स्तोत्र 119

119
स्तोत्र 119#119:0 यह एक अक्षरबद्ध कविता है जिसकी पंक्तियां हिब्री वर्णमाला के क्रमिक अक्षरों से आरंभ होती हैं
א आलेफ़
1कैसे धन्य हैं वे, जिनका आचार-व्यवहार निर्दोष है,
जिनका आचरण याहवेह की शिक्षाओं के अनुरूप है.
2कैसे धन्य हैं वे, जो उनके अधिनियमों का पालन करते हैं
तथा जो पूर्ण मन से उनके खोजी हैं.
3वे याहवेह के मार्गों में चलते हैं,
और उनसे कोई अन्याय नहीं होता.
4आपने ये आदेश इसलिये दिए हैं,
कि हम इनका पूरी तरह पालन करें.
5मेरी कामना है कि आपके आदेशों का पालन करने में
मेरा आचरण दृढ़ रहे!
6मैं आपके आदेशों पर विचार करता रहूंगा,
तब मुझे कभी लज्जित होना न पड़ेगा.
7जब मैं आपकी धर्ममय व्यवस्था का मनन करूंगा,
तब मैं निष्कपट हृदय से आपका स्तवन करूंगा.
8मैं आपकी विधियों का पालन करूंगा;
आप मेरा परित्याग कभी न कीजिए.
ב बैथ
9युवा अपना आचरण कैसे स्वच्छ रखे?
आपके वचन पालन के द्वारा.
10मैं आपको संपूर्ण हृदय से खोजता हूं;
आप मुझे अपने आदेशों से भटकने न दीजिए.
11आपके वचन को मैंने अपने हृदय में इसलिये रख छोड़ा है,
कि मैं आपके विरुद्ध पाप न कर बैठूं.
12याहवेह, आपका स्तवन हो;
मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए.
13जो व्यवस्था आपके मुख द्वारा निकली हैं,
मैं उन्हें अपने मुख से दोहराता रहता हूं.
14आपके अधिनियमों का पालन करना मेरा आनंद है,
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कोई विशाल धनराशि पर आनंदित होता है.
15आपके नीति-सिद्धांत मेरे चिंतन का विषय हैं,
मैं आपकी सम्विधियों की विवेचना करता रहता हूं.
16आपकी विधियां मुझे मगन कर देती हैं,
आपके वचनों को मैं कभी न भूलूंगा.
ג गिमेल
17अपने सेवक पर उपकार कीजिए कि मैं जीवित रह सकूं,
मैं आपके वचन का पालन करूंगा.
18मुझे आपकी व्यवस्था की गहन और अद्भुत बातों को
ग्रहण करने की दृष्टि प्रदान कीजिए.
19पृथ्वी पर मैं प्रवासी मात्र हूं;
मुझसे अपने निर्देश न छिपाइए.
20सारा समय आपकी व्यवस्था की
अभिलाषा करते-करते मेरे प्राण डूब चले हैं.
21आपकी प्रताड़ना उन पर पड़ती है, जो अभिमानी हैं, शापित हैं,
और जो आपके आदेशों का परित्याग कर भटकते रहते हैं.
22मुझ पर लगे घृणा और तिरस्कार के कलंक को मिटा दीजिए,
क्योंकि मैं आपके अधिनियमों का पालन करता हूं.
23यद्यपि प्रशासक साथ बैठकर मेरी निंदा करते हैं,
आपका यह सेवक आपकी विधियों पर मनन करेगा.
24आपके अधिनियमों में मगन है मेरा आनंद;
वे ही मेरे सलाहकार हैं.
ד दालेथ
25मेरा प्राण नीचे धूलि में जा पड़ा है;
अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
26जब मैंने आपके सामने अपने आचरण का वर्णन किया, आपने मुझे उत्तर दिया;
याहवेह, अब मुझे अपनी विधियां सिखा दीजिए.
27मुझे अपने उपदेशों की प्रणाली की समझ प्रदान कीजिए,
कि मैं आपके अद्भुत कार्यों पर मनन कर सकूं.
28शोक अतिरेक में मेरा प्राण डूबा जा रहा है;
अपने वचन से मुझमें बल दीजिए.
29झूठे मार्ग से मुझे दूर रखिए;
और अपनी कृपा में मुझे अपनी व्यवस्था की शिक्षा दीजिए.
30मैंने सच्चाई के मार्ग को अपनाया है;
मैंने आपके नियमों को अपना आदर्श बनाया है.
31याहवेह, मैंने आपके नियमों को दृढतापूर्वक थाम रखा है;
मुझे लज्जित न होने दीजिए.
32आपने मेरे हृदय में साहस का संचार किया है,
तब मैं अब आपके आदेशों के पथ पर दौड़ रहा हूं.
ה हे
33याहवेह, मुझे आपकी विधियों का आचरण करने की शिक्षा दीजिए,
कि मैं आजीवन उनका पालन करता रहूं.
34मुझे वह समझ प्रदान कीजिए, कि मैं आपकी व्यवस्था का पालन कर सकूं
और संपूर्ण हृदय से इसमें मगन आज्ञाओं का पालन कर सकूं.
35अपने आदेशों के मार्ग में मेरा संचालन कीजिए,
क्योंकि इन्हीं में मेरा आनंद है.
36मेरे हृदय को स्वार्थी लाभ की ओर नहीं,
परंतु अपने नियमों की ओर फेर दीजिए.
37अपने वचन के द्वारा मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए;
मेरी रुचि निरर्थक वस्तुओं से हटा दीजिए.
38अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा पूर्ण कीजिए,
कि आपके प्रति मेरी श्रद्धा स्थायी रहे.
39उस लज्जा को मुझसे दूर रखिए, जिसकी मुझे आशंका है,
क्योंकि आपके नियम उत्तम हैं.
40कैसी तीव्र है आपके उपदेशों के प्रति मेरी अभिलाषा!
अपनी धार्मिकता के द्वारा मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
ו वाव
41याहवेह, आपका करुणा-प्रेम#119:41 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं मुझ पर प्रगट हो जाए,
और आपकी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझे आपका उद्धार प्राप्‍त हो;
42कि मैं उसे उत्तर दे सकूं, जो मेरा अपमान करता है,
आपके वचन पर मेरा भरोसा है.
43सत्य के वचन मेरे मुख से न छीनिए,
मैं आपकी व्यवस्था पर आशा रखता हूं.
44मैं सदा-सर्वदा निरंतर,
आपकी व्यवस्था का पालन करता रहूंगा.
45मेरा जीवन स्वतंत्र हो जाएगा,
क्योंकि मैं आपके उपदेशों का खोजी हूं.
46राजाओं के सामने मैं आपके अधिनियमों पर व्याख्यान दूंगा
और मुझे लज्जित नहीं होना पड़ेगा.
47क्योंकि आपका आदेश मेरे आनंद का उगम हैं,
और वे मुझे प्रिय हैं.
48मैं आपके आदेशों की ओर हाथ बढ़ाऊंगा, जो मुझे प्रिय हैं,
और आपकी विधियां मेरे मनन का विषय हैं.
ז ज़ईन
49याहवेह, अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा को स्मरण कीजिए,
क्योंकि आपने मुझमें आशा का संचार किया है.
50मेरी पीड़ा में मुझे इस बातों से सांत्वना प्राप्‍त होती है:
आपकी प्रतिज्ञाएं मेरे नवजीवन का स्रोत हैं.
51अहंकारी बेधड़क मेरा उपहास करते हैं,
किंतु मैं आपकी व्यवस्था से दूर नहीं होता.
52याहवेह, जब प्राचीन काल से प्रगट आपकी व्यवस्था पर मैं विचार करता हूं,
तब मुझे उनमें सांत्वना प्राप्‍त होती है.
53दुष्ट मुझमें कोप उकसाते हैं, ये वे हैं,
जिन्होंने आपकी व्यवस्था त्याग दी है.
54आपकी विधियां मेरे गीत की विषय-वस्तु हैं
चाहे मैं किसी भी स्थिति में रहूं.
55याहवेह, मैं आपकी व्यवस्था का पालन करता हूं,
रात्रि में मैं आपका स्मरण करता हूं.
56आपके उपदेशों का पालन करते
जाना ही मेरी चर्या है.
ח ख़ेथ
57याहवेह, आप मेरे जीवन का अंश बन गए हैं;
आपके आदेशों के पालन के लिए मैंने शपथ की है.
58सारे मन से मैंने आपसे आग्रह किया है;
अपनी ही प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझ पर कृपा कीजिए.
59मैंने अपनी जीवनशैली का विचार किया है
और मैंने आपके अधिनियमों के पालन की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं.
60अब मैं विलंब न करूंगा
और शीघ्रता से आपके आदेशों को मानना प्रारंभ कर दूंगा.
61मैं आपकी व्यवस्था से दूर न होऊंगा,
यद्यपि दुर्जनों ने मुझे रस्सियों से बांध भी रखा हो.
62आपकी युक्ति संगत व्यवस्था के प्रति आभार अभिव्यक्त करने के लिए,
मैं मध्य रात्रि को ही जाग जाता हूं.
63मेरी मैत्री उन सभी से है, जिनमें आपके प्रति श्रद्धा है,
उन सभी से, जो आपके उपदेशों पर चलते हैं.
64याहवेह, पृथ्वी आपके करुणा-प्रेम से तृप्‍त है;
मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए.
ט टेथ
65याहवेह, अपनी ही प्रतिज्ञा के अनुरूप
अपने सेवक का कल्याण कीजिए.
66मुझे ज्ञान और धर्ममय परख सीखाइए,
क्योंकि मैं आपकी आज्ञाओं पर भरोसा करता हूं.
67अपनी पीड़ाओं में रहने के पूर्व मैं भटक गया था,
किंतु अब मैं आपके वचन के प्रति आज्ञाकारी हूं.
68आप धन्य हैं, और जो कुछ आप करते हैं भला ही होता है;
मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए.
69यद्यपि अहंकारियों ने मुझे झूठी बातों से कलंकित कर दिया है,
मैं पूर्ण सच्चाई में आपके आदेशों को थामे हुए हूं.
70उनके हृदय कठोर तथा संवेदनहीन हो चुके हैं,
किंतु आपकी व्यवस्था ही मेरा आनंद है.
71यह मेरे लिए भला ही रहा कि मैं प्रताड़ित किया गया,
इससे मैं आपकी विधियों से सीख सकूं.
72आपके मुख से निकली व्यवस्था मेरे लिए
स्वर्ण और चांदी की हजारों मुद्राओं से कहीं अधिक मूल्यवान हैं.
י योध
73आपके हाथों ने मेरा निर्माण किया और मुझे आकार दिया;
मुझे अपने आदेशों को समझने की सद्बुद्धि प्रदान कीजिए.
74मुझे देख आपके भक्त उल्‍लसित हो सकें,
क्योंकि आपका वचन ही मेरी आशा है.
75याहवेह, यह मैं जानता हूं कि आपकी व्यवस्था धर्ममय है,
और आपके द्वारा मेरा क्लेश न्याय संगत था.
76अब अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा के अनुरूप,
आपका करुणा-प्रेम ही मेरी शांति है!
77आपकी व्यवस्था में मेरा आनन्दमग्न है,
तब मुझे आपकी मनोहरता में जीवन प्राप्‍त हो.
78अहंकारियों को लज्जित होना पड़े क्योंकि उन्होंने अकारण ही मुझसे छल किया है;
किंतु मैं आपके उपदेशों पर मनन करता रहूंगा.
79आपके श्रद्धालु, जिन्होंने आपके अधिनियमों को समझ लिया है,
पुनः मेरे पक्ष में हो जाएं,
80मेरा हृदय पूर्ण सिद्धता में आपकी विधियों का पालन करता रहे,
कि मुझे लज्जित न होना पड़े.
כ काफ़
81आपके उद्धार की तीव्र अभिलाषा करते हुए मेरा प्राण बेचैन हुआ जा रहा है,
अब आपका वचन ही मेरी आशा का आधार है.
82आपकी प्रतिज्ञा-पूर्ति की प्रतीक्षा में मेरी आंखें थक चुकी हैं;
मैं पूछ रहा हूं, “कब मुझे आपकी ओर से सांत्वना प्राप्‍त होगी?”
83यद्यपि मैं धुएं में संकुचित द्राक्षारस की कुप्पी के समान हो गया हूं,
फिर भी आपकी विधियां मेरे मन से लुप्‍त नहीं हुई हैं.
84और कितनी प्रतीक्षा करनी होगी आपके सेवक को?
आप कब मेरे सतानेवालों को दंड देंगे?
85अहंकारियों ने मेरे लिए गड्ढे खोद रखे हैं,
उनका आचरण आपकी व्यवस्था के विपरीत है.
86विश्वासयोग्य हैं आपके आदेश;
मेरी सहायता कीजिए, झूठ बोलनेवाले मुझे दुःखित कर रहे हैं.
87उन्होंने मुझे धरती पर से लगभग मिटा ही डाला था,
फिर भी मैं आपके नीति सूत्रों से दूर न हुआ.
88मैं आपके मुख से बोले हुए नियमों का पालन करता रहूंगा,
अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप मेरे जीवन की रक्षा कीजिए.
ל लामेध
89याहवेह, सर्वदा है आपका वचन;
यह स्वर्ग में दृढतापूर्वक बसा है.
90पीढ़ी से पीढ़ी आपकी सच्चाई बनी रहती है;
आपके द्वारा ही पृथ्वी की स्थापना की गई और यह स्थायी बनी हुई है.
91आप के नियम सभी आज तक अस्तित्व में हैं,
और सभी कुछ आपकी सेवा कर रहे हैं.
92यदि आपकी व्यवस्था में मैं उल्लास मगन न होता,
तो इन पीड़ाओं को सहते सहते मेरी मृत्यु हो जाती.
93आपके उपदेश मेरे मन से कभी नष्ट न होंगे,
क्योंकि इन्हीं के द्वारा आपने मुझे जीवन प्रदान किया है,
94तब मुझ पर आपका ही स्वामित्व है, मेरी रक्षा कीजिए;
मैं आपके ही उपदेशों का खोजी हूं.
95दुष्ट मुझे नष्ट करने के उद्देश्य से घात लगाए बैठे हैं,
किंतु आपकी चेतावनियों पर मैं विचार करता रहूंगा.
96हर एक सिद्धता में मैंने कोई न कोई सीमा ही पाई है,
किंतु आपके आदेश असीमित हैं.
מ मेम
97आह, कितनी अधिक प्रिय है मुझे आपकी व्यवस्था!
इतना, कि मैं दिन भर इसी पर विचार करता रहता हूं.
98आपके आदेशों ने तो मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान बना दिया है
क्योंकि ये कभी मुझसे दूर नहीं होते.
99मुझमें तो अपने सभी शिक्षकों से अधिक समझ है,
क्योंकि आपके उपदेश मेरे चिंतन का विषय हैं.
100आपके उपदेशों का पालन करने का ही परिणाम यह है,
कि मुझमें बुजुर्गों से अधिक समझ है.
101आपकी आज्ञा का पालन करने के लक्ष्य से,
मैंने अपने कदम हर एक अधर्म के पथ पर चलने से बचा रखे हैं.
102आप ही के द्वारा दी गई शिक्षा के कारण,
मैं आपके नियम तोड़ने से बच सका हूं.
103कैसा मधुर है आपकी प्रतिज्ञाओं का आस्वादन करना,
आपकी प्रतिज्ञाएं मेरे मुख में मधु से भी अधिक मीठी हैं!
104हर एक झूठा मार्ग मेरी दृष्टि में घृणास्पद है;
क्योंकि आपके उपदेशों से मुझे समझदारी प्राप्‍त होती है.
נ नून
105आपका वचन मेरे पांवों के लिए दीपक,
और मेरे मार्ग के लिए प्रकाश है.
106मैंने यह शपथ ली है और यह सुनिश्चित किया है,
कि मैं आपके धर्ममय नियमों का ही पालन करता जाऊंगा.
107याहवेह, मेरी पीड़ा असह्य है;
अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
108याहवेह, मेरे मुख से निकले स्वैच्छिक स्तवन वचनों को स्वीकार कीजिए,
और मुझे अपने नियमों की शिक्षा दीजिए.
109आपकी व्यवस्था से मैं कभी दूर न होऊंगा,
यद्यपि मैं लगातार अपने जीवन को हथेली पर लिए फिरता हूं.
110दुष्टों ने मेरे लिए जाल बिछाया हुआ है,
किंतु मैं आपके उपदेशों से नहीं भटका.
111आपके नियमों को मैंने सदा-सर्वदा के लिए निज भाग में प्राप्‍त कर लिया है;
वे ही मेरे हृदय का आनंद हैं.
112आपकी विधियों का अंत तक
पालन करने के लिए मेरा हृदय तैयार है.
ס सामेख
113दुविधा से ग्रस्त मन का पुरुष मेरे लिए घृणास्पद है,
मुझे प्रिय है आपकी व्यवस्था.
114आप मेरे आश्रय हैं, मेरी ढाल हैं;
मेरी आशा का आधार है आपका वचन.
115अधर्मियो, दूर रहो मुझसे,
कि मैं परमेश्वर के आदेशों का पालन कर सकूं!
116याहवेह, अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझे सम्भालिए, कि मैं जीवित रहूं;
मेरी आशा भंग न होने पाए.
117मुझे थाम लीजिए कि मैं सुरक्षित रहूं;
मैं सदैव आपकी विधियों पर भरोसा करता रहूंगा.
118वे सभी, जो आपके नियमों से भटक जाते हैं, आपकी उपेक्षा के पात्र हो जाते हैं,
क्योंकि निरर्थक होती है उनकी चालाकी.
119संसार के सभी दुष्टों को आप मैल के समान फेंक देते हैं;
यही कारण है कि मुझे आपकी चेतावनियां प्रिय हैं.
120आपके भय से मेरी देह कांप जाती है;
आपके निर्णयों का विचार मुझमें भय का संचार कर देता है.
ע अयिन
121मैंने वही किया है, जो न्याय संगत तथा धर्ममय है;
मुझे सतानेवालों के सामने न छोड़ दीजिएगा.
122अपने सेवक का हित निश्चित कर दीजिए;
अहंकारियों को मुझ पर अत्याचार न करने दीजिए.
123आपके उद्धार की प्रतीक्षा में,
आपकी निष्ठ प्रतिज्ञाओं की प्रतीक्षा में मेरी आंखें थक चुकी हैं.
124अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप अपने सेवक से व्यवहार कीजिए
और मुझे अपने अधिनियमों की शिक्षा दीजिए.
125मैं आपका सेवक हूं, मुझे समझ प्रदान कीजिए,
कि मैं आपकी विधियों को समझ सकूं.
126याहवेह, आपके नियम तोड़े जा रहे हैं;
समय आ गया है कि आप अपना कार्य करें.
127इसलिये कि मुझे आपके आदेश स्वर्ण से अधिक प्रिय हैं,
शुद्ध कुन्दन से अधिक,
128मैं आपके उपदेशों को धर्ममय मानता हूं,
तब मुझे हर एक गलत मार्ग से घृणा है.
פ पे
129अद्भुत हैं आपके अधिनियम;
इसलिये मैं उनका पालन करता हूं.
130आपके वचन के खुलने से ज्योति उत्पन्‍न होती है;
परिणामस्वरूप भोले पुरुषों को सबुद्धि प्राप्‍त होती है.
131मेरा मुख खुला है और मैं हांफ रहा हूं,
क्योंकि मुझे प्यास है आपके आदेशों की.
132मेरी ओर ध्यान दीजिए और मुझ पर कृपा कीजिए,
जैसी आपकी नीति उनके प्रति है, जिन्हें आपसे प्रेम है.
133अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मेरे पांव को स्थिर कर दीजिए;
कोई भी दुष्टता मुझ पर प्रभुता न करने पाए.
134मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा लीजिए,
कि मैं आपके उपदेशों का पालन कर सकूं.
135अपने सेवक पर अपना मुख प्रकाशित कीजिए
और मुझे अपने नियमों की शिक्षा दीजिए.
136मेरी आंखों से अश्रुप्रवाह हो रहा है,
क्योंकि लोग आपकी व्यवस्था का पालन नहीं कर रहे.
צ त्सादे
137याहवेह, आप धर्मी हैं,
सच्चे हैं आपके नियम.
138जो अधिनियम आपने प्रगट किए हैं, वे धर्ममय हैं;
वे हर एक दृष्टिकोण से विश्वासयोग्य हैं.
139मैं भस्म हो रहा हूं,
क्योंकि मेरे शत्रु आपके वचनों को भूल गए हैं.
140आपकी प्रतिज्ञाओं का उचित परीक्षण किया जा चुका है,
वे आपके सेवक को अत्यंत प्रिय हैं.
141यद्यपि मैं छोटा, यहां तक कि लोगों की दृष्टि में घृणास्पद हूं,
फिर भी मैं आपके अधिनियमों को नहीं भूलता.
142अनंत है आपकी धार्मिकता, परमेश्वर
तथा यथार्थ है आपकी व्यवस्था.
143क्लेश और संकट मुझ पर टूट पड़े हैं,
किंतु आपके आदेश मुझे मगन रखे हुए हैं.
144आपके अधिनियम सदा-सर्वदा धर्ममय ही प्रमाणित हुए हैं;
मुझे इनके विषय में ऐसी समझ प्रदान कीजिए कि मैं जीवित रह सकूं.
ק क़ौफ़
145याहवेह, मैं संपूर्ण हृदय से आपको पुकार रहा हूं,
मुझे उत्तर दीजिए, कि मैं आपकी विधियों का पालन कर सकूं.
146मैं आपको पुकार रहा हूं; मेरी रक्षा कीजिए,
कि मैं आपके अधिनियमों का पालन कर सकूं.
147मैं सूर्योदय से पूर्व ही जाग कर सहायता के लिये पुकारता हूं;
मेरी आशा आपके वचन पर आधारित है.
148रात्रि के समस्त प्रहरों में मेरी आंखें खुली रहती हैं,
कि मैं आपकी प्रतिज्ञाओं पर मनन कर सकूं.
149अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरी पुकार सुनिए;
याहवेह, अपने ही नियमों के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
150जो मेरे विरुद्ध बुराई की युक्ति रच रहे हैं, मेरे निकट आ गए हैं,
किंतु वे आपकी व्यवस्था से दूर हैं.
151फिर भी, याहवेह, आप मेरे निकट हैं,
और आपके सभी आदेश प्रामाणिक हैं.
152अनेक-अनेक वर्ष पूर्व मैंने आपके अधिनियमों से यह अनुभव कर लिया था
कि आपने इनकी स्थापना ही इसलिये की है कि ये सदा-सर्वदा स्थायी बने रहें.
ר रेश
153मेरे दुःख पर ध्यान दीजिए और मुझे इससे बचा लीजिए,
क्योंकि आपकी व्यवस्था को मैं भुला नहीं.
154मेरे पक्ष का समर्थन करके मेरा उद्धार कीजिए;
अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
155कठिन है दुष्टों का उद्धार होना,
क्योंकि उन्हें आपकी विधियों की महानता ही ज्ञात नहीं.
156याहवेह, अनुपम है आपकी मनोहरता;
अपने ही नियमों के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
157मेरे सतानेवाले तथा शत्रु अनेक हैं,
किंतु मैं आपके अधिनियमों से दूर नहीं हुआ हूं.
158विश्वासघाती आपके आदेशों का पालन नहीं करते,
तब मेरी दृष्टि में वे घृणास्पद हैं.
159आप ही देख लीजिए: कितने प्रिय हैं मुझे आपके नीति-सिद्धांत;
याहवेह, अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
160वस्तुतः सत्य आपके वचन का सार है;
तथा आपके धर्ममय नियम सदा-सर्वदा स्थायी रहते हैं.
ש शीन
161प्रधान मुझे बिना किसी कारण के दुःखित कर रहे हैं,
किंतु आपके वचन का ध्यान कर मेरा हृदय कांप उठता है.
162आपकी प्रतिज्ञाओं से मुझे ऐसा उल्लास प्राप्‍त होता है;
जैसा किसी को बड़ी लूट प्राप्‍त हुई है.
163झूठ से मुझे घृणा है, बैर है
किंतु मुझे प्रेम है आपकी व्यवस्था से.
164आपकी धर्ममय व्यवस्था का
ध्यान कर मैं दिन में सात-सात बार आपका स्तवन करता हूं.
165जिन्हें आपकी व्यवस्था से प्रेम है, उनको बड़ी शांति मिलती रहती है,
वे किसी रीति से विचलित नहीं हो सकते.
166याहवेह, मैं आपके उद्धार का प्रत्याशी हूं,
मैं आपके आदेशों का पालन करता हूं.
167मैं आपके अधिनियमों का पालन करता हूं,
क्योंकि वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं.
168मैं आपके उपदेशों तथा नियमों का पालन करता हूं,
आपके सामने मेरा संपूर्ण आचरण प्रगट है.
ת ताव
169याहवेह, मेरी पुकार आप तक पहुंचे;
मुझे अपने वचन को समझने की क्षमता प्रदान कीजिए.
170मेरा गिड़गिड़ाना आप तक पहुंचे;
अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए मुझे छुड़ा लीजिए.
171मेरे होंठों से आपका स्तवन छलक उठे,
क्योंकि आपने मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दी है.
172मेरी जीभ आपके वचन का गान करेगी,
क्योंकि आपके सभी आदेश आदर्श हैं.
173आपकी भुजा मेरी सहायता के लिए तत्पर रहे,
मैंने आपके उपदेशों को अपनाया है.
174आपसे उद्धार की प्राप्‍ति की मुझे उत्कंठा है,
याहवेह, आपकी व्यवस्था में मेरा आनंद है.
175मुझे आयुष्मान कीजिए कि मैं आपका स्तवन करता रहूं,
और आपकी व्यवस्था मुझे संभाले रहे.
176मैं खोई हुई भेड़ के समान हो गया था.
आप ही अपने सेवक को खोज लीजिए,
क्योंकि मैं आपके आदेशों को भूला नहीं.

वर्तमान में चयनित:

स्तोत्र 119: HSS

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