‘धिक्कार है उसे, जो अधर्म के धन से अपना घर बनाता है, जो अन्याय के धन से ऊंचे-ऊंचे महल बनाता है। धिक्कार है उसे, जो अपने भाई-बन्धु से मुफ्त में अपनी सेवा करवाता है, और उसको मजदूरी नहीं देता।
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