योहन पुस्तक परिचय
पुस्तक परिचय
संत योहन के अनुसार शुभ समाचार प्रभु येशु मसीह को परमेश्वर के शाश्वत ‘शब्द’ के रूप में प्रस्तुत करता है। मानव येशु वह शब्द हैं, जिसने देह धारण कर हमारे मध्य निवास किया (1:14)। प्रस्तुत शुभ समाचार को लिखने का प्रयोजन स्वयं शुभ समाचार में इस प्रकार बताया गया है : “येशु ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं” और हम अपने इस विश्वास के द्वारा उनके नाम से जीवन प्राप्त कर सकते हैं (20:31)।
“शुभ समाचार” के पहले अध्याय के आरंभिक वाक्यों में लेखक इस देहधारी शब्द के विषय में हमें बताता है कि अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण प्रभु येशु ने पिता को प्रकट किया है। शुभ समाचार के प्रथम भाग में (1:19−12:50) सात आश्चर्यपूर्ण चिह्नों अथवा महान घटनाओं का विवरण है, जिनसे प्रकट होता है कि प्रभु येशु ही जीवन-ज्योति और मुक्तिदाता हैं; वह परमेश्वर के पुत्र हैं, जिनको भेजने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की थी। इन घटनाओं के विवरण के साथ-साथ प्रभु येशु के प्रवचन हैं। इन प्रवचनों के माध्यम से आश्चर्यपूर्ण घटनाओं के अर्थ और उद्देश्य को प्रकट किया गया है। प्रथम भाग के अन्त में पाठक को बताया गया कि एक ओर तो कुछ लोगों ने प्रभु येशु में विश्वास किया और उनके अनुयायी बन गए; किन्तु दूसरी ओर कुछ लोगों ने प्रभु येशु का विरोध किया और उन पर विश्वास करना अस्वीकार कर दिया (12:37-50)।
प्रथम भाग के पश्चात् अध्याय 13 से 17 में विस्तार से यह बताया गया है कि प्रभु येशु अपनी गिरफ्तारी के पूर्व अपने शिष्यों के साथ सत्संग करते हैं, और उन्हें आगामी घटनाओं के लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं। वह उन्हें धैर्य बन्धाते हैं, उन्हें विश्वास में दृढ़ करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं कि जब वह क्रूस पर चढ़ाए जाएँगे, मार डाले जाएँगे, किन्तु महिमा में जी उठेंगे, तो शिष्य निराश और हतोत्साहित न हों।
अंतिम अध्यायों में (अध्याय 18 से 20 तक) प्रभु येशु की गिरफ्तारी, मुकद्दमा, क्रूस पर चढ़ाया जाना और उनकी मृत्यु, कबर में दफनाया जाना और तीसरे दिन पुनर्जीवित होना तथा शिष्यों को दर्शन देना−इन सब घटनाओं का विवरण है। अध्याय 21 में, परिशिष्ट के रूप में एक अतिरिक्त दर्शन एवं अद्भुत चिह्न मिलता है, और प्रिय शिष्य की साक्षी को सत्य माना गया।
संत योहन के अनुसार शुभ समाचार में इस बात पर जोर डाला गया है कि प्रभु येशु के माध्यम से परमेश्वर उस विश्वासी को शाश्वत जीवन प्रदान करता है, जो यह विश्वास करता है कि प्रभु येशु ही मार्ग, सत्य और जीवन हैं। इस शुभ समाचार ग्रन्थ को पढ़ते समय हमारा ध्यान इस ओर भी आकर्षित होता है कि लेखक हमारे दैनिक जीवन में काम आनेवाली सामान्य वस्तुओं को ‘प्रतीक अथवा चिह्न’ रूप में प्रयुक्त करता है, और उन सामान्य वस्तुओं द्वारा आत्मिक, शाश्वत सच्चाइयों को अभिव्यक्त करता है : जैसे जल, रोटी, ज्योति, चरवाहा और भेड़, दाखलता (अंगूर-लता) और दाख। न केवल इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण के कारण, वरन् यरूशलेम के तीर्थ-पर्वों पर केन्द्रित अपने विशिष्ट घटनाक्रम के कारण भी यह चौथा शुभ समाचार तीन अन्य “सहदर्शी” शुभ समाचारों से अलग, एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साक्षी के रूप में प्रकट हुआ है।
विषय वस्तु की रूपरेखा
प्राक्कथन 1:1-18
योहन बपतिस्मादाता की साक्षी तथा प्रभु येशु के प्रथम शिष्य 1:19-51
प्रभु येशु का सेवा-कार्य 2:1−12:50
यरूशलेम नगर में अन्तिम शिक्षाएँ एवं जीवनदान 13:1−19:42
पुनरुत्थान तथा शिष्यों को दर्शन 20:1-31
उपसंहार : गलील प्रदेश में शिष्यों को दर्शन 21:1-25
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योहन पुस्तक परिचय
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संत योहन के अनुसार शुभ समाचार प्रभु येशु मसीह को परमेश्वर के शाश्वत ‘शब्द’ के रूप में प्रस्तुत करता है। मानव येशु वह शब्द हैं, जिसने देह धारण कर हमारे मध्य निवास किया (1:14)। प्रस्तुत शुभ समाचार को लिखने का प्रयोजन स्वयं शुभ समाचार में इस प्रकार बताया गया है : “येशु ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं” और हम अपने इस विश्वास के द्वारा उनके नाम से जीवन प्राप्त कर सकते हैं (20:31)।
“शुभ समाचार” के पहले अध्याय के आरंभिक वाक्यों में लेखक इस देहधारी शब्द के विषय में हमें बताता है कि अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण प्रभु येशु ने पिता को प्रकट किया है। शुभ समाचार के प्रथम भाग में (1:19−12:50) सात आश्चर्यपूर्ण चिह्नों अथवा महान घटनाओं का विवरण है, जिनसे प्रकट होता है कि प्रभु येशु ही जीवन-ज्योति और मुक्तिदाता हैं; वह परमेश्वर के पुत्र हैं, जिनको भेजने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की थी। इन घटनाओं के विवरण के साथ-साथ प्रभु येशु के प्रवचन हैं। इन प्रवचनों के माध्यम से आश्चर्यपूर्ण घटनाओं के अर्थ और उद्देश्य को प्रकट किया गया है। प्रथम भाग के अन्त में पाठक को बताया गया कि एक ओर तो कुछ लोगों ने प्रभु येशु में विश्वास किया और उनके अनुयायी बन गए; किन्तु दूसरी ओर कुछ लोगों ने प्रभु येशु का विरोध किया और उन पर विश्वास करना अस्वीकार कर दिया (12:37-50)।
प्रथम भाग के पश्चात् अध्याय 13 से 17 में विस्तार से यह बताया गया है कि प्रभु येशु अपनी गिरफ्तारी के पूर्व अपने शिष्यों के साथ सत्संग करते हैं, और उन्हें आगामी घटनाओं के लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं। वह उन्हें धैर्य बन्धाते हैं, उन्हें विश्वास में दृढ़ करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं कि जब वह क्रूस पर चढ़ाए जाएँगे, मार डाले जाएँगे, किन्तु महिमा में जी उठेंगे, तो शिष्य निराश और हतोत्साहित न हों।
अंतिम अध्यायों में (अध्याय 18 से 20 तक) प्रभु येशु की गिरफ्तारी, मुकद्दमा, क्रूस पर चढ़ाया जाना और उनकी मृत्यु, कबर में दफनाया जाना और तीसरे दिन पुनर्जीवित होना तथा शिष्यों को दर्शन देना−इन सब घटनाओं का विवरण है। अध्याय 21 में, परिशिष्ट के रूप में एक अतिरिक्त दर्शन एवं अद्भुत चिह्न मिलता है, और प्रिय शिष्य की साक्षी को सत्य माना गया।
संत योहन के अनुसार शुभ समाचार में इस बात पर जोर डाला गया है कि प्रभु येशु के माध्यम से परमेश्वर उस विश्वासी को शाश्वत जीवन प्रदान करता है, जो यह विश्वास करता है कि प्रभु येशु ही मार्ग, सत्य और जीवन हैं। इस शुभ समाचार ग्रन्थ को पढ़ते समय हमारा ध्यान इस ओर भी आकर्षित होता है कि लेखक हमारे दैनिक जीवन में काम आनेवाली सामान्य वस्तुओं को ‘प्रतीक अथवा चिह्न’ रूप में प्रयुक्त करता है, और उन सामान्य वस्तुओं द्वारा आत्मिक, शाश्वत सच्चाइयों को अभिव्यक्त करता है : जैसे जल, रोटी, ज्योति, चरवाहा और भेड़, दाखलता (अंगूर-लता) और दाख। न केवल इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण के कारण, वरन् यरूशलेम के तीर्थ-पर्वों पर केन्द्रित अपने विशिष्ट घटनाक्रम के कारण भी यह चौथा शुभ समाचार तीन अन्य “सहदर्शी” शुभ समाचारों से अलग, एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साक्षी के रूप में प्रकट हुआ है।
विषय वस्तु की रूपरेखा
प्राक्कथन 1:1-18
योहन बपतिस्मादाता की साक्षी तथा प्रभु येशु के प्रथम शिष्य 1:19-51
प्रभु येशु का सेवा-कार्य 2:1−12:50
यरूशलेम नगर में अन्तिम शिक्षाएँ एवं जीवनदान 13:1−19:42
पुनरुत्थान तथा शिष्यों को दर्शन 20:1-31
उपसंहार : गलील प्रदेश में शिष्यों को दर्शन 21:1-25
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