‘देखो, यह सब मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं; मैंने अपने कानों से यह सुना, और उसको समझा भी है। जो तुम जानते हो, वह मैं भी जानता हूं, मैं तुमसे कम नहीं हूँ। पर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से ही बात करूँगा; मेरी इच्छा है कि मैं परमेश्वर से स्वयं अपना मुकदमा लड़ूँ; क्योंकि तुम लोग झूठे हो, और झूठी बातें गढ़ते हो; तुम सब निकम्मे वैद्य हो। काश! तुम चुप रहते; चुप रहने में ही तुम्हारी बुद्धिमानी थी। अब तुम मेरे तर्कों को सुनो, और मेरी दलीलों पर ध्यान दो। क्या तुम परमेश्वर के पक्ष में झूठ बोलोगे? उसके लिए कपट की बातें करोगे? क्या तुम उसके प्रति पक्षपात करोगे, उसकी ओर से मुकदमा लड़ोगे? जब वह छानबीन करेगा तो क्या यह तुम्हारे लिए अच्छा होगा? क्या तुम उसे भी धोखा दे सकते हो जैसे कोई व्यक्ति किसी आदमी को धोखा देता है? यदि तुम चोरी छिपे पक्षपात करोगे तो वह अवश्य ही तुम्हें झिड़केगा। क्या उसकी प्रभुता से तुम नहीं डरते, क्या उसका भय तुम पर नहीं छाता? तुम्हारी सूिक्तयाँ राख के समान व्यर्थ हैं, तुम्हारे बचाव के तर्क मिट्टी के हैं, जो ढह जाती है। ‘तुम चुप रहो, और मुझे बोलने दो; मुझ पर जो बीतेगी, मैं उसको सह लूँगा। मैं अपनी रक्षा आप कर लूंगा, मैं अपना प्राण हथेली पर रखूँगा। देखो, परमेश्वर मुझे मार डालेगा, मेरे बचने की आशा नहीं है; फिर भी मैं उसके सम्मुख अपने आचरण का बचाव करूँगा। मेरे बचाव का केवल एक ही उपाय है: जो व्यक्ति पाखण्डी है, वह परमेश्वर के सम्मुख नहीं जा सकता!
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