येशु पर पहरा देने वाले सिपाही उनका उपहास कर उन्हें मारने-पीटने लगे। उन्होंने उनकी आँखों पर पट्टी बाँधी और उनसे पूछने लगे, “नबूवत कर, तुझे किसने मारा?” वे उनका अपमान करते हुए उनके विरुद्ध और बहुत-सी निन्दाजनक बातें कहते रहे। जैसे ही दिन हुआ, समाज के धर्मवृद्ध, महापुरोहित और शास्त्री एकत्र हो गये और उन्होंने येशु को अपनी धर्म-महासभा में प्रस्तुत किया। उन्होंने येशु से कहा, “यदि तुम मसीह हो, तो हमें बता दो।” येशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आप लोगों से कहूँगा, तो आप विश्वास नहीं करेंगे और यदि मैं प्रश्न करूँगा, तो आप लोग उत्तर नहीं देंगे। परन्तु अब से मानव-पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान होगा।” इस पर सब-के-सब बोल उठे, “तो क्या तुम परमेश्वर के पुत्र हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप ही कहते हैं कि मैं हूँ।” इस पर उन्होंने कहा, “अब हमें और गवाही की जरूरत ही क्या है? हम ने तो स्वयं इसके मुँह से सुन लिया है।”
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