दानिएल 4:1-16

दानिएल 4:1-16 HINCLBSI

नबूकदनेस्‍सर का परिपत्र: “पृथ्‍वी के सब कौमों, राष्‍ट्रों और भाषाओं के लोगो! तुम्‍हारी सुख-समृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े। “सर्वोच्‍च परमेश्‍वर ने मुझे अद्भुत चिह्‍न और चमत्‍कार दिखाए हैं। मुझे यह अच्‍छा लगा कि मैं उनका अर्थ तुम्‍हें समझाऊं। परमेश्‍वर के चिह्‍न कितने भव्‍य हैं, उसके अद्भुत कार्य कितने सामर्थ्यपूर्ण हैं! उसका राज्‍य शाश्‍वत राज्‍य है, उसका शासन पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहता है। “मैं, नबूकदनेस्‍सर अपने निवास-स्‍थान में सुख-चैन से था और अपने महल में सुख-समृद्धि भोग रहा था। मैंने एक स्‍वप्‍न देखा। उस स्‍वप्‍न ने मुझे डरा दिया। जब मैं पलंग पर लेटता तब मेरे मन के विचार, और स्‍वप्‍न के दृश्‍य मुझे परेशान करते थे। अत: मैंने एक राजाज्ञा प्रसारित की कि बेबीलोन देश के सब दरबारी विद्वान मेरे सम्‍मुख प्रस्‍तुत हों और मुझे मेरे स्‍वप्‍न का अर्थ बताएं। तब मेरे आदेश के अनुसार ज्‍योतिषी, तांत्रिक, शकुन विचारनेवाले और कसदी पंडित मेरे महल में आए। मैंने उन्‍हें अपना स्‍वप्‍न बताया, किन्‍तु वे उसका अर्थ मुझ पर प्रकट नहीं कर सके। तत्‍पश्‍चात् दानिएल आए, जिनका नाम मेरे ईश-देवता के नाम पर बेलतशस्‍सर रखा गया है, और जिनमें पवित्र परमेश्‍वर का आत्‍मा निवास करता है। मैंने दानिएल को अपना स्‍वप्‍न बताया और उनसे यह कहा, “ओ ज्‍योतिषियों के अगुए, बेलतशस्‍सर! मैं जनता हूं कि तुममें पवित्र परमेश्‍वर का आत्‍मा निवास करता है, और तुम्‍हारे लिए किसी भी रहस्‍य का भेद बताना कठिन नहीं है। सुनो, मैंने यह स्‍वप्‍न देखा है। मुझे इसका अर्थ बताओ। जब मैं पलंग पर लेटा हुआ था, तब मैंने ये दर्शन देखे: मैंने देखा कि पृथ्‍वी के बीचोंबीच एक पेड़ है और उस पेड़ की ऊंचाई बहुत ऊंची है। वह पेड़ बढ़ता ही गया और मजबूत होता गया। वह इतना बढ़ा कि उसका शिखर आकाश को छूने लगा। वह इतना ऊंचा हो गया कि पृथ्‍वी के छोर से दिखाई देने लगा। उसकी पत्तियां दिखने में सुन्‍दर थीं और वह फलों से लदा था। उसमें इतने फल थे कि सब प्राणी उनको खाकर तृप्‍त हो सकते थे। उसकी छांव में सब वन-पशु बसेरा कर रहे थे। उसकी शाखाओं पर आकाश के पक्षियों ने घोंसले बना लिए थे। पृथ्‍वी के प्राणी उसका फल खाकर अपना भरण-पोषण करते थे। ‘जब मैं पलंग पर लेटा हुआ अपने मन में यह दर्शन देख रहा था, तब मैंने दर्शन में एक प्रहरी को देखा। वह पवित्र दूत था, जो स्‍वर्ग से नीचे उतरा। उसने उच्‍च स्‍वर में पुकारा, और यह कहा, “इस वृक्ष को काट डालो, और इसकी शाखाओं को छांट दो। इसकी पत्तियों को झड़ा दो, और इसके फल बिखेर दो। इसकी छांव में बैठे हुए वनपशुओं को भगा दो। इसकी शाखाओं में बसेरा करनेवाले पक्षियों को उड़ा दो। किन्‍तु भूमि पर उसके तने को छोड़ दो, और उसकी जड़ मत उखाड़ो। तने को लोहे और पीतल की जंजीर से बांधो, और उसको मैदान में हरी घास के बीच छोड़ दो, ताकि वह आकाश की ओस से सींचा जाए और वनपशु की तरह भूमि की घास खाए। उसका हृदय बदल जाए! उसको मनुष्‍य के हृदय के बदले पशु का हृदय मिले। वह सात वर्ष तक इसी दशा में रहे।’

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