तुम्हारे शब्दों ने गिरते हुए मनुष्य को सम्भाला,
और कांपते हुए घुटनों को स्थिर किया।
पर अब, जब तुम पर विपत्ति आई
तो तुमने धीरज छोड़ दिया!
विपत्ति ने तुम्हें छुआ
तो तुम घबरा गए!
क्या परमेश्वर की भक्ति तुम्हारा सहारा नहीं
है?
क्या तुम्हारा आदर्श-आचरण ही तुम्हारी
आशा नहीं है?