“अर तुम मा बटि इन्द्रयो मनखि कु च जु एक गढ़ बणौण चान्दु हो, अर पैलि बैठि के खर्चा का बारा मा हिसाब-किताब नि कैरो, कि गढ़ बणाणु खुणि मेरी हैसियत छै भि च कि नि च? अर जब उ मनखि बिन सोच्यां बुनियाद तैं रखी द्यो पर पूरु बणै नि सैको, त मि तुमतै बतै देन्दु कि, तब सब दिखण वळा लोग वेकू मजाक उड़ौण लगि जाला। अर बोलला कि, ‘देखा यू मनखि गढ़ बणाण चान्दु छौ, मगर येन पूरु नि बणै सैकी।’