यशायाह 40

40
[अन्‍य नबूवतों का संग्रह :]
इस्राएली लोगों को प्रभु की सांत्‍वना
1तुम्‍हारा परमेश्‍वर यह कहता है :
“मेरे निज लोग इस्राएल को
शान्‍ति#40:1 अथवा, ‘सांत्‍वना’। दो, शान्‍ति!
2यरूशलेम के हृदय से बात करो,
उसको बताओ कि
उसके निष्‍कासन#40:2 अथवा, ‘कठिन सेवा’। के दिन पूरे हो गए;
उसके अधर्म का मूल्‍य चुका दिया गया;
उसे मुझ-प्रभु के हाथ से
अपने पापों का दुगना दण्‍ड
प्राप्‍त हो चुका है।”
3सुनो, कोई पुकार रहा है:
“निर्जन प्रदेश में प्रभु का मार्ग सुधारो#40:3 अथवा, ‘तैयार करो’।
हमारे परमेश्‍वर के लिए मरुस्‍थल में
राजपथ सीधा करो।#मत 3:3; मल 3:1; लू 1:76; यो 1:23; प्रव 48:10; बारू 5:7
4हर एक घाटी को भर दो,
प्रत्‍येक पहाड़ और पहाड़ी को गिरा दो,
ऊंची-नीची जमीन को समतल कर दो,
ऊबड़-खाबड़ मैदान को सपाट बना दो।
5तब प्रभु की महिमा प्रकट होगी,
और समस्‍त मनुष्‍यजाति
उसको एक-साथ देखेगी।
प्रभु ने अपने मुख से यह कहा है।” #लू 3:4-6
6बोलनेवाला यह आदेश देता है,
“प्रचार कर।”
मैंने उत्तर दिया, “मैं क्‍या प्रचार करूँ?”
समस्‍त प्राणी घास की तरह अनित्‍य हैं,
उनकी शोभा बाग के फूल के समान क्षणिक है।
7जब प्रभु का श्‍वास घास पर पड़ता है
तब वह सूख जाती है, फूल मुरझा जाते हैं।
निस्‍सन्‍देह ये लोग घास ही हैं!
8घास सूख जाती है, फूल मुरझाते हैं,
पर हमारे परमेश्‍वर का वचन नित्‍य है,
वह कभी टलता नहीं।#1 पत 1:25; याक 1:10-11
9ओ सियोन को शुभ सन्‍देश सुनानेवाली,#40:9 अथवा, ‘ओ सियोन, शुभ संदेश सुनानेवाली!’
ऊंचे पर्वत पर चढ़कर सन्‍देश सुना!
ओ यरूशलेम को शुभ सन्‍देश सुनानेवाली,
बल्‍पूर्वक उच्‍च स्‍वर में सुना!
मत डर, ऊंची आवाज में सुना।
यहूदा प्रदेश के नगरों में यह प्रचार कर,
“देखो! तुम्‍हारा परमेश्‍वर!” #यश 52:7; नहू 1:15; प्रे 10:36; रोम 10:15
10देखो, प्रभु स्‍वामी सामर्थ्य के साथ आ रहा है,
वह अपने भुजबल से शासन करता है।
देखो, उसका पुरस्‍कार उसके साथ है,
उसके आगे-आगे उसका प्रतिफल है!#यश 62:11; प्रक 22:12
11वह मेषपाल#40:11 अथवा, ‘चरवाहा’ के सदृश
अपने रेवड़ को चराएगा;
वह अपनी बाहों में मेमनों को उठाएगा;
वह उन्‍हें अपनी गोद में उठाकर ले जाएगा,
वह दूध पिलानेवाली भेड़ों को
धीरे-धीरे ले जाएगा।
इस्राएल का अतुलनीय परमेश्‍वर#यहेज 34:23; यो 10:11
12अपनी अंजली से किसने महासागर को
नापा है?
किसने बित्ते से आकाश को नापा है?
किसने पृथ्‍वी की मिट्टी को नाप में भरा है?
किसने तराजू से पहाड़ी को तौला है?
किसने पहाड़ियों को पलड़ों में रखा है?#अय्‍य 38:4-5
13प्रभु के आत्‍मा को किसने निर्देशित किया है?
उसका परामर्शदाता कौन है,
जो उसको सिखाता है?#रोम 11:34; 1 कुर 2:16
14उसने किस से ज्ञान के लिए सम्‍मति मांगी?
किसने उसे न्‍याय का मार्ग सिखाया है?
किसने उसे ज्ञान सिखाया है?
किसने उसे बुद्धि का मार्ग बताया है?
15देखो, राष्‍ट्र तो ऐसे हैं, जैसे बाल्‍टी में एक
बूंद;
वे तराजू के पलड़ों में लगे रजकण के समान हैं!
देखो, वह द्वीपों को धूल के सदृश उठा लेता है।#प्रज्ञ 11:12; प्रव 10:16-17
16लबानोन का विशाल वन भी
उसके ईंधन के लिए अपर्याप्‍त है,
वन के समस्‍त पशु भी
उसकी अग्‍नि-बलि के लिए पर्याप्‍त नहीं हैं।
17उसके सम्‍मुख पृथ्‍वी के समस्‍त राष्‍ट्र
नगण्‍य हैं,
उनका अस्‍तित्‍व शून्‍य से भी कम है,
वे कुछ भी नहीं हैं!
18तब परमेश्‍वर, हम तेरी तुलना किससे करें?
हम तेरी उपमा किससे दें?#प्रे 17:29
19क्‍या मूर्ति से जिसको कारीगर ढालता है,
सुनार सोने से मढ़ता है,
और जिसके लिए वह चांदी की जंजीरें
ढालता है?
20जो आराधक सोने-चांदी की मूर्ति चढ़ाने में
असमर्थ है,
वह घुन न लगनेवाले वृक्ष को चुनता है,
वह कुशल कारीगर को ढूंढ़ता है,
और उससे लकड़ी पर मूर्ति खुदवाता है,
जो हिलती-डुलती नहीं है!#यिर 10:4; प्रज्ञ 13:11-19; यिर पत्र 8-40
21क्‍या तुम नहीं जानते? क्‍या तुमने नहीं सुना?
क्‍या तुम्‍हें प्राचीन काल से नहीं बताया
गया?
जब से पृथ्‍वी की नींव डाली गई,
सृष्‍टि के आरम्‍भ से ही
तुम्‍हें यह समझाया जाता रहा है कि
22वह प्रभु ही है
जो पृथ्‍वी के चक्र के ऊपर विराजमान है।
और हम, पृथ्‍वी के निवासी, मात्र टिड्डियां हैं!
प्रभु आकाश को वितान के समान तानता है,
उसको तम्‍बू के समान फैलाता है
ताकि मनुष्‍य उस के नीचे रह सकें।#व्‍य 4:32; भज 104:2
23जो सामन्‍तों का अस्‍तित्‍व मिटा देता है,
जो पृथ्‍वी के शासकों को नगण्‍य बना देता है,
वह प्रभु ही है।
24अभी-अभी वे रोपे गए थे,
अभी-अभी वे बोए गए थे,
अभी-अभी उनकी ठूंठ ने जड़ पकड़ी थी
कि प्रभु ने उन पर पवन बहाया,
और वे सूख गए।
तूफान उन्‍हें भूसे की तरह उड़ा ले गया।
25पवित्र परमेश्‍वर पूछता है,
“तुम किससे मेरी तुलना करोगे?
मैं किस के समान हूं?
26आकाश की ओर आंखें उठाओ, और
देखो:
इन तारों को किसने रचा है?
मैं-प्रभु ने!
मैं सेना के सदृश उनकी गणना करता हूं;
और हर एक तारे को उसके नाम से
पुकारता हूं।
मेरी शक्‍ति असीमित है, मेरा बल अपार है,
अत: प्रत्‍येक तारा मुझे उत्तर देता है।” #बारू 3:34-35
27ओ याकूब, तू यह क्‍यों कहता है;
ओ इस्राएल, तू क्‍यों बोलता है
कि तेरा आचरण प्रभु से छिपा है?
तेरा परमेश्‍वर तेरे अधिकार पर ध्‍यान नहीं
देता है?
28क्‍या तुम नहीं जानते? क्‍या तुमने नहीं सुना?
प्रभु शाश्‍वत परमेश्‍वर है,
वह समस्‍त पृथ्‍वी का सृष्‍टिकर्ता है।
वह न निर्बल है, और न थकता है।
उसकी समझ अगम है!#रोम 11:33
29वह शक्‍तिहीन को शक्‍ति प्रदान करता है,
वह बलहीन का बल बढ़ाता है।
30युवक भी निर्बल हो जाते हैं, वे थक जाते हैं,
तरुण भी थक कर चूर हो जाते हैं।
31परन्‍तु प्रभु की प्रतीक्षा करनेवाले
नया बल प्राप्‍त करते जाएंगे,
वे गरुड़#40:31 अथवा, ‘बाज’, ‘गिद्ध’ के पंखों की तरह
नवशक्‍ति प्राप्‍त कर ऊंचे उड़ेंगे;
वे दौड़ेंगे, पर थकेंगे नहीं;
वे चलते रहेंगे, किन्‍तु निर्बल नहीं होंगे। #भज 103:5

वर्तमान में चयनित:

यशायाह 40: HINCLBSI

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