यूसुफ अपने पिता को गाड़ने के पश्चात् अपने भाइयों एवं उन सब के साथ मिस्र देश को लौट गया, जो शव को गाड़ने के लिए उसके साथ आए थे। जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है तब कहने लगे, ‘अब कदाचित् यूसुफ हमसे घृणा करेगा। हमसे उन सब बुराइयों का बदला लेगा, जो हमने उससे की थीं।’ अत: उन्होंने यूसुफ के पास एक दूत भेजा और कहा, ‘तुम्हारे पिता ने अपनी मृत्यु के पूर्व यह आदेश दिया था : “यूसुफ से कहना कि वह कृपा कर अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा करे; क्योंकि उन्होंने उसके साथ बुराई की थी।” अब कृपाकर अपने पिता के परमेश्वर के सेवकों के अपराध क्षमा कीजिए।’ जब उन्होंने ये बातें यूसुफ से कहीं तब वह रो पड़ा। उसके भाई भी आए। वे उसके सम्मुख भूमि पर गिरकर बोले, ‘हम आपके सेवक हैं।’ किन्तु यूसुफ ने कहा, ‘मत डरो! क्या मैं परमेश्वर के स्थान पर हूँ? तुमने मेरे साथ बुराई की योजना बनायी, किन्तु परमेश्वर ने भलाई के लिए उसका उपयोग किया कि अनेक लोग जीवित बचें, जैसे वे आज भी जीवित हैं। अत: तुम मत डरो। मैं तुम्हारा और तुम्हारे छोटे-छोटे बच्चों का पालन-पोषण करता रहूँगा।’ इस प्रकार यूसुफ ने उन्हें आश्वस्त किया और अपनी प्रेमपूर्ण बातों से उनको शान्ति दी।
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