येशु ने शिष्यों को यह बतलाने के लिए कि उन्हें सदा प्रार्थना करना चाहिए, और निराश नहीं होना चाहिए, एक दृष्टान्त सुनाया। येशु ने कहा, “किसी नगर में एक न्यायाधीश था, जो न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए।’ बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता हूँ, किन्तु यह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं इसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे।’ ” प्रभु ने कहा, “सुनो, इस अधर्मी न्यायाधीश ने क्या कहा? तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा? मैं तुम से कहता हूँ, वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव-पुत्र आएगा, तब क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
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