अत: उसने सम्राट से कहा, ‘उस व्यक्ति के लिए जिससे महाराज प्रसन्न हैं, और जिसको सम्मान देना चाहते हैं, वह राजसी पोशाक लाई जाए, जिसको महाराज स्वयं पहनते हैं। उसकी सवारी के लिए वह राजमुकुट धारण करनेवाला घोड़ा लाया जाए, जिस पर महाराज स्वयं बैठते हैं; तथा यह पोशाक और घोड़ा महाराज के सर्वश्रेष्ठ उच्चाधिकारी को दिया जाए, ताकि वह उस मनुष्य को राजसी पोशाक पहिनाए और घोड़े पर बैठाए, जिससे महाराज प्रसन्न हैं और जिसको सम्मानित करना चाहते हैं। तब वह उसको नगर-चौक में घुमाए, और उसके आगे-आगे यह घोषित करे : “जिस व्यक्ति से महाराज प्रसन्न होते हैं, और जिसको सम्मान देना चाहते हैं, उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है।” ’ सम्राट क्षयर्ष ने हामान से कहा, ‘जैसा तुमने कहा है तुम शीघ्रता से राजसी पोशाक और घोड़ा लो, और राजभवन के प्रवेश-द्वार पर बैठने वाले यहूदी मोरदकय के साथ ऐसा ही करो। जैसा-जैसा तुमने कहा है, पूर्णत: वैसा ही करना, कुछ भी मत छोड़ना।’ अत: हामान ने राजसी पोशाक और घोड़ा लिया। उसने मोरदकय को राजसी पोशाक पहनाई, और उसको घोड़े पर बैठाकर नगर के चौक में घुमाया। वह उसके आगे-आगे यह घोषणा करता रहा, ‘जिस व्यक्ति से महाराज प्रसन्न होते हैं और जिसको सम्मान देना चाहते हैं, उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है।’ मोरदकय राजभवन के प्रवेश-द्वार पर लौटा, पर हामान शोक करता हुआ, सिर ढके हुए, शीघ्रता से अपने घर गया। उसने अपनी पत्नी जेरेश और सब मित्रों को बताया कि आज उस पर क्या बीता। तब उसके बुद्धिमान मित्रों और उसकी पत्नी ने उससे कहा, ‘मोरदकय, जिसके सम्मुख तुम्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा है, यदि वह यहूदी कौम का है, तो तुम उसे कभी पराजित न कर सकोगे। तुम्हें निस्सन्देह उसके सामने मुंह की खानी पड़ेगी।’
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