यहेजकेल 43
43
प्रभु के तेज [उसकी महिमा] की वापसी
1इसके पश्चात् वह मुझे पूर्व-मुखी फाटक पर ले गया।#यहेज 10:19 2तब मैंने देखा कि पूर्व दिशा से इस्राएल के परमेश्वर का तेज#43:2 अथवा, ‘महिमा’ आया। परमेश्वर के आगमन का स्वर सागरों के गर्जन के सदृश था। परमेश्वर के तेज से पृथ्वी ज्योतिर्मय हो गई।#यहेज 1:24; 10:18-19; प्रक 1:15 3अब मैंने एक दर्शन देखा। यह उसी दर्शन के समान था जो मैंने उस समय देखा था जब परमेश्वर का तेज नगर का विनाश करने आया था। यह दर्शन कबार नदी के तट पर देखे गए दर्शन के समान था। यह दर्शन देख कर मैं श्रद्धा और भक्ति से मुंह के बल भूमि पर गिर पड़ा।
4जब प्रभु के तेज ने पूर्व-मुखी फाटक से भवन में प्रवेश किया 5तब आत्मा ने मुझे उठा कर भीतरी आंगन में पहुंचा दिया। मैंने देखा कि प्रभु के तेज से भवन भर गया।#1 रा 8:10
प्रभु की वाणी
6जिस समय वह पुरुष मेरे पास खड़ा था, उसी समय मैंने मन्दिर में से किसी को मुझ से बातें करते हुए सुना। 7उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, यह मेरे सिंहासन का स्थान है। यही मेरे चरणों की चौकी है। इसी स्थान में मैं युग-युगांत इस्राएली लोगों के मध्य निवास करूंगा। अब इस्राएल के वंशज मेरे पवित्र नाम को अपवित्र#43:7 अथवा, ‘अशुद्ध’। नहीं करेंगे: न वे और न उनके राजा दूसरे देवताओं का अनुसरण कर मेरे प्रति विश्वासघात#43:7 अक्षरश: ‘वेश्यागमन’ करेंगे, और न अपने मृत राजाओं की समाधि बना कर मेरे पवित्र नाम को अपवित्र करेंगे।#नि 25:8; यहेज 37:26-27 8वे अपने घर की ड्योढ़ी मेरे गृह की ड्योढ़ी से, और अपने द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भों से लगा कर बनाते थे। मेरे गृह और उनके घर के मध्य केवल दीवार थी। उन्होंने अत्यन्त घृणित कार्य किए थे, और इन घृणित कार्यों से मेरे पवित्र नाम को अपवित्र कर दिया था। अत: मैंने अपने क्रोध में उनको पूर्णत: नष्ट कर दिया था। 9अब वे विश्वासघात करना बन्द करें, मेरे पवित्र भवन के पास से मृत राजाओं की समाधियां दूर करें; तब मैं उनके बीच युग-युगांत निवास करूंगा।
10‘और तू, ओ मानव, इस्राएल के वंशजों को मेरे गृह का नमूना, उसकी बनावट बता, जिससे वे अपने अधर्म के लिए लज्जित हों। 11यदि वे अपने कार्यों के लिए लज्जित होंगे, तब तू उनके सामने मेरे मन्दिर का सम्पूर्ण चित्र अंकित करना: मन्दिर की योजना, बाहर-भीतर आने-जाने के मार्ग, उसका सम्पूर्ण आकार। उन्हें मन्दिर के रीति-रिवाज, और नियम-विधियां भी बताना। तू इन सब बातों को उनके सामने ही लिख लेना जिससे वे मन्दिर के समस्त नियम-कानूनों तथा धर्म-विधियों को स्मरण रखें, और आराधना में उनका पालन करें। 12मन्दिर का धर्म-नियम यह है: पहाड़ के शिखर के चारों ओर का सम्पूर्ण भूमि-क्षेत्र परम पवित्र माना जाएगा। ओ मानव, देख, मेरे भवन का यही धर्म-नियम है।
वेदी की बनावट
13‘वेदी की नाप इस प्रकार होगी : हाथ की नाप के अनुसार वेदी का आधार हाथ-भर ऊंचा और हाथ-भर चौड़ा होगा, अर्थात् आधा मीटर#43:13 मूल में, ‘हाथ की यह नाप साधारण हाथ से चार अंगुल बड़ी है’। देखिए 40:5 की टिप्पणी। । उसके चारों ओर का किनारा पच्चीस सेन्टीमीटर का होगा। 14वेदी की ऊंचाई इस प्रकार होगी : भूमि पर रखे हुए आधार से निचले कगर तक एक मीटर, और वेदी की चौड़ाई आधा मीटर होगी। यह छोटे कगर से बड़े कगर तक दो मीटर ऊंची और आधा मीटर चौड़ी होगी। 15वेदी का अग्निकुण्ड दो मीटर ऊंचा होगा। वेदी के अग्निकुण्ड के ऊपर आधा मीटर ऊंचे सींग होंगे। 16अग्निकुण्ड वर्गाकार होगा−छ: मीटर लम्बा और छ: मीटर चौड़ा। 17कगर भी वर्गाकार होगा−सात मीटर लम्बा और सात मीटर चौड़ा। उसके चारों ओर का किनारा पच्चीस सेन्टीमीटर का होगा। चारों ओर का आधार आधा मीटर का होगा। वेदी की सीढ़ियां पूर्व दिशा में होंगी।’#नि 27:1-2
वेदी की प्रतिष्ठा
18उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, स्वामी-प्रभु यों कहता है: वेदी के सम्बन्ध में मेरे ये आदेश हैं: वेदी पर अग्नि-बलि अर्पित की जाएगी, और उस पर बलि-पशु का रक्त छिड़का जाएगा। जिस दिन वह इस कार्य के लिए बन कर तैयार होगी, उस दिन#1 मक 4:52-56 19तू लेवी कुल के पुरोहितों को, जो सादोक के वंशज हैं, पाप-बलि चढ़ाने के लिए एक बछड़ा देना। वे ही पुरोहित मेरी धर्म-सेवा करने के लिए मेरे निकट आ सकते हैं। मुझ-स्वामी प्रभु की यही वाणी है। 20तू उस बछड़े का रक्त लेना और उसको वेदी के चारों सींगों, कगर के चारों कोनों और चारों ओर के किनारे पर लगा देना। यों तू उसको शुद्ध करेगा और यह उसका प्रायश्चित होगा।
21‘इसके पश्चात् तू पाप-बलि में चढ़ाए गए बछड़े को पवित्र स्थान के बाहर, मन्दिर की सीमा में निर्धारित स्थान पर जला देना। 22दूसरे दिन की पाप प्रायश्चित-बलि में एक निर्दोष बकरा चढ़ाना। वेदी जैसे बछड़े की बलि से शुद्ध हुई थी वैसे ही बकरे की बलि से भी शुद्ध होगी। 23वेदी को शुद्ध करने के बाद तू एक निर्दोष बछड़ा और रेवड़ में से एक निर्दोष मेढ़ा बलि करना। 24तू उनको प्रभु की वेदी के सामने लाना। पुरोहित उन पर नमक छिड़केंगे, और उनको अग्निबलि के रूप में प्रभु को अर्पित करेंगे। 25सात दिन तक प्रतिदिन पाप की प्रायश्चित-बलि के रूप में एक बकरा प्रभु को अर्पित करना। इसी प्रकार प्रतिदिन एक निर्दोष बछड़ा और रेवड़ में से एक निर्दोष मेढ़ा भी चढ़ाना।#नि 29:35 26सात दिन तक पुरोहित वेदी को शुद्ध करने के लिए पाप की प्रायश्चित-बलि चढ़ाएंगे। इस प्रकार प्रभु के लिए उसकी प्रतिष्ठा होगी। 27जब पुरोहित सात दिन पुरे कर लेंगे तब आठवें दिन से वे तुम्हारी अग्नि-बलि और सहभागिता-बलि#43:27 अथवा, “शांति-बलि” वेदी पर चढ़ाने लगेंगे। तब मैं तुमको स्वीकार करूंगा।’ स्वामी-प्रभु की यही वाणी है।
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प्रभु के तेज [उसकी महिमा] की वापसी
1इसके पश्चात् वह मुझे पूर्व-मुखी फाटक पर ले गया।#यहेज 10:19 2तब मैंने देखा कि पूर्व दिशा से इस्राएल के परमेश्वर का तेज#43:2 अथवा, ‘महिमा’ आया। परमेश्वर के आगमन का स्वर सागरों के गर्जन के सदृश था। परमेश्वर के तेज से पृथ्वी ज्योतिर्मय हो गई।#यहेज 1:24; 10:18-19; प्रक 1:15 3अब मैंने एक दर्शन देखा। यह उसी दर्शन के समान था जो मैंने उस समय देखा था जब परमेश्वर का तेज नगर का विनाश करने आया था। यह दर्शन कबार नदी के तट पर देखे गए दर्शन के समान था। यह दर्शन देख कर मैं श्रद्धा और भक्ति से मुंह के बल भूमि पर गिर पड़ा।
4जब प्रभु के तेज ने पूर्व-मुखी फाटक से भवन में प्रवेश किया 5तब आत्मा ने मुझे उठा कर भीतरी आंगन में पहुंचा दिया। मैंने देखा कि प्रभु के तेज से भवन भर गया।#1 रा 8:10
प्रभु की वाणी
6जिस समय वह पुरुष मेरे पास खड़ा था, उसी समय मैंने मन्दिर में से किसी को मुझ से बातें करते हुए सुना। 7उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, यह मेरे सिंहासन का स्थान है। यही मेरे चरणों की चौकी है। इसी स्थान में मैं युग-युगांत इस्राएली लोगों के मध्य निवास करूंगा। अब इस्राएल के वंशज मेरे पवित्र नाम को अपवित्र#43:7 अथवा, ‘अशुद्ध’। नहीं करेंगे: न वे और न उनके राजा दूसरे देवताओं का अनुसरण कर मेरे प्रति विश्वासघात#43:7 अक्षरश: ‘वेश्यागमन’ करेंगे, और न अपने मृत राजाओं की समाधि बना कर मेरे पवित्र नाम को अपवित्र करेंगे।#नि 25:8; यहेज 37:26-27 8वे अपने घर की ड्योढ़ी मेरे गृह की ड्योढ़ी से, और अपने द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भों से लगा कर बनाते थे। मेरे गृह और उनके घर के मध्य केवल दीवार थी। उन्होंने अत्यन्त घृणित कार्य किए थे, और इन घृणित कार्यों से मेरे पवित्र नाम को अपवित्र कर दिया था। अत: मैंने अपने क्रोध में उनको पूर्णत: नष्ट कर दिया था। 9अब वे विश्वासघात करना बन्द करें, मेरे पवित्र भवन के पास से मृत राजाओं की समाधियां दूर करें; तब मैं उनके बीच युग-युगांत निवास करूंगा।
10‘और तू, ओ मानव, इस्राएल के वंशजों को मेरे गृह का नमूना, उसकी बनावट बता, जिससे वे अपने अधर्म के लिए लज्जित हों। 11यदि वे अपने कार्यों के लिए लज्जित होंगे, तब तू उनके सामने मेरे मन्दिर का सम्पूर्ण चित्र अंकित करना: मन्दिर की योजना, बाहर-भीतर आने-जाने के मार्ग, उसका सम्पूर्ण आकार। उन्हें मन्दिर के रीति-रिवाज, और नियम-विधियां भी बताना। तू इन सब बातों को उनके सामने ही लिख लेना जिससे वे मन्दिर के समस्त नियम-कानूनों तथा धर्म-विधियों को स्मरण रखें, और आराधना में उनका पालन करें। 12मन्दिर का धर्म-नियम यह है: पहाड़ के शिखर के चारों ओर का सम्पूर्ण भूमि-क्षेत्र परम पवित्र माना जाएगा। ओ मानव, देख, मेरे भवन का यही धर्म-नियम है।
वेदी की बनावट
13‘वेदी की नाप इस प्रकार होगी : हाथ की नाप के अनुसार वेदी का आधार हाथ-भर ऊंचा और हाथ-भर चौड़ा होगा, अर्थात् आधा मीटर#43:13 मूल में, ‘हाथ की यह नाप साधारण हाथ से चार अंगुल बड़ी है’। देखिए 40:5 की टिप्पणी। । उसके चारों ओर का किनारा पच्चीस सेन्टीमीटर का होगा। 14वेदी की ऊंचाई इस प्रकार होगी : भूमि पर रखे हुए आधार से निचले कगर तक एक मीटर, और वेदी की चौड़ाई आधा मीटर होगी। यह छोटे कगर से बड़े कगर तक दो मीटर ऊंची और आधा मीटर चौड़ी होगी। 15वेदी का अग्निकुण्ड दो मीटर ऊंचा होगा। वेदी के अग्निकुण्ड के ऊपर आधा मीटर ऊंचे सींग होंगे। 16अग्निकुण्ड वर्गाकार होगा−छ: मीटर लम्बा और छ: मीटर चौड़ा। 17कगर भी वर्गाकार होगा−सात मीटर लम्बा और सात मीटर चौड़ा। उसके चारों ओर का किनारा पच्चीस सेन्टीमीटर का होगा। चारों ओर का आधार आधा मीटर का होगा। वेदी की सीढ़ियां पूर्व दिशा में होंगी।’#नि 27:1-2
वेदी की प्रतिष्ठा
18उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, स्वामी-प्रभु यों कहता है: वेदी के सम्बन्ध में मेरे ये आदेश हैं: वेदी पर अग्नि-बलि अर्पित की जाएगी, और उस पर बलि-पशु का रक्त छिड़का जाएगा। जिस दिन वह इस कार्य के लिए बन कर तैयार होगी, उस दिन#1 मक 4:52-56 19तू लेवी कुल के पुरोहितों को, जो सादोक के वंशज हैं, पाप-बलि चढ़ाने के लिए एक बछड़ा देना। वे ही पुरोहित मेरी धर्म-सेवा करने के लिए मेरे निकट आ सकते हैं। मुझ-स्वामी प्रभु की यही वाणी है। 20तू उस बछड़े का रक्त लेना और उसको वेदी के चारों सींगों, कगर के चारों कोनों और चारों ओर के किनारे पर लगा देना। यों तू उसको शुद्ध करेगा और यह उसका प्रायश्चित होगा।
21‘इसके पश्चात् तू पाप-बलि में चढ़ाए गए बछड़े को पवित्र स्थान के बाहर, मन्दिर की सीमा में निर्धारित स्थान पर जला देना। 22दूसरे दिन की पाप प्रायश्चित-बलि में एक निर्दोष बकरा चढ़ाना। वेदी जैसे बछड़े की बलि से शुद्ध हुई थी वैसे ही बकरे की बलि से भी शुद्ध होगी। 23वेदी को शुद्ध करने के बाद तू एक निर्दोष बछड़ा और रेवड़ में से एक निर्दोष मेढ़ा बलि करना। 24तू उनको प्रभु की वेदी के सामने लाना। पुरोहित उन पर नमक छिड़केंगे, और उनको अग्निबलि के रूप में प्रभु को अर्पित करेंगे। 25सात दिन तक प्रतिदिन पाप की प्रायश्चित-बलि के रूप में एक बकरा प्रभु को अर्पित करना। इसी प्रकार प्रतिदिन एक निर्दोष बछड़ा और रेवड़ में से एक निर्दोष मेढ़ा भी चढ़ाना।#नि 29:35 26सात दिन तक पुरोहित वेदी को शुद्ध करने के लिए पाप की प्रायश्चित-बलि चढ़ाएंगे। इस प्रकार प्रभु के लिए उसकी प्रतिष्ठा होगी। 27जब पुरोहित सात दिन पुरे कर लेंगे तब आठवें दिन से वे तुम्हारी अग्नि-बलि और सहभागिता-बलि#43:27 अथवा, “शांति-बलि” वेदी पर चढ़ाने लगेंगे। तब मैं तुमको स्वीकार करूंगा।’ स्वामी-प्रभु की यही वाणी है।
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