और यह भी सुनिए आपकी परिजन एलिज़ाबेथ ने अपनी वृद्धावस्था में एक पुत्र गर्भधारण किया है. वह, जो बांझ कहलाती थी, उन्हें छः माह का गर्भ है. परमेश्वर के लिए असंभव कुछ भी नहीं.”
मरियम ने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूं. मेरे लिए वही सब हो, जैसा आपने कहा है.” तब वह स्वर्गदूत उनके पास से चला गया.
मरियम तुरंत यहूदिया प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के एक नगर को चली गईं. वहां उन्होंने ज़करयाह के घर पर जाकर एलिज़ाबेथ को नमस्कार किया. जैसे ही एलिज़ाबेथ ने मरियम का नमस्कार सुना, उनके गर्भ में शिशु उछल पड़ा और एलिज़ाबेथ पवित्र आत्मा से भर गईं. वह उल्लसित शब्द में बोल उठी, “तुम सभी नारियों में धन्य हो और धन्य है तुम्हारे गर्भ का फल! मुझ पर यह कैसी कृपादृष्टि हुई है, जो मेरे प्रभु की माता मुझसे भेंट करने आई हैं! देखो तो, जैसे ही तुम्हारा नमस्कार मेरे कानों में पड़ा, हर्षोल्लास से मेरे गर्भ में शिशु उछल पड़ा. धन्य है वह, जिसने प्रभु द्वारा कही हुई बातों के पूरा होने का विश्वास किया है!”
इस पर मरियम के वचन ये थे:
“मेरा प्राण प्रभु की प्रशंसा करता है
और मेरी अंतरात्मा परमेश्वर, मेरे उद्धारकर्ता में आनंदित हुई है,
क्योंकि उन्होंने अपनी दासी की
दीनता की ओर दृष्टि की है.
अब से सभी पीढ़ियां मुझे धन्य कहेंगी,
क्योंकि सामर्थ्यी ने मेरे लिए बड़े-बड़े काम किए हैं.
पवित्र है उनका नाम.
उनकी दया उनके श्रद्धालुओं पर पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है.
अपने भुजबल से उन्होंने प्रतापी काम किए हैं
और अभिमानियों को बिखरा दिया है.
परमेश्वर ने राजाओं को उनके सिंहासनों से नीचे उतार दिया
तथा विनम्रों को उठाया है.
उन्होंने भूखों को उत्तम पदार्थों से तृप्त किया
तथा सम्पन्नों को खाली लौटा दिया.
उन्होंने अपने सेवक इस्राएल की सहायता
अपनी उस करुणा के स्मरण में की,
जिसकी प्रतिज्ञा उसने हमारे बाप-दादों से करी थी और
जो अब्राहाम तथा उनके वंशजों पर सदा-सर्वदा रहेगी.”
लगभग तीन माह एलिज़ाबेथ के साथ रहकर मरियम अपने घर लौट गईं.
एलिज़ाबेथ का प्रसवकाल पूरा हुआ और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया. जब पड़ोसियों और परिजनों ने यह सुना कि एलिज़ाबेथ पर यह अनुग्रह हुआ है, तो वे भी उनके इस आनंद में सम्मिलित हो गए.
आठवें दिन वे शिशु के ख़तना के लिए इकट्ठा हुए. वे शिशु को उसके पिता के नाम पर ज़करयाह पुकारने लगे. किंतु शिशु की माता ने उत्तर दिया; “नहीं! इसका नाम योहन होगा!”
इस पर उन्होंने एलिज़ाबेथ से कहा, “आपके परिजनों में तो इस नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं है!”
तब उन्होंने शिशु के पिता से संकेत में प्रश्न किया कि वह शिशु का नाम क्या रखना चाहते हैं? ज़करयाह ने एक लेखन पट्ट मंगा कर उस पर लिख दिया, “इसका नाम योहन है.” यह देख सभी चकित रह गए. उसी क्षण उनकी आवाज लौट आई. उनकी जीभ के बंधन खुल गए और वह परमेश्वर की स्तुति करने लगे. सभी पड़ोसियों में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा भाव आ गया और यहूदिया प्रदेश के सभी पर्वतीय क्षेत्र में इसकी चर्चा होने लगी. निःसंदेह प्रभु का हाथ उस बालक पर था. जिन्होंने यह सुना, उन्होंने इसे याद रखा और यह विचार करते रहे: “क्या होगा यह बालक!”
पवित्र आत्मा से भरकर उनके पिता ज़करयाह इस प्रकार भविष्यवाणियों का वर्णानुभाषण करना शुरू किया:
“धन्य हैं प्रभु, इस्राएल के परमेश्वर,
क्योंकि उन्होंने अपनी प्रजा की सुधि ली और उसका उद्धार किया.
उन्होंने हमारे लिए अपने सेवक दावीद के वंश में
एक उद्धारकर्ता पैदा किया है,
(जैसा उन्होंने प्राचीन काल के अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से प्रकट किया)
शत्रुओं तथा उन सबसे,
जो हमसे घृणा करते हैं, बचाए रखा
कि वह हमारे पूर्वजों पर अपनी कृपादृष्टि प्रदर्शित करें
तथा अपनी पवित्र वाचा को पूरा करें;
वही वाचा, जो उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहाम से स्थापित की थी:
वह हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ाएंगे,
कि हम पवित्रता और धार्मिकता में
निर्भय हो जीवन भर उनकी सेवा कर सकें.
“और बालक तुम, मेरे पुत्र, परम प्रधान परमेश्वर के भविष्यवक्ता कहलाओगे;
क्योंकि तुम उनका मार्ग तैयार करने के लिए प्रभु के आगे-आगे चलोगे,
तुम परमेश्वर की प्रजा को
उसके पापों की क्षमा के द्वारा उद्धार का ज्ञान प्रदान करोगे.
हमारे परमेश्वर की अत्यधिक कृपा के कारण,
स्वर्ग से हम पर प्रकाश का उदय होगा,
उन पर, जो अंधकार और मृत्यु की छाया में हैं;
कि इसके द्वारा हमारा मार्गदर्शन शांति के मार्ग पर हो.”
बालक योहन का विकास होता गया तथा वह आत्मिक रूप से भी बलवंत होते गए. इस्राएल के सामने सार्वजनिक रूप से प्रकट होने के पहले वह बंजर भूमि में निवास करते रहे.