तब वे येशु को काइफा के यहाँ से राजभवन ले गये। अब प्रात:काल हो गया था। यहूदी धर्मगुरु राजभवन के अन्दर इसलिए नहीं गये कि गैर-यहूदियों के सम्पर्क से अशुद्ध न हो जाएँ, बल्कि पास्का (फसह) पर्व का भोज खा सकें। इसलिए राज्यपाल पिलातुस बाहर आ कर उनसे मिला और बोला, “तुम लोग इस मनुष्य पर कौन-सा अभियोग लगाते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “यदि यह कुकर्मी नहीं होता, तो हम इसे आपके हवाले नहीं करते।” पिलातुस ने उन से कहा, “तुम लोग इसे ले जाओ और अपनी व्यवस्था के अनुसार इसका न्याय करो।” यहूदी धर्मगुरुओं ने उत्तर दिया, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।” यह इसलिए हुआ कि येशु का वह कथन पूरा हो जाए, जिसके द्वारा उन्होंने संकेत किया था कि वह किस प्रकार की मृत्यु से मरेंगे। तब पिलातुस फिर राजभवन में गया और येशु को बुला कर उनसे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “क्या आप यह अपनी ओर से कह रहे हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?” पिलातुस ने कहा, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी ही जाति के लोगों और महापुरोहितों ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुमने क्या किया है?” येशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे अनुयायी लड़ते और मैं धर्मगुरुओं के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।” इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “तो, तुम राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप ही कह रहे हैं कि मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा और इसलिए संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्षी दूँ। जो सत्य का है, वह मेरी वाणी सुनता है।” पिलातुस ने उन से पूछा, “सत्य क्या है?” वह यह कह कर फिर बाहर गया और धर्मगुरुओं के पास आ कर बोला, “मैं उसमें कोई दोष नहीं पाता हूँ।
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