ऐसे समय मूसा का जन्म हुआ। वह अत्यन्त सुन्दर थे और तीन महीने तक अपने पिता के घर में पाले गये। इसके बाद जब वह फेंक दिये गये, तब फरओ की पुत्री ने उन्हें गोद ले लिया और अपने पुत्र की तरह उनका पालन-पोषण किया। मूसा को मिस्रियों की सब विद्याओं का प्रशिक्षण मिला। वह शक्तिशाली वक्ता और कर्मवीर बने। “जब वह चालीस वर्ष के हुए, तब उनके मन में आया कि अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करें। उन में से एक के साथ दुर्व्यवहार होते देख कर, मूसा ने उसका पक्ष लिया और मिस्री को मार कर अत्याचार का बदला चुकाया। मूसा का विचार यह था कि मेरे भाई समझ जायेंगे कि परमेश्वर मेरे द्वारा उनका उद्धार करेगा; किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं समझा। दूसरे दिन मूसा ने दो इस्राएलियों को लड़ते देखा। उन्होंने यह कह कर उन में मेल कराने का प्रयास किया, ‘मित्रो! आप लोग भाई-भाई हैं। आप क्यों एक दूसरे का अनिष्ट करना चाहते हैं?’ जो व्यक्ति अपने पड़ोसी के साथ अन्याय कर रहा था, उसने मूसा को एक ओर ढकेल दिया और कहा, ‘किसने तुम को हमारा शासक और न्यायकर्ता नियुक्त किया है? कल तुमने उस मिस्री का वध किया। क्या तुम उसी तरह मुझको भी मार डालना चाहते हो?’ इस बात पर मूसा वहाँ से भाग निकले और मिद्यान देश में परदेशी के रूप में रहने लगे। वहाँ उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए। “चालीस वर्ष पश्चात् सीनय पर्वत के निर्जन प्रदेश में मूसा को जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में एक स्वर्गदूत दिखाई दिया। यह देख कर मूसा अचम्भे में पड़ गये। जब वह इसका निरीक्षण करने के लिए निकट आये, तो उन्हें प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, ‘मैं तेरे पूर्वजों का परमेश्वर हूँ − अब्राहम, इसहाक तथा याकूब का परमेश्वर।’ मूसा डर के मारे काँप उठे। उन्हें फिर देखने का साहस नहीं हुआ। तब परमेश्वर ने उन से यह कहा, ‘पैरों से जूते उतार, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। मैंने मिस्र देश में रहने वाली अपनी प्रजा पर हो रहा अत्याचार अच्छी तरह देखा और उसकी कराह सुनी है। मैं उसका उद्धार करने उतरा हूँ। अब तैयार हो! मैं तुझे मिस्र देश भेजूँगा।’
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