शासक ग्रंथ 9
9
अबीमेलक का राजा बनना
1यरूब्बअल का पुत्र अबीमेलक अपने मामाओं के पास शकेम नगर को गया। वह अपने मामाओं तथा नाना के गोत्र के सब लोगों से बोला, 2‘कृपया, आप शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों से यह प्रश्न पूछिए : “कौन-सी बात तुम्हारे लिए लाभदायक है : यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों का तुम पर शासन करना अथवा एक पुत्र का शासन करना?” आप यह भी स्मरण रखिए कि मैं आप ही का रक्त और मांस हूँ।’ 3उसके मामाओं ने उसकी ओर से ये बातें शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों से पूछीं। प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक का अनुसरण करने का निश्चय किया। उन्होंने कहा, ‘अबीमेलक ही हमारा भाई है।’ 4अत: प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक को बअल-बरीत के मन्दिर से चांदी के सत्तर सिक्के दिए। उसने इन सिक्कों से निकम्मों और गुण्डों को भाड़े पर लिया। ये उसके पीछे-पीछे गए। 5वह अपने पिता के घर, ओप्राह नगर को गया। उसने वहाँ अपने भाइयों, यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों, का एक ही पत्थर पर वध कर दिया। किन्तु यरूब्बअल का सबसे छोटा पुत्र योताम बच गया, क्योंकि वह छिप गया था।#2 रा 10:17; मत 2:16,20 6तत्पश्चात् शकेम नगर तथा बेत-मिल्लो नगर के सब प्रमुख नागरिक एकत्र हुए। वे शकेम के बड़े पत्थर के निकट बांज वृक्ष के पास गए, और उन्होंने अबीमेलक को राजा घोषित कर दिया।
वृक्षों का दृष्टांत
7जब यह समाचार योताम को मिला तब वह गरिज्जीम पर्वत पर गया। वह शिखर पर खड़ा हुआ। उसने उच्च स्वर में पुकार कर उनसे कहा, ‘ओ शकेम नगर के प्रमुख नागरिको! मेरी बात सुनो, जिससे परमेश्वर भी तुम्हारी बात सुने। 8एक बार पेड़ अपने लिए राजा अभिषिक्त करने के लिए निकले। उन्होंने जैतून के वृक्ष से कहा, “हम पर राज्य कीजिए।” #2 रा 14:9 9परन्तु जैतून के वृक्ष ने उनसे कहा, “क्या मैं अपने तेल को त्याग दूँ जिससे देवताओं और मनुष्यों का सम्मान किया जाता है, और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” #भज 104:15 10तब उन्होंने अंजीर के वृक्ष से कहा, “आप आइए, और हम पर राज्य कीजिए।” 11किन्तु अंजीर के वृक्ष ने उनसे कहा, “क्या मैं अपनी मिठास को, अपने उत्तम फलों को त्याग दूँ और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” 12इसके बाद पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, “आप आइए, और हम पर राज्य कीजिए।” 13अंगूर की बेल ने उनसे कहा, “क्या मैं अपने रस को त्याग दूँ जो देवताओं और मनुष्यों को आनन्द देता है, और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” #नीति 31:6; प्रव 31:27 14अन्त में सब पेड़ों ने कांटेदार झाड़ी से कहा, “तू आ, और हम पर राज्य कर।” 15कांटेदार झाड़ी ने उनसे कहा, “यदि तुम सचमुच मुझे अपने ऊपर राजा अभिषिक्त कर रहे हो तो आओ, मेरी छाया में आश्रय लो। यदि नहीं, तो मुझ कांटेदार झाड़ी से आग निकले और लबानोन प्रदेश के देवदार वृक्षों को भस्म कर दे।”
16‘अब यदि तुमने अबीमेलक को सच्चाई और निष्कपट हृदय से राजा अभिषिक्त किया है, यदि तुमने यरूब्बअल के परिवार से सद्व्यवहार किया है, यदि तुमने उसके कामों के अनुरूप उसके साथ व्यवहार किया है, ( 17मेरे पिता ने तुम्हारे लिए युद्ध किया था, अपने प्राण संकट में डाला था, और तुम्हें मिद्यानी जाति के हाथ से मुक्त किया था। 18पर आज, तुमने मेरे पिता के परिवार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है। उसके सत्तर पुत्रों का एक पत्थर पर वध कर दिया; और उसकी गुलाम रखेल के पुत्र अबीमेलक को शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के ऊपर राजा अभिषिक्त किया; क्योंकि वह तुम्हारा भाई है।) 19यदि तुमने आज यरूब्बअल और उसके परिवार के साथ सच्चाई और निष्कपट हृदय से व्यवहार किया है, तो अबीमेलक के साथ आनन्द मनाओ; और वह भी तुम्हारे साथ आनन्द करे। 20यदि नहीं, तो अबीमेलक से आग निकले और शकेम और बेत-मिल्लो के प्रमुख नागरिकों को भस्म कर दे। शकेम और बेत-मिल्लो के प्रमुख नागरिकों से आग निकले और अबीमेलक को भस्म कर दे।’ 21यह कहकर योताम भागा, और वह बएर नगर की ओर चला गया। वह अपने भाई अबीमेलक के भय के कारण वहीं रहने लगा।
अबीमेलक का पतन
22अबीमेलक ने तीन वर्ष तक इस्राएलियों पर शासन किया। 23तब परमेश्वर ने अबीमेलक और शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के मध्य दुर्भावना की आत्मा भेजी। अत: शकेम नगर के प्रमुख नागरिक अबीमेलक से विश्वासघात करने लगे।#1 शम 16:14 24इसका यह कारण था कि यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों के साथ की गई हिंसा का फल अवश्य मिलना चाहिए। हत्या का दोष उनके भाई अबीमेलक के सिर पर, जिसने उनका वध किया था, तथा शकेम नगर के लोगों पर था, जिन्होंने अबीमेलक के भाइयों का वध करने में उसके हाथ मजबूत किए थे। 25शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक को तंग करने के लिए पहाड़ की चोटियों पर छापामारों को बिठा दिया। छापामार उस मार्ग से आने-जानेवालों को लूटते थे। यह बात अबीमेलक को बताई गई।
26तब एबद का पुत्र गअल अपने भाई-बन्धुओं के साथ शकेम नगर में आया। शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों ने उस पर भरोसा किया। 27वे खेतों में गए। उन्होंने अंगूर के उद्यानों के अंगूर तोड़े, उन्हें रौंद कर उनका रस निकाला और उत्सव मनाया। वे अपने देवता के मन्दिर में गए। उन्होंने वहाँ खाया-पीया, और अबीमेलक की निन्दा की। 28एबद के पुत्र गअल ने कहा, ‘अबीमेलक कौन है? शकेम के निवासी हम कौन हैं, जो अबीमेलक की सेवा करें? क्या यह सच नहीं है कि यरूब्बअल के पुत्र और उसके मुख्य शासनाधिकारी जबूल ने शकेम के नगर-पिता हमोर के लोगों की सेवा की थी? तब हम क्यों उसकी सेवा करें? 29यदि ये लोग मेरे हाथ में होते तो मैं अबीमेलक से पिण्ड छुड़ा लेता। मैं अबीमेलक से कहता, “अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा ले, और नगर से बाहर निकल!” ’
30जब नगर के शासक जबूल ने एबद के पुत्र गअल के ये शब्द सुने, तब उसका क्रोध भड़क उठा। 31उसने अबीमेलक के पास अरुमाह नगर में दूत भेजे। उसने कहा, ‘देखिए गअल बेन-एबद और उसके भाई-बन्धु शकेम नगर में आए हुए हैं। वे नगर को आपके विरुद्ध भड़का रहे हैं। 32अब आप और आपके साथ के लोग रात को आएँ और खेतों में घात लगाकर बैठ जाएँ। 33तत्पश्चात् सबेरे, सूर्योदय के समय उठिए और नगर पर धावा बोल दीजिए। जब गअल और उसके साथ के लोग आपका सामना करने को बाहर निकलेंगे तब स्थिति के अनुसार आप उनके साथ व्यवहार कीजिए।’
34अत: अबीमेलक और उसके साथ के लोग रात को उठे और चार दलों में विभक्त हो, शकेम नगर के विरुद्ध घात लगाकर बैठ गए। 35एबद का पुत्र गअल बाहर निकला। वह नगर के प्रवेश-द्वार पर खड़ा हो गया। अबीमेलक और उसके साथ के लोग घात के स्थान से उठे। 36जब गअल ने उन लोगों को देखा तब उसने जबूल से कहा, ‘देखो, लोग पहाड़ की चोटी से नीचे उतर रहे हैं।’ जबूल ने उससे कहा, ‘यह पहाड़ियों की छाया है, जो तुम्हें मनुष्यों के समान दिखाई दे रही है।’ 37गअल ने फिर कहा, ‘देखो, लोग पहाड़ी-चौक के मध्य भाग#9:37 शब्दश:, ‘देश की नाभी’ से नीचे आ रहे हैं। एक दल शकुन बांज वृक्ष के मार्ग से आ रहा है।’ 38तब जबूल ने उससे कहा, ‘अब तेरा वह मुँह कहाँ है, जिससे तूने कहा था, “अबीमेलक कौन है कि हम उसकी सेवा करें?” क्या तूने इन्हीं लोगों को तुच्छ नहीं समझा था? अब बाहर निकल और इन से युद्ध कर।’ 39गअल शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के आगे-आगे नगर से बाहर निकला, और उसने अबीमेलक से युद्ध किया। 40परन्तु अबीमेलक ने उसका पीछा किया। वह उसके सम्मुख से भागा। उसके अनेक साथी घायल होकर नगर के प्रवेश-द्वार पर गिर पड़े। 41तब अबीमेलक अरुमाह नगर को लौट गया।#9:41 मूल में “रहने लगा।” जबूल ने गअल और उसके भाई-बन्धुओं को शकेम नगर से निकाल दिया। उसने उन्हें वहाँ रहने नहीं दिया।
42लोग दूसरे दिन खेतों में गए। यह बात अबीमेलक को बताई गई। 43अबीमेलक ने अपने सैनिक लिए। उसने उन्हें तीन दल में विभाजित किया, और वह खेतों में घात लगाकर बैठ गया। उसने देखा कि लोग नगर से बाहर निकल रहे हैं। वह उठा और उसने उनको मार डाला। 44अबीमेलक और उसके साथ के दल ने धावा बोल दिया। वे नगर के प्रवेश-द्वार पर खड़े हो गए। शेष दो दलों ने उन लोगों पर धावा बोल दिया, जो खेतों में थे और उन्हें मार डाला। 45अबीमेलक नगर के रहनेवालों से दिनभर युद्ध करता रहा। उसने नगर पर अधिकार कर लिया। जो लोग नगर में थे, उसने उनका वध कर दिया। उसने नगर को खण्डहर बना दिया। उसने भूमि को अनुपजाऊ करने के लिए उस पर नमक बिखेर दिया।
46जब मिग्दल-शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों ने यह सुना, तब वे एलबरीत मन्दिर के तहखानों में घुस गए। 47अबीमेलक को यह बात बताई गई कि मिग्दल-शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिक एकत्र हुए हैं। 48अत: अबीमेलक अपने सब लोगों के साथ सल्मोन पर्वत पर चढ़ा। उसने अपने हाथ में एक कुल्हाड़ी ली, और पेड़ की एक शाखा काटी। अबीमेलक ने उसको उठाया, और अपने कन्धे पर रखा। तब उसने अपने साथ के लोगों से कहा, “जैसा तुमने मुझे करते हुए देखा है, वैसा ही तुम अविलम्ब करो।’ 49अत: प्रत्येक व्यक्ति ने भी एक-एक शाखा काटी, और वे सब अबीमेलक के पीछे गए। उन्होंने तहखाने के ऊपर शाखाओं का ढेर लगा दिया। तत्पश्चात् उन्होंने तहखाने में आग लगा दी। इस प्रकार मिग्दल-शकेम नगर के सब मनुष्य, प्राय: एक हजार स्त्री-पुरुष मर गए।
50इसके बाद अबीमेलक तेबेस नगर को गया। उसने उसको घेर लिया, और उस पर अधिकार कर लिया। 51किन्तु नगर के मध्य एक सुदृढ़ मीनार थी। नगर के सब स्त्री-पुरुष, प्रमुख नागरिक भागकर वहाँ छिप गए। वे मीनार की छत पर चढ़ गए। 52अबीमेलक मीनार के पास आया। उसने वहाँ युद्ध किया। वह मीनार में आग लगाने के लिए उसके द्वार के समीप आया। 53तभी एक स्त्री ने अबीमेलक के सिर पर चक्की का पाट फेंका, और उसकी खोपड़ी को पीस दिया। 54अबीमेलक ने अपने शस्त्र-वाहक युवक को अविलम्ब बुलाया, और उससे कहा, ‘ऐसा न हो कि लोग मेरे विषय में यह कहें, “अबीमेलक का वध एक स्त्री ने किया” , इसलिए तू अपनी तलवार खींच और मुझे मार डाल।’ तब अबीमेलक के शस्त्र-वाहक युवक ने उसके शरीर में तलवार बेध दी, और अबीमेलक मर गया।#1 शम 31:4
55जब इस्राएली लोगों ने देखा कि अबीमेलक मर गया तब वे अपने-अपने स्थान को लौट गए। 56इस प्रकार परमेश्वर ने अबीमेलक की बुराई का बदला लिया, जो उसने अपने सत्तर भाइयों का वध करके अपने पिता के प्रति की थी। 57इसके अतिरिक्त जो बुराई शकेम नगर के लोगों ने की थी, उसको भी परमेश्वर ने उन्हीं के सिर लौटा दिया! यरूब्बअल के पुत्र योताम का श्राप भी उन पर पड़ा।
वर्तमान में चयनित:
शासक ग्रंथ 9: HINCLBSI
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शासक ग्रंथ 9
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अबीमेलक का राजा बनना
1यरूब्बअल का पुत्र अबीमेलक अपने मामाओं के पास शकेम नगर को गया। वह अपने मामाओं तथा नाना के गोत्र के सब लोगों से बोला, 2‘कृपया, आप शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों से यह प्रश्न पूछिए : “कौन-सी बात तुम्हारे लिए लाभदायक है : यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों का तुम पर शासन करना अथवा एक पुत्र का शासन करना?” आप यह भी स्मरण रखिए कि मैं आप ही का रक्त और मांस हूँ।’ 3उसके मामाओं ने उसकी ओर से ये बातें शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों से पूछीं। प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक का अनुसरण करने का निश्चय किया। उन्होंने कहा, ‘अबीमेलक ही हमारा भाई है।’ 4अत: प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक को बअल-बरीत के मन्दिर से चांदी के सत्तर सिक्के दिए। उसने इन सिक्कों से निकम्मों और गुण्डों को भाड़े पर लिया। ये उसके पीछे-पीछे गए। 5वह अपने पिता के घर, ओप्राह नगर को गया। उसने वहाँ अपने भाइयों, यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों, का एक ही पत्थर पर वध कर दिया। किन्तु यरूब्बअल का सबसे छोटा पुत्र योताम बच गया, क्योंकि वह छिप गया था।#2 रा 10:17; मत 2:16,20 6तत्पश्चात् शकेम नगर तथा बेत-मिल्लो नगर के सब प्रमुख नागरिक एकत्र हुए। वे शकेम के बड़े पत्थर के निकट बांज वृक्ष के पास गए, और उन्होंने अबीमेलक को राजा घोषित कर दिया।
वृक्षों का दृष्टांत
7जब यह समाचार योताम को मिला तब वह गरिज्जीम पर्वत पर गया। वह शिखर पर खड़ा हुआ। उसने उच्च स्वर में पुकार कर उनसे कहा, ‘ओ शकेम नगर के प्रमुख नागरिको! मेरी बात सुनो, जिससे परमेश्वर भी तुम्हारी बात सुने। 8एक बार पेड़ अपने लिए राजा अभिषिक्त करने के लिए निकले। उन्होंने जैतून के वृक्ष से कहा, “हम पर राज्य कीजिए।” #2 रा 14:9 9परन्तु जैतून के वृक्ष ने उनसे कहा, “क्या मैं अपने तेल को त्याग दूँ जिससे देवताओं और मनुष्यों का सम्मान किया जाता है, और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” #भज 104:15 10तब उन्होंने अंजीर के वृक्ष से कहा, “आप आइए, और हम पर राज्य कीजिए।” 11किन्तु अंजीर के वृक्ष ने उनसे कहा, “क्या मैं अपनी मिठास को, अपने उत्तम फलों को त्याग दूँ और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” 12इसके बाद पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, “आप आइए, और हम पर राज्य कीजिए।” 13अंगूर की बेल ने उनसे कहा, “क्या मैं अपने रस को त्याग दूँ जो देवताओं और मनुष्यों को आनन्द देता है, और जाकर पेड़ों पर राज्य करूँ? कदापि नहीं।” #नीति 31:6; प्रव 31:27 14अन्त में सब पेड़ों ने कांटेदार झाड़ी से कहा, “तू आ, और हम पर राज्य कर।” 15कांटेदार झाड़ी ने उनसे कहा, “यदि तुम सचमुच मुझे अपने ऊपर राजा अभिषिक्त कर रहे हो तो आओ, मेरी छाया में आश्रय लो। यदि नहीं, तो मुझ कांटेदार झाड़ी से आग निकले और लबानोन प्रदेश के देवदार वृक्षों को भस्म कर दे।”
16‘अब यदि तुमने अबीमेलक को सच्चाई और निष्कपट हृदय से राजा अभिषिक्त किया है, यदि तुमने यरूब्बअल के परिवार से सद्व्यवहार किया है, यदि तुमने उसके कामों के अनुरूप उसके साथ व्यवहार किया है, ( 17मेरे पिता ने तुम्हारे लिए युद्ध किया था, अपने प्राण संकट में डाला था, और तुम्हें मिद्यानी जाति के हाथ से मुक्त किया था। 18पर आज, तुमने मेरे पिता के परिवार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है। उसके सत्तर पुत्रों का एक पत्थर पर वध कर दिया; और उसकी गुलाम रखेल के पुत्र अबीमेलक को शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के ऊपर राजा अभिषिक्त किया; क्योंकि वह तुम्हारा भाई है।) 19यदि तुमने आज यरूब्बअल और उसके परिवार के साथ सच्चाई और निष्कपट हृदय से व्यवहार किया है, तो अबीमेलक के साथ आनन्द मनाओ; और वह भी तुम्हारे साथ आनन्द करे। 20यदि नहीं, तो अबीमेलक से आग निकले और शकेम और बेत-मिल्लो के प्रमुख नागरिकों को भस्म कर दे। शकेम और बेत-मिल्लो के प्रमुख नागरिकों से आग निकले और अबीमेलक को भस्म कर दे।’ 21यह कहकर योताम भागा, और वह बएर नगर की ओर चला गया। वह अपने भाई अबीमेलक के भय के कारण वहीं रहने लगा।
अबीमेलक का पतन
22अबीमेलक ने तीन वर्ष तक इस्राएलियों पर शासन किया। 23तब परमेश्वर ने अबीमेलक और शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के मध्य दुर्भावना की आत्मा भेजी। अत: शकेम नगर के प्रमुख नागरिक अबीमेलक से विश्वासघात करने लगे।#1 शम 16:14 24इसका यह कारण था कि यरूब्बअल के सत्तर पुत्रों के साथ की गई हिंसा का फल अवश्य मिलना चाहिए। हत्या का दोष उनके भाई अबीमेलक के सिर पर, जिसने उनका वध किया था, तथा शकेम नगर के लोगों पर था, जिन्होंने अबीमेलक के भाइयों का वध करने में उसके हाथ मजबूत किए थे। 25शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों ने अबीमेलक को तंग करने के लिए पहाड़ की चोटियों पर छापामारों को बिठा दिया। छापामार उस मार्ग से आने-जानेवालों को लूटते थे। यह बात अबीमेलक को बताई गई।
26तब एबद का पुत्र गअल अपने भाई-बन्धुओं के साथ शकेम नगर में आया। शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों ने उस पर भरोसा किया। 27वे खेतों में गए। उन्होंने अंगूर के उद्यानों के अंगूर तोड़े, उन्हें रौंद कर उनका रस निकाला और उत्सव मनाया। वे अपने देवता के मन्दिर में गए। उन्होंने वहाँ खाया-पीया, और अबीमेलक की निन्दा की। 28एबद के पुत्र गअल ने कहा, ‘अबीमेलक कौन है? शकेम के निवासी हम कौन हैं, जो अबीमेलक की सेवा करें? क्या यह सच नहीं है कि यरूब्बअल के पुत्र और उसके मुख्य शासनाधिकारी जबूल ने शकेम के नगर-पिता हमोर के लोगों की सेवा की थी? तब हम क्यों उसकी सेवा करें? 29यदि ये लोग मेरे हाथ में होते तो मैं अबीमेलक से पिण्ड छुड़ा लेता। मैं अबीमेलक से कहता, “अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा ले, और नगर से बाहर निकल!” ’
30जब नगर के शासक जबूल ने एबद के पुत्र गअल के ये शब्द सुने, तब उसका क्रोध भड़क उठा। 31उसने अबीमेलक के पास अरुमाह नगर में दूत भेजे। उसने कहा, ‘देखिए गअल बेन-एबद और उसके भाई-बन्धु शकेम नगर में आए हुए हैं। वे नगर को आपके विरुद्ध भड़का रहे हैं। 32अब आप और आपके साथ के लोग रात को आएँ और खेतों में घात लगाकर बैठ जाएँ। 33तत्पश्चात् सबेरे, सूर्योदय के समय उठिए और नगर पर धावा बोल दीजिए। जब गअल और उसके साथ के लोग आपका सामना करने को बाहर निकलेंगे तब स्थिति के अनुसार आप उनके साथ व्यवहार कीजिए।’
34अत: अबीमेलक और उसके साथ के लोग रात को उठे और चार दलों में विभक्त हो, शकेम नगर के विरुद्ध घात लगाकर बैठ गए। 35एबद का पुत्र गअल बाहर निकला। वह नगर के प्रवेश-द्वार पर खड़ा हो गया। अबीमेलक और उसके साथ के लोग घात के स्थान से उठे। 36जब गअल ने उन लोगों को देखा तब उसने जबूल से कहा, ‘देखो, लोग पहाड़ की चोटी से नीचे उतर रहे हैं।’ जबूल ने उससे कहा, ‘यह पहाड़ियों की छाया है, जो तुम्हें मनुष्यों के समान दिखाई दे रही है।’ 37गअल ने फिर कहा, ‘देखो, लोग पहाड़ी-चौक के मध्य भाग#9:37 शब्दश:, ‘देश की नाभी’ से नीचे आ रहे हैं। एक दल शकुन बांज वृक्ष के मार्ग से आ रहा है।’ 38तब जबूल ने उससे कहा, ‘अब तेरा वह मुँह कहाँ है, जिससे तूने कहा था, “अबीमेलक कौन है कि हम उसकी सेवा करें?” क्या तूने इन्हीं लोगों को तुच्छ नहीं समझा था? अब बाहर निकल और इन से युद्ध कर।’ 39गअल शकेम नगर के प्रमुख नागरिकों के आगे-आगे नगर से बाहर निकला, और उसने अबीमेलक से युद्ध किया। 40परन्तु अबीमेलक ने उसका पीछा किया। वह उसके सम्मुख से भागा। उसके अनेक साथी घायल होकर नगर के प्रवेश-द्वार पर गिर पड़े। 41तब अबीमेलक अरुमाह नगर को लौट गया।#9:41 मूल में “रहने लगा।” जबूल ने गअल और उसके भाई-बन्धुओं को शकेम नगर से निकाल दिया। उसने उन्हें वहाँ रहने नहीं दिया।
42लोग दूसरे दिन खेतों में गए। यह बात अबीमेलक को बताई गई। 43अबीमेलक ने अपने सैनिक लिए। उसने उन्हें तीन दल में विभाजित किया, और वह खेतों में घात लगाकर बैठ गया। उसने देखा कि लोग नगर से बाहर निकल रहे हैं। वह उठा और उसने उनको मार डाला। 44अबीमेलक और उसके साथ के दल ने धावा बोल दिया। वे नगर के प्रवेश-द्वार पर खड़े हो गए। शेष दो दलों ने उन लोगों पर धावा बोल दिया, जो खेतों में थे और उन्हें मार डाला। 45अबीमेलक नगर के रहनेवालों से दिनभर युद्ध करता रहा। उसने नगर पर अधिकार कर लिया। जो लोग नगर में थे, उसने उनका वध कर दिया। उसने नगर को खण्डहर बना दिया। उसने भूमि को अनुपजाऊ करने के लिए उस पर नमक बिखेर दिया।
46जब मिग्दल-शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिकों ने यह सुना, तब वे एलबरीत मन्दिर के तहखानों में घुस गए। 47अबीमेलक को यह बात बताई गई कि मिग्दल-शकेम नगर के सब प्रमुख नागरिक एकत्र हुए हैं। 48अत: अबीमेलक अपने सब लोगों के साथ सल्मोन पर्वत पर चढ़ा। उसने अपने हाथ में एक कुल्हाड़ी ली, और पेड़ की एक शाखा काटी। अबीमेलक ने उसको उठाया, और अपने कन्धे पर रखा। तब उसने अपने साथ के लोगों से कहा, “जैसा तुमने मुझे करते हुए देखा है, वैसा ही तुम अविलम्ब करो।’ 49अत: प्रत्येक व्यक्ति ने भी एक-एक शाखा काटी, और वे सब अबीमेलक के पीछे गए। उन्होंने तहखाने के ऊपर शाखाओं का ढेर लगा दिया। तत्पश्चात् उन्होंने तहखाने में आग लगा दी। इस प्रकार मिग्दल-शकेम नगर के सब मनुष्य, प्राय: एक हजार स्त्री-पुरुष मर गए।
50इसके बाद अबीमेलक तेबेस नगर को गया। उसने उसको घेर लिया, और उस पर अधिकार कर लिया। 51किन्तु नगर के मध्य एक सुदृढ़ मीनार थी। नगर के सब स्त्री-पुरुष, प्रमुख नागरिक भागकर वहाँ छिप गए। वे मीनार की छत पर चढ़ गए। 52अबीमेलक मीनार के पास आया। उसने वहाँ युद्ध किया। वह मीनार में आग लगाने के लिए उसके द्वार के समीप आया। 53तभी एक स्त्री ने अबीमेलक के सिर पर चक्की का पाट फेंका, और उसकी खोपड़ी को पीस दिया। 54अबीमेलक ने अपने शस्त्र-वाहक युवक को अविलम्ब बुलाया, और उससे कहा, ‘ऐसा न हो कि लोग मेरे विषय में यह कहें, “अबीमेलक का वध एक स्त्री ने किया” , इसलिए तू अपनी तलवार खींच और मुझे मार डाल।’ तब अबीमेलक के शस्त्र-वाहक युवक ने उसके शरीर में तलवार बेध दी, और अबीमेलक मर गया।#1 शम 31:4
55जब इस्राएली लोगों ने देखा कि अबीमेलक मर गया तब वे अपने-अपने स्थान को लौट गए। 56इस प्रकार परमेश्वर ने अबीमेलक की बुराई का बदला लिया, जो उसने अपने सत्तर भाइयों का वध करके अपने पिता के प्रति की थी। 57इसके अतिरिक्त जो बुराई शकेम नगर के लोगों ने की थी, उसको भी परमेश्वर ने उन्हीं के सिर लौटा दिया! यरूब्बअल के पुत्र योताम का श्राप भी उन पर पड़ा।
वर्तमान में चयनित:
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