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स्वर्गदूत बोकीम में
1याहवेह का दूत गिलगाल से बोकीम आया. उसने उनसे कहा, “तुम्हें मिस्र देश से निकालकर मैं उस देश में ले आया हूं, जिसकी शपथ मैंने तुम्हारे पूर्वजों से की थी. मैंने कहा था, ‘तुमसे की गई अपनी वाचा मैं कभी न तोड़ूंगा. 2तुमसे आशा यह की गई थी कि तुम इस देश के मूल निवासियों से कोई वाचा न बांधोगे. तुम उनकी वेदियां तोड़ डालोगे.’ 3इस कारण मैंने यह भी कहा, ‘मैं उन्हें तुम्हारे सामने से न निकालूंगा. वे तुम्हारे पंजर के कांटे हो जाएंगे तथा उनके देवता तुम्हारे लिए फंदा.’ ”
4जब याहवेह के दूत ने सारे इस्राएल के वंश से यह कहा, लोग ऊंची आवाज में रोने लगे. 5इस कारण उन्होंने उस स्थान नाम बोकीम#2:5 बोकीम अर्थात् रोनेवाले रखा. उन्होंने वहां याहवेह को बलि चढ़ाई.
यहोशू की मृत्यु—एक युग का अंत
6जब यहोशू सभा को विदा कर चुके, इस्राएल के वंश अपनी-अपनी मीरास को लौट गए, कि वे देश को अपने अधीन कर लें. 7ये यहोशू तथा यहोशू के बाद पुरनियों के सारे जीवन में याहवेह की सेवा और स्तुति करते रहे. ये उन सभी महान कामों के चश्मदीद गवाह थे, जो याहवेह द्वारा इस्राएल की भलाई के लिए किए गए थे.
8याहवेह का दास यहोशू, नून के पुत्र की मृत्यु हो गई. इस समय उनकी उम्र एक सौ दस वर्ष की थी. 9उन्होंने उन्हें उन्हीं की मीरास की सीमा के अंदर तिमनथ-हेरेस में गाड़ दिया. यह स्थान गाश पर्वत के उत्तर में एफ्राईम के पहाड़ी इलाके में है.
10वह सारी पीढ़ी भी अपने पुरखों के साथ मिट्टी में जा मिली. उसके बाद एक नई पीढ़ी का उदय हुआ, जिसे न तो याहवेह का ज्ञान था, न ही उन्हें यह मालूम था कि याहवेह ने इस्राएल की भलाई के लिए क्या-क्या किया था. 11इस्राएल के वंशजों ने वह किया, जो याहवेह की नज़र में गलत है. उन्होंने बाल की उपासना शुरू कर दी. 12उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्वर, याहवेह को, जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लाए थे, छोड़ दिया. उन्होंने उन देवताओं का अनुसरण करना शुरू कर दिया, जो उन लोगों के देवता थे, जो उनके आस-पास रह रहे थे. वे उन्हीं देवताओं की उपासना करने लगे. यह करके उन्होंने याहवेह का क्रोध भड़का दिया. 13उन्होंने याहवेह को छोड़कर बाल तथा अश्तोरेथ की उपासना शुरू कर दी. 14इस्राएल पर याहवेह का क्रोध भड़क उठा. याहवेह ने उन्हें उनके अधीन कर दिया, और वे उन्हें लूटने लगे. याहवेह ने उन्हें उनके शत्रुओं के हाथों में बेच दिया, जो उनके आस-पास रहते थे. इस कारण वे अपने शत्रुओं के सामने ठहर न सके. 15वे जहां कहीं जाते, याहवेह का हाथ उनकी हानि ही के लिए उठा रहता था. यह सब वही था, जिसकी चेतावनी याहवेह दे चुके थे, जिसकी शपथ याहवेह ले चुके थे. इस्राएली बड़ी मुश्किल में आ पड़े थे.
16तब याहवेह ने न्यायियों का उदय किया. इन न्यायियों ने इस्राएल के वंशजों को उन लोगों से छुड़ाया, जो उनके साथ लूटपाट कर रहे थे. 17इतना होने पर भी उन्होंने अपने प्रशासकों की आज्ञाओं का पालन नहीं किया. वे पराए देवताओं की उपासना करने के द्वारा परमेश्वर के विरुद्ध व्यभिचार, अर्थात् विश्वासघात, करते रहे. याहवेह के आदेशों का पालन करने की अपने पूर्वजों की नीतियों से वे जल्द ही दूर हो गए. उन्होंने अपने पूर्वजों के समान व्यवहार करना छोड़ दिया. 18जब कभी याहवेह ने उनके लिए प्रशासक का उदय किए, याहवेह उस प्रशासक के साथ साथ रहे और वह प्रशासक जीवन भर उन्हें उनके शत्रुओं से छुटकारा दिलाया करता था; इसलिये कि याहवेह उनके शत्रुओं द्वारा उन पर की जा रही ताड़ना से हुई पीड़ा की कराहट के कारण, करुणा से दुःखी हो जाते थे. 19मगर होता यह था, कि जब उस प्रशासक की मृत्यु होती थी, वे पराए देवताओं का अनुसरण करने के द्वारा, उनकी उपासना करने के द्वारा तथा उनके सामने झुककर नमन करने के द्वारा अपने पुरखों से कहीं अधिक बुराई करने में लौट जाते थे. न तो उन्होंने अपने इन बुरे कामों को छोड़ा, न ही अपने हठीले स्वभाव को.
20इस पर इस्राएल के विरुद्ध याहवेह का क्रोध भड़क उठा. याहवेह ने विचार किया “इसलिये कि इस देश ने मेरी उस वाचा का उल्लंघन किया है, जिसकी आज्ञा मैंने उनके पुरखों को दी थी, उन्होंने मेरे आदेश का भी उल्लंघन किया है, 21मैं उन जनताओं को भी उनके सामने से नहीं निकालूंगा, जिन्हें यहोशू अपनी मृत्यु के पहले छोड़ गए थे. 22मैं उन देशों के द्वारा इस्राएल को परखूं, कि वे अपने पुरखों के समान याहवेह के आदेशों का पालन करते हैं, या नहीं.” 23इस कारण याहवेह ने ही उन जनताओं को वहां रहने दिया तथा उन्हें वहां से जल्द ही नहीं निकाला. याहवेह ने इन्हें यहोशू के अधीन भी न होने दिया था.