हम परमेश्वर की उस रहस्यमय प्रज्ञ और उद्देश्य की घोषणा करते हैं, जो अब तक गुप्त रहे, जिन्हें परमेश्वर ने संसार की सृष्टि से पहले ही हमारी महिमा के लिए निश्चित किया था, और जिन को इस युग-संसार के अधिपतियों में से किसी ने नहीं जाना। यदि वे लोग उन्हें जानते, तो महिमामय प्रभु को क्रूस पर नहीं चढ़ाते। हम उन बातों के विषय में बोलते हैं, जिनके सम्बन्ध में धर्मग्रन्थ यह कहता है, “परमेश्वर ने अपने भक्तों के लिए जो तैयार किया है, उस को किसी ने कभी देखा नहीं, किसी ने सुना नहीं, और न कोई उसकी कल्पना ही कर पाया।” परमेश्वर ने अपने आत्मा द्वारा हम पर वही प्रकट किया है, क्योंकि आत्मा सब कुछ की, परमेश्वर के रहस्य की भी, थाह लेता है। मनुष्य की निजी आत्मा के अतिरिक्त कौन किसी का अन्तरतम जानता है? इसी तरह परमेश्वर के आत्मा के अतिरिक्त कोई भी परमेश्वर का अन्तरतम नहीं जानता। हमें संसार का आत्मा नहीं, बल्कि वह आत्मा मिला है जो परमेश्वर से है, जिससे हम परमेश्वर से प्राप्त वरदान पहचान सकें। हम इन वरदानों की व्याख्या करते समय मानवीय बुद्धि से प्रेरित शब्दों का नहीं, बल्कि आत्मा द्वारा प्रदत्त शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार हम आध्यात्मिक शब्दावली में आध्यात्मिक तथ्यों की विवेचना करते हैं।
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