‘तेरा प्रभु परमेश्वर तेरे मध्य से, तेरे जाति-भाइयों में से मेरे समान एक नबी को तेरे लिए उत्पन्न करेगा। तू उसकी बातें सुनना। यह तूने सभा के दिन होरेब पर्वत पर अपने प्रभु परमेश्वर से मांगा था। तूने कहा था, “भला हो कि मैं अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी फिर न सुनूं, और यह विशाल अग्नि फिर न देखूं, अन्यथा मैं मर जाऊंगा।” तब प्रभु ने मुझ से कहा था, “जो कुछ ये बोले, अच्छा ही बोले। मैं इनके जाति-भाइयों के मध्य से इनके लिए तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा। मैं अपने वचन उसके मुंह में डालूंगा। जो आज्ञा मैं उसे दूंगा, वही वह उन्हें बताएगा। जो मनुष्य मेरे उन वचनों को, जो वह मेरे नाम से बोलेगा, नहीं सुनेगा, उससे मैं लेखा लूंगा। परन्तु जो नबी ढिठाई से मेरे नाम से ऐसे वचन कहेगा जिनको बोलने की आज्ञा मैंने नहीं दी है, अथवा जो दूसरे देवताओं के नाम से बोलेगा, उस नबी का वध किया जाएगा।” यदि तू अपने हृदय में यह प्रश्न पूछे, “जो वचन प्रभु ने नहीं कहा है, उसको हम किस प्रकार जानेंगे?” तो उसकी यह पहचान है : जब नबी प्रभु के नाम से बोलता है, और वचन के अनुसार कार्य नहीं होता, अर्थात् उसका वचन सत्य प्रमाणित नहीं होता है, तब उस वचन को प्रभु ने नहीं कहा था, वरन् नबी ने ढिठाई से उसको कहा था। तू उससे मत डरना।
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