‘यदि मैं कभी किसी राष्ट्र या राज्य के सम्बन्ध में यह घोषित करता हूं कि मैं उसको रोपूंगा, और उसकी जड़ें मजबूत करूंगा; किन्तु यदि वह मेरी दृष्टि में दुष्कर्म करता है, मेरे वचन को नहीं सुनता है, तो मैं पछताता हूं कि मैंने उस राष्ट्र की भलाई करने का निश्चय किया था।