उत्‍पत्ति 3:8-24

उत्‍पत्ति 3:8-24 HINCLBSI

जब संध्‍या समय हवा बहने लगी, तब उन्‍होंने उद्यान में प्रभु परमेश्‍वर की पग-ध्‍वनि सुनी। मनुष्‍य और उसकी पत्‍नी ने प्रभु परमेश्‍वर की उपस्‍थिति से स्‍वयं को उद्यान के वृक्षों में छिपा लिया। परन्‍तु प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को पुकारा, ‘तू कहाँ है?’ उसने उत्तर दिया, ‘मैंने उद्यान में तेरी पग-ध्‍वनि सुनी। मैं डर गया, क्‍योंकि मैं नंगा था। इसलिए मैंने स्‍वयं को छिपा लिया है।’ प्रभु परमेश्‍वर ने पूछा, ‘किसने तुझसे कहा कि तू नंगा है? क्‍या तूने उस पेड़ का फल खाया है, जिसे न खाने के लिए मैंने तुझे आज्ञा दी थी?’ मनुष्‍य ने उत्तर दिया, ‘जो स्‍त्री तूने मेरे साथ रहने के लिए दी है, उसने उस पेड़ का फल मुझे दिया, और मैंने उसे खा लिया।’ प्रभु परमेश्‍वर ने स्‍त्री से पूछा, ‘यह तूने क्‍या किया?’ स्‍त्री ने उत्तर दिया, ‘सांप ने मुझे बहका दिया और मैंने फल खा लिया।’ प्रभु परमेश्‍वर ने सांप से कहा, ‘तूने यह कार्य किया, इसलिए तू समस्‍त पालतू पशुओं तथा सब वन-पशुओं में शापित है! तू पेट के बल चलेगा। तू आजीवन धूल चाटता रहेगा। मैं तेरे और स्‍त्री के बीच, तेरे वंश और स्‍त्री के वंश के मध्‍य शत्रुता उत्‍पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचलेगा, और तू उसकी एड़ी डसेगा।’ प्रभु परमेश्‍वर ने स्‍त्री से कहा, ‘मैं तेरी प्रसव-पीड़ा को असहनीय बनाऊंगा। तू पीड़ा से ही बच्‍चों को जन्‍म देगी। तेरी इच्‍छाएं पति के लिए होंगी। वह तुझ पर शासन करेगा।’ प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य से कहा, ‘तूने अपनी पत्‍नी की बात सुनी, और उस पेड़ का फल खाया जिसके विषय में मैंने आज्ञा दी थी कि “उसका फल न खाना।” अतएव तेरे कारण भूमि शापित हुई। उसकी फसल खाने के लिए तुझे जीवनभर कठोर परिश्रम करना पड़ेगा। वह तेरे लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, जब तू खेत की उपज खाएगा। तू तब तक अपने पसीने की रोटी खाएगा, जब तक उस भूमि में न लौटे जिससे तू बनाया गया था। तू तो मिट्टी है, और मिट्टी में ही मिल जाएगा।’ मनुष्‍य ने अपनी पत्‍नी का नाम हव्‍वा रखा, क्‍योंकि वह समस्‍त जीवन-धारी प्राणियों की माता बनी। प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य और उसकी पत्‍नी को चमड़े के वस्‍त्र बनाकर पहिनाए। प्रभु परमेश्‍वर ने कहा, ‘देखो, मनुष्‍य भले और बुरे को जानकर हममें से एक के समान बन गया है। अब कहीं ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल तोड़ ले, और उसे खाकर अमर हो जाए।’ अत: प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को अदन के उद्यान से भेज दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे, जिसमें से उसे बनाया गया था। उसने मनुष्‍य को निकाल दिया। उसने जीवन के वृक्ष की ओर जाने वाले मार्ग की रखवाली करने के लिए अदन के उद्यान की पूर्व दिशा में करूबों को तथा चारों ओर घूमने वाली ज्‍वालामय तलवार को नियुक्‍त किया।