1 तिमोथी भूमिका
भूमिका
युवक तिमोथी एशिया माइनर के रहने वाले नव-मसीही थे। उनकी माँ यहूदी जाति की तथा पिता यूनानी जाति का था। वह प्रेरित पौलुस की धर्मप्रचार यात्राओं में उनकी सहायता करने के लिए उनके सहयात्री बन गए थे। स्थान-स्थान पर विश्वासी-गण (कलीसिया) की स्थायी देखभाल करने के लिए “पास्तर” (मेषपालक, धर्मसेवक) नियुक्त हुए। उनके मार्गदर्शन के लिए “पास्तरीय संदेशपत्रों” की रचना हुई। प्रस्तुत पत्र “तिमोथी के नाम संत पौलुस का पहला पत्र” कहलाता है। लेखक ने प्रस्तुत पत्र में तीन प्रमुख बातें समझायी हैं :
(1) सर्वप्रथम वह कलीसिया में व्याप्त झूठी शिक्षा के विरुद्ध कठोर चेतावनी देते हैं। यह झूठी शिक्षा यहूदी तथा गैर-यहूदी धार्मिक विचारों का विचित्र सम्मिश्रण थी। इस शिक्षा के अनुसार भौतिक संसार बुरा है। मनुष्य विशेष गुप्त ज्ञान के द्वारा मुक्ति, उद्धार पा सकता है, और जो मनुष्य मुक्ति पाना चाहता है, उसे विशेष प्रकार के भोज्य पदार्थों से परहेज करना होगा, और अविवाहित रहना होगा।
(2) तत्पश्चात् लेखक कलीसियाई संगठन तथा आराधना-विधि के विषय में निर्देश देते हैं। वह इस पर विशेष प्रकाश डालते हैं कि मसीही धर्मसेवक का चरित्र किस प्रकार का होना चाहिए, और उसमें कौन-कौन से सद्गुण होने चाहिए।
(3) अन्त में तिमोथी को यह सलाह दी जाती है कि उन्हें प्रभु येशु के सच्चे सेवक के रूप में कैसा आचरण करना चाहिए, और कलीसिया के भिन्न-भिन्न समूहों के प्रति उनका क्या दायित्व है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
अभिवादन 1:1-2
कलीसिया तथा उसके धर्म-सेवक 1:3−3:16
तिमोथी को उनके कार्य के लिए निर्देश 4:1−6:21
वर्तमान में चयनित:
1 तिमोथी भूमिका: HINCLBSI
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.
1 तिमोथी भूमिका
भूमिका
युवक तिमोथी एशिया माइनर के रहने वाले नव-मसीही थे। उनकी माँ यहूदी जाति की तथा पिता यूनानी जाति का था। वह प्रेरित पौलुस की धर्मप्रचार यात्राओं में उनकी सहायता करने के लिए उनके सहयात्री बन गए थे। स्थान-स्थान पर विश्वासी-गण (कलीसिया) की स्थायी देखभाल करने के लिए “पास्तर” (मेषपालक, धर्मसेवक) नियुक्त हुए। उनके मार्गदर्शन के लिए “पास्तरीय संदेशपत्रों” की रचना हुई। प्रस्तुत पत्र “तिमोथी के नाम संत पौलुस का पहला पत्र” कहलाता है। लेखक ने प्रस्तुत पत्र में तीन प्रमुख बातें समझायी हैं :
(1) सर्वप्रथम वह कलीसिया में व्याप्त झूठी शिक्षा के विरुद्ध कठोर चेतावनी देते हैं। यह झूठी शिक्षा यहूदी तथा गैर-यहूदी धार्मिक विचारों का विचित्र सम्मिश्रण थी। इस शिक्षा के अनुसार भौतिक संसार बुरा है। मनुष्य विशेष गुप्त ज्ञान के द्वारा मुक्ति, उद्धार पा सकता है, और जो मनुष्य मुक्ति पाना चाहता है, उसे विशेष प्रकार के भोज्य पदार्थों से परहेज करना होगा, और अविवाहित रहना होगा।
(2) तत्पश्चात् लेखक कलीसियाई संगठन तथा आराधना-विधि के विषय में निर्देश देते हैं। वह इस पर विशेष प्रकाश डालते हैं कि मसीही धर्मसेवक का चरित्र किस प्रकार का होना चाहिए, और उसमें कौन-कौन से सद्गुण होने चाहिए।
(3) अन्त में तिमोथी को यह सलाह दी जाती है कि उन्हें प्रभु येशु के सच्चे सेवक के रूप में कैसा आचरण करना चाहिए, और कलीसिया के भिन्न-भिन्न समूहों के प्रति उनका क्या दायित्व है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
अभिवादन 1:1-2
कलीसिया तथा उसके धर्म-सेवक 1:3−3:16
तिमोथी को उनके कार्य के लिए निर्देश 4:1−6:21
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