जब तुम परमेश्वर के मन्दिर में जाते हो तब अपने आचरण का ध्यान रखो। मूर्ख द्वारा चढ़ाई गई बलि की अपेक्षा परमेश्वर के मन्दिर में आना, और उसका वचन सुनना श्रेष्ठ है। क्योंकि मूर्ख यह नहीं जानता है कि जो कार्य वह करता है, वह दुष्कर्म है। अपने मुंह से कोई बात जल्दी मत निकालो, और न उतावली में अपने हृदय की बात परमेश्वर के सम्मुख प्रकट करो, क्योंकि परमेश्वर तो स्वर्ग में है, और तुम पृथ्वी पर। अत: तुम्हारे शब्द थोड़े ही हों। जैसे कार्य की अधिकता के कारण व्यक्ति स्वप्न देखता है, वैसे ही बहुत बकवास से मूर्ख की मूर्खता प्रकट होती है। जब तुम परमेश्वर के लिए मन्नत मानते हो तब उसको पूरा करने में विलम्ब मत करना, क्योंकि परमेश्वर मूर्खों से प्रसन्न नहीं होता। जो मन्नत तुम मानते हो उसे पूरा करो। मन्नत मान कर उसे पूरा न करने से मन्नत का न मानना ही अच्छा है। तुम अपने मुंह से ऐसे शब्द न निकालो जो तुम्हें पाप में फंसाएं। स्वर्गदूत के सम्मुख यह न कहो कि मुझसे भूल हो गयी। अन्यथा परमेश्वर तुम्हारी आवाज सुन कर क्रुद्ध होगा, और वह परिश्रम से किए गए तुम्हारे काम को नष्ट कर देगा। जब व्यक्ति अधिकाधिक स्वप्न देखने लगता है, तब उसकी व्यर्थ बातें भी बढ़ जाती हैं। किन्तु तुम परमेश्वर का भय मानना।
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