उद्बोधक 1:2-3
उद्बोधक 1:2-3 HSS
“बेकार ही बेकार!” दार्शनिक का कहना है. “बेकार ही बेकार! बेकार है सब कुछ.” सूरज के नीचे मनुष्य द्वारा किए गए कामों से उसे क्या मिलता है?
“बेकार ही बेकार!” दार्शनिक का कहना है. “बेकार ही बेकार! बेकार है सब कुछ.” सूरज के नीचे मनुष्य द्वारा किए गए कामों से उसे क्या मिलता है?