तुम्हारे शब्दों से अनेकों के लड़खड़ाते पैर स्थिर हुए हैं;
तुमसे ही निर्बल घुटनों में बल-संचार हुआ है.
अब तुम स्वयं उसी स्थिति का सामना कर रहे हो तथा तुम अधीर हो रहे हो;
उसने तुम्हें स्पर्श किया है और तुम निराशा में डूबे हुए हो!
क्या तुम्हारे बल का आधार परमेश्वर के प्रति तुम्हारी श्रद्धा नहीं है?
क्या तुम्हारी आशा का आधार तुम्हारा आचरण खरा होना नहीं?