मछलियों के टुकड़ों की बारह टोकरियां भर कर उठाई गईं। 44जिन लोगों ने वह रोटियां खाई थीं उन में मर्द ही पांच हज़ार थे।
हुज़ूर ईसा का पानी पर चलन
45लोगों को रुख़्सत करने से पहले उन्होंने शागिर्दों पर ज़ोर दिया, तुम फ़ौरन कश्ती पर सवार होकर झील के पार बैतसैदा चले जाओ, ताके मैं यहां लोगों को रुख़्सत कर सकूं। 46उन्हें रुख़्सत करने के बाद वह दुआ करने के लिये पहाड़ी पर चले गये।
47रात के आख़िर में, कश्ती झील के दरमियानी हिस्से में पहुंच चुकी थी, और वह किनारे पर तन्हा थे। 48हुज़ूर ईसा ने जब देखा के हवा मुख़ालिफ़ होने की वजह से शागिर्दों को कश्ती को खेने में बड़ी मुश्किल पेश आ रही है, लिहाज़ा वह रात चौथे पहर#6:48 चौथे पहर रात के तीन बजे के क़रीब। के क़रीब झील पर चलते हुए उन के पास पहुंचे, और चाहते थे के उन से आगे निकल जायें, 49लेकिन शागिर्दों ने उन्हें पानी पर चलते, देखा तो आप को भूत समझ कर, शागिर्द ख़ूब चिल्लाने लगे, 50क्यूंके सब उन्हें देखकर बहुत ही ज़्यादा ख़ौफ़ज़दा हो गये थे।
मगर आप ने फ़ौरन उन से बात की और कहा, “हिम्मत रखो! मैं हूं। डरो मत।” 51तब वह उन के साथ कश्ती में चढ़ गये और हवा थम गई। शागिर्द अपने दिलों में निहायत ही हैरान हुए, 52क्यूंके वह रोटियों के मोजिज़ा से भी कोई सबक़ न सीख पाये थे; और उन के दिल सख़्त के सख़्त ही रहे।
53झील को पार करने के बाद, वह गनेसरत के इलाक़े में पहुंचे और कश्ती को किनारे से लगा दिया। 54जब वह कश्ती से उतरे तो लोगों ने हुज़ूर ईसा को एक दम पहचान लिया। 55पस लोग उन की मौजूदगी की ख़बर सुन कर हर जानिब से दौड़ पड़े और बीमारों को बिछौनों पर डाल कर उन के पास लाने लगे। 56और हुज़ूर ईसा गांव या शहरों या बस्तीयों में जहां कहीं जाते थे लोग बीमारों को बाज़ारों में रास्तों पर रख देते थे। और उन की मिन्नत करते थे के उन्हें सिर्फ़ अपनी पोशाक, का किनारा छू लेने दें और जितने हुज़ूर ईसा छू लेते थे। शिफ़ा पा जाते थे।