1 योहन 5:1-12

1 योहन 5:1-12 HINCLBSI

जो कोई विश्‍वास करता है कि येशु ही मसीह हैं, वह परमेश्‍वर से उत्‍पन्न हुआ है और जो कोई जन्‍मदाता से प्रेम करता है, वह उसकी संतान से भी प्रेम करता है। इसलिए यदि हम परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम सचमुच परमेश्‍वर की संतान से प्रेम करते हैं। क्‍योंकि परमेश्‍वर का प्रेम यह है कि हम उसकी आज्ञाओं का पालन करें। उसकी आज्ञाएँ भारी नहीं हैं, क्‍योंकि जो परमेश्‍वर से उत्‍पन्न हुआ है, वह संसार पर विजय प्राप्‍त करता है। वह विजय, जो संसार को परास्‍त करती है, हमारा विश्‍वास ही है। संसार का विजेता कौन है? केवल वही जो यह विश्‍वास करता है कि येशु परमेश्‍वर के पुत्र हैं। वह येशु मसीह ही हैं जिनका आगमन जल और रक्‍त द्वारा हुआ-न केवल जल में, बल्‍कि जल और रक्‍त में। आत्‍मा इसके विषय में साक्षी देता है, क्‍योंकि आत्‍मा सत्‍य है। इस प्रकार ये तीन साक्षी देते हैं − आत्‍मा, जल और रक्‍त और तीनों एक ही बात कहते हैं। हम मनुष्‍यों की साक्षी स्‍वीकार करते हैं, किन्‍तु परमेश्‍वर की साक्षी निश्‍चय ही कहीं अधिक प्रामाणिक है। उसकी साक्षी यह है कि परमेश्‍वर ने अपने पुत्र के विषय में साक्षी दी है। जो परमेश्‍वर के पुत्र में विश्‍वास करता है, उसके हृदय में परमेश्‍वर की यह साक्षी विद्यमान है। जो परमेश्‍वर में विश्‍वास नहीं करता, वह उसे झूठा समझता है; क्‍योंकि वह पुत्र के विषय में परमेश्‍वर की साक्षी स्‍वीकार नहीं करता। और वह साक्षी यह है-परमेश्‍वर ने हमें शाश्‍वत जीवन प्रदान किया है और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिसे पुत्र प्राप्‍त है, उसे वह जीवन प्राप्‍त है और जिसे परमेश्‍वर का पुत्र प्राप्‍त नहीं है, उसे वह जीवन प्राप्‍त नहीं।