1 इतिहास पुस्तक परिचय
पुस्तक परिचय
ग्रन्थ के शीर्षक “इतिहास” से यह बोध होता है कि यह कालानुक्रम से यहूदा राज्य का एक दरबारी “इतिवृत” है। परंपरागत यूनानी शीर्षक के अनुसार यह एक “अवशिष्ट इतिहास” अथवा इतिहास का पूरक है। जिन घटनाओं का उल्लेख शमूएल तथा राजाओं के वृतान्त की पुस्तकों में हुआ है, वे ही प्रस्तुत इतिहास ग्रन्थों में पुन: उल्लिखित हुई हैं; किन्तु एक नये दृष्टिकोण से इनको लिखा गया है।
इतिहास ग्रन्थों में इस्राएली राजतंत्र के इतिहास को नए दृष्टिकोण से लिखने के दो मुख्य अभिप्राय थे :
(1) पुरोहिती “इतिहासकार” इस्राएल एवं यहूदा राज्यों के पतन की नयी व्याख्या करना चाहते हैं कि पतन के बावजूद परमेश्वर इस्राएली कौम से की गयी अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर रहा है; उसने अपने निज लोगों के लिए और उनके द्वारा ही एक व्यापकतर मुक्ति-विधान ठहराया है। वह अपनी इस योजना को यहूदा प्रदेश के पुनर्वासी इस्राएलियों के माध्यम से पूरा करेगा। इस आश्वासन का आधार है: राजा दाऊद तथा राजा सुलेमान की महान उपलब्धियां; यहोशाफट, हिजकियाह तथा योशियाह जैसे योग्य राजाओं के धर्म-सुधार; तथा बचे हुए सामान्य इस्राएलियों का परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास। “इतिहासकार” ने पूर्व-वर्णित घटनाओं की नये दृष्टिकोण से व्याख्या की है।
(2) दूसरा अभिप्राय: “इतिहासकार” प्रभावपूर्ण ढंग से यरूशलेम के मन्दिर को ऐसा प्रतिष्ठित स्थान ठहराना चाहते हैं, जहाँ परमेश्वर की सच्ची आराधना की जाती है। वह पुरोहितों और लेवीय उप-पुरोहितों के संगठन पर प्रकाश डालते हैं कि इन्हीं के माध्यम से परमेश्वर की विधिवत् आराधना सम्पन्न की जाती रही। इसी संदर्भ में यह बताया गया है कि मन्दिर का तथा समस्त धार्मिक कर्मकाण्डों का वास्तविक निर्माता राजा दाऊद था। राजा सुलेमान पिता के आदेश के अनुसार, मन्दिर के मानचित्र के अनुरूप भवन को खड़ा करता है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
विस्तृत वंशावली तथा सूची-पत्र 1:1−9:44
राजा शाऊल की मृत्यु 10:1-14
राजा दाऊद का राज्य :
(क) दु:ख-संकट तथा उपलब्धियां 11:1−22:1
(ख) मन्दिर के भवन-निर्माण की तैयारी 22:2−29:30
वर्तमान में चयनित:
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ग्रन्थ के शीर्षक “इतिहास” से यह बोध होता है कि यह कालानुक्रम से यहूदा राज्य का एक दरबारी “इतिवृत” है। परंपरागत यूनानी शीर्षक के अनुसार यह एक “अवशिष्ट इतिहास” अथवा इतिहास का पूरक है। जिन घटनाओं का उल्लेख शमूएल तथा राजाओं के वृतान्त की पुस्तकों में हुआ है, वे ही प्रस्तुत इतिहास ग्रन्थों में पुन: उल्लिखित हुई हैं; किन्तु एक नये दृष्टिकोण से इनको लिखा गया है।
इतिहास ग्रन्थों में इस्राएली राजतंत्र के इतिहास को नए दृष्टिकोण से लिखने के दो मुख्य अभिप्राय थे :
(1) पुरोहिती “इतिहासकार” इस्राएल एवं यहूदा राज्यों के पतन की नयी व्याख्या करना चाहते हैं कि पतन के बावजूद परमेश्वर इस्राएली कौम से की गयी अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर रहा है; उसने अपने निज लोगों के लिए और उनके द्वारा ही एक व्यापकतर मुक्ति-विधान ठहराया है। वह अपनी इस योजना को यहूदा प्रदेश के पुनर्वासी इस्राएलियों के माध्यम से पूरा करेगा। इस आश्वासन का आधार है: राजा दाऊद तथा राजा सुलेमान की महान उपलब्धियां; यहोशाफट, हिजकियाह तथा योशियाह जैसे योग्य राजाओं के धर्म-सुधार; तथा बचे हुए सामान्य इस्राएलियों का परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास। “इतिहासकार” ने पूर्व-वर्णित घटनाओं की नये दृष्टिकोण से व्याख्या की है।
(2) दूसरा अभिप्राय: “इतिहासकार” प्रभावपूर्ण ढंग से यरूशलेम के मन्दिर को ऐसा प्रतिष्ठित स्थान ठहराना चाहते हैं, जहाँ परमेश्वर की सच्ची आराधना की जाती है। वह पुरोहितों और लेवीय उप-पुरोहितों के संगठन पर प्रकाश डालते हैं कि इन्हीं के माध्यम से परमेश्वर की विधिवत् आराधना सम्पन्न की जाती रही। इसी संदर्भ में यह बताया गया है कि मन्दिर का तथा समस्त धार्मिक कर्मकाण्डों का वास्तविक निर्माता राजा दाऊद था। राजा सुलेमान पिता के आदेश के अनुसार, मन्दिर के मानचित्र के अनुरूप भवन को खड़ा करता है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
विस्तृत वंशावली तथा सूची-पत्र 1:1−9:44
राजा शाऊल की मृत्यु 10:1-14
राजा दाऊद का राज्य :
(क) दु:ख-संकट तथा उपलब्धियां 11:1−22:1
(ख) मन्दिर के भवन-निर्माण की तैयारी 22:2−29:30
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