मूसा ने प्रभु से कहा, ‘हे मेरे स्वामी, मैं कुशल वक्ता नहीं हूं। मैं न पहले कभी था, और न जब से तू अपने सेवक से वार्तालाप करने लगा है, मैं हूं। मुझे बोलने में कठिनाई होती है और मेरी जीभ लड़खड़ाती है।’ प्रभु ने उनसे पुन: कहा, ‘किसने मनुष्य का मुंह बनाया? कौन उसे गूंगा, बहरा, दृष्टिवाला अथवा अन्धा बनाता है? क्या मैं प्रभु ही उसे ऐसा नहीं बनाता? अब जा, मैं तेरी वाणी पर निवास करूंगा। जो बोलना है, वह मैं तुझे सिखाऊंगा।’
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