व्यवस्था-विवरण 26
26
प्रथम फल और दशमांश चढ़ाने की विधि
1‘ जब तू उस देश में प्रवेश करेगा, जो तेरा प्रभु परमेश्वर तुझे पैतृक अधिकार के लिए दे रहा है, और उस पर अधिकार कर उस में बस जाएगा, 2तब तू भूमि की समस्त प्रथम फल में से कुछ उपज लेना, जो तूने उस देश में उत्पन्न की है जिसको तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे दिया है। तू उसको एक टोकरी में रखना, और उस स्थान को जाना, जिसको तेरा प्रभु परमेश्वर चुनेगा और वहां अपना नाम प्रतिष्ठित करेगा।#नि 23:19; गण 18:13 3जो पुरोहित उस समय वहां सेवा करता होगा, तू उसके पास जाकर यह कहना, “आज मैं अपने प्रभु परमेश्वर के सामने यह घोषित करता हूँ कि जिस देश को देने की शपथ प्रभु ने हमारे पूर्वजों से खाई थी, उसमें मैं पहुंच गया हूँ।” 4तब पुरोहित तेरे हाथ से टोकरी लेगा, और उसको तेरे प्रभु परमेश्वर की वेदी के सम्मुख रख देगा।
5‘तू अपने प्रभु परमेश्वर के सामने इस बात की घोषणा करना : “यहाँ-वहाँ भटकने वाला अरामी जाति का पुरुष मेरा पिता था। वह मिस्र देश जाकर वहाँ प्रवास करने लगा था। वह अल्पसंख्यक था। किन्तु वह वहां महान, बलवान और बहुसंख्यक राष्ट्र बन गया।#व्य 6:21-23; यहो 24:2-13#व्य 10:22; भज 105:12 6अत: मिस्र निवासी हमारे साथ बुरा व्यवहार करने लगे। उन्होंने हमें दु:ख दिया, हमसे कठोर बेगार#26:6 अथवा ‘गुलामी’। करवाई। 7तब हमने अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्वर की दुहाई दी। उसने हमारी पुकार सुनी, और हमारे कष्ट, हमारे कठोर परिश्रम और हम पर किए जाने वाले अत्याचार को देखा। 8प्रभु ने चिह्नों, आश्चर्यपूर्ण कर्मों, भुजबल, महा-आतंकमय कार्यों और उद्धार के हेतु बढ़ाए गए अपने हाथों से हमें मिस्र देश से बाहर निकाल लिया। 9उसने हमें इस स्थान पर पहुंचाया, और हमें यह देश प्रदान किया जहां दूध और शहद की नदियां बहती हैं। 10अब हे प्रभु देख! जो देश तूने मुझे प्रदान किया है, उसकी भूमि की उपज का प्रथम फल मैं तेरे पास लाया हूँ।” इतना कह कर तू अपने चढ़ावे को प्रभु परमेश्वर के सम्मुख रख देना, और अपने प्रभु परमेश्वर की वन्दना करना। 11उसके बाद अपनी समस्त अच्छी वस्तुओं के लिए जो तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे दी हैं, अपने परिवार, लेवीय जन और तेरे मध्य रहने वाले प्रवासी के साथ तू आनन्द मनाना।
12‘जब तू तीसरे वर्ष, अर्थात् दशमांश वर्ष में, अपनी उपज का समस्त दशमांश लेवीय जन, प्रवासी, पितृहीन और विधवा को चुका देगा कि वे तेरे नगर में भर पेट भोजन करें 13तब तू अपने परमेश्वर के सामने यह घोषित करना, “मैंने अपने घर में से पवित्र अंश को निकाल लिया। जो आज्ञाएं तूने मुझे दी हैं, उनके अनुसार मैंने वह अंश लेवीय जन, प्रवासी, पितृहीन और विधवा को दे दिया। इस प्रकार मैंने तेरी आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं किया और न मैं उनको भूला ही हूँ। 14जब मैं शोक मना रहा था तब मैंने दशमांश में से नहीं खाया। जब मैं अशुद्ध स्थिति में था तब मैंने उसको चढ़ावे के लिए निकालकर नहीं रखा। मैंने उसमें से कुछ भी अंश मृत व्यक्ति को अर्पित नहीं किया। इस प्रकार मैंने अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनी। जो आज्ञाएं तूने मुझे दी थीं, उसके अनुसार मैंने कार्य किया।#हो 9:4 15तू अपने पवित्र निवास स्थान से, स्वर्ग से हम पर दृष्टि कर। अपने निज लोग इस्राएलियों को, इस देश की भूमि को, जो तूने हमें दी है, दूध और शहद की नदियों वाले हमारे इस देश को, जो तूने हमारे पूर्वजों से खायी हुई शपथ के अनुसार हमें प्रदान किया है आशिष दे।” #भज 11:4; 1 रा 8:43
परमेश्वर के पवित्र लोग
16‘ओ इस्राएल! आज तेरा प्रभु परमेश्वर तुझे आज्ञा दे रहा है कि तू इन संविधियों और न्याय-सिद्धान्तों को व्यवहार में लाना। तू इनका पालन करना, और अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण से इनके अनुसार आचरण करना। 17तूने आज प्रभु के विषय में यह घोषित किया है#26:17 अथवा ‘आज तुझे प्रभु से यह आश्वासन मिला है’। कि वह तेरा परमेश्वर है, और तू उसके मार्ग पर चलेगा, उसकी संविधियों, आज्ञाओं और न्याय-सिद्धान्तों का पालन करेगा, उसकी वाणी को सुनेगा। 18प्रभु ने आज तेरे विषय में यह घोषित किया है#26:18 अथवा, ‘आज प्रभु को तुझसे यह आश्वासन मिला है’। कि तू उसके वचन के अनुसार उसकी प्रजा, उसकी निज सम्पत्ति है, और तू उसकी समस्त आज्ञाओं का पालन करेगा।#नि 19:5; व्य 7:6 19जिन राष्ट्रों को उसने रचा है, उनके मध्य वह तुझे सर्वोच्च आसन पर प्रतिष्ठित करेगा जिससे उसकी स्तुति, प्रसिद्धि और सम्मान हो। जैसा प्रभु परमेश्वर ने कहा है उसके अनुसार तू उसकी पवित्र प्रजा बनेगा।’
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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व्यवस्था-विवरण 26
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प्रथम फल और दशमांश चढ़ाने की विधि
1‘ जब तू उस देश में प्रवेश करेगा, जो तेरा प्रभु परमेश्वर तुझे पैतृक अधिकार के लिए दे रहा है, और उस पर अधिकार कर उस में बस जाएगा, 2तब तू भूमि की समस्त प्रथम फल में से कुछ उपज लेना, जो तूने उस देश में उत्पन्न की है जिसको तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे दिया है। तू उसको एक टोकरी में रखना, और उस स्थान को जाना, जिसको तेरा प्रभु परमेश्वर चुनेगा और वहां अपना नाम प्रतिष्ठित करेगा।#नि 23:19; गण 18:13 3जो पुरोहित उस समय वहां सेवा करता होगा, तू उसके पास जाकर यह कहना, “आज मैं अपने प्रभु परमेश्वर के सामने यह घोषित करता हूँ कि जिस देश को देने की शपथ प्रभु ने हमारे पूर्वजों से खाई थी, उसमें मैं पहुंच गया हूँ।” 4तब पुरोहित तेरे हाथ से टोकरी लेगा, और उसको तेरे प्रभु परमेश्वर की वेदी के सम्मुख रख देगा।
5‘तू अपने प्रभु परमेश्वर के सामने इस बात की घोषणा करना : “यहाँ-वहाँ भटकने वाला अरामी जाति का पुरुष मेरा पिता था। वह मिस्र देश जाकर वहाँ प्रवास करने लगा था। वह अल्पसंख्यक था। किन्तु वह वहां महान, बलवान और बहुसंख्यक राष्ट्र बन गया।#व्य 6:21-23; यहो 24:2-13#व्य 10:22; भज 105:12 6अत: मिस्र निवासी हमारे साथ बुरा व्यवहार करने लगे। उन्होंने हमें दु:ख दिया, हमसे कठोर बेगार#26:6 अथवा ‘गुलामी’। करवाई। 7तब हमने अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्वर की दुहाई दी। उसने हमारी पुकार सुनी, और हमारे कष्ट, हमारे कठोर परिश्रम और हम पर किए जाने वाले अत्याचार को देखा। 8प्रभु ने चिह्नों, आश्चर्यपूर्ण कर्मों, भुजबल, महा-आतंकमय कार्यों और उद्धार के हेतु बढ़ाए गए अपने हाथों से हमें मिस्र देश से बाहर निकाल लिया। 9उसने हमें इस स्थान पर पहुंचाया, और हमें यह देश प्रदान किया जहां दूध और शहद की नदियां बहती हैं। 10अब हे प्रभु देख! जो देश तूने मुझे प्रदान किया है, उसकी भूमि की उपज का प्रथम फल मैं तेरे पास लाया हूँ।” इतना कह कर तू अपने चढ़ावे को प्रभु परमेश्वर के सम्मुख रख देना, और अपने प्रभु परमेश्वर की वन्दना करना। 11उसके बाद अपनी समस्त अच्छी वस्तुओं के लिए जो तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे दी हैं, अपने परिवार, लेवीय जन और तेरे मध्य रहने वाले प्रवासी के साथ तू आनन्द मनाना।
12‘जब तू तीसरे वर्ष, अर्थात् दशमांश वर्ष में, अपनी उपज का समस्त दशमांश लेवीय जन, प्रवासी, पितृहीन और विधवा को चुका देगा कि वे तेरे नगर में भर पेट भोजन करें 13तब तू अपने परमेश्वर के सामने यह घोषित करना, “मैंने अपने घर में से पवित्र अंश को निकाल लिया। जो आज्ञाएं तूने मुझे दी हैं, उनके अनुसार मैंने वह अंश लेवीय जन, प्रवासी, पितृहीन और विधवा को दे दिया। इस प्रकार मैंने तेरी आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं किया और न मैं उनको भूला ही हूँ। 14जब मैं शोक मना रहा था तब मैंने दशमांश में से नहीं खाया। जब मैं अशुद्ध स्थिति में था तब मैंने उसको चढ़ावे के लिए निकालकर नहीं रखा। मैंने उसमें से कुछ भी अंश मृत व्यक्ति को अर्पित नहीं किया। इस प्रकार मैंने अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनी। जो आज्ञाएं तूने मुझे दी थीं, उसके अनुसार मैंने कार्य किया।#हो 9:4 15तू अपने पवित्र निवास स्थान से, स्वर्ग से हम पर दृष्टि कर। अपने निज लोग इस्राएलियों को, इस देश की भूमि को, जो तूने हमें दी है, दूध और शहद की नदियों वाले हमारे इस देश को, जो तूने हमारे पूर्वजों से खायी हुई शपथ के अनुसार हमें प्रदान किया है आशिष दे।” #भज 11:4; 1 रा 8:43
परमेश्वर के पवित्र लोग
16‘ओ इस्राएल! आज तेरा प्रभु परमेश्वर तुझे आज्ञा दे रहा है कि तू इन संविधियों और न्याय-सिद्धान्तों को व्यवहार में लाना। तू इनका पालन करना, और अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण से इनके अनुसार आचरण करना। 17तूने आज प्रभु के विषय में यह घोषित किया है#26:17 अथवा ‘आज तुझे प्रभु से यह आश्वासन मिला है’। कि वह तेरा परमेश्वर है, और तू उसके मार्ग पर चलेगा, उसकी संविधियों, आज्ञाओं और न्याय-सिद्धान्तों का पालन करेगा, उसकी वाणी को सुनेगा। 18प्रभु ने आज तेरे विषय में यह घोषित किया है#26:18 अथवा, ‘आज प्रभु को तुझसे यह आश्वासन मिला है’। कि तू उसके वचन के अनुसार उसकी प्रजा, उसकी निज सम्पत्ति है, और तू उसकी समस्त आज्ञाओं का पालन करेगा।#नि 19:5; व्य 7:6 19जिन राष्ट्रों को उसने रचा है, उनके मध्य वह तुझे सर्वोच्च आसन पर प्रतिष्ठित करेगा जिससे उसकी स्तुति, प्रसिद्धि और सम्मान हो। जैसा प्रभु परमेश्वर ने कहा है उसके अनुसार तू उसकी पवित्र प्रजा बनेगा।’
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