मत्ती 14
14
योहन बपतिस्मादाता की हत्या#मक 6:14,17-30; लू 9:7-9
1उस समय शासक#14:1 मूल में, ‘तेत्र-अर्खेस’ अर्थात् देश के चौथाई भाग का शासक। हेरोदेस ने येशु की ख्याति सुनी।#लू 3:19-20 2उसने अपने दरबारियों से कहा, “यह योहन बपतिस्मादाता है। यह मृतकों में से जी उठा है। इस कारण इसमें ये चमत्कारिक शक्तियाँ क्रियाशील हैं।”
3हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्तार किया और उन्हें बाँध कर बन्दीगृह में डाल दिया था;#मत 11:2 4क्योंकि योहन ने उससे कहा था, “भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है।”#लेव 18:16; 20:21
5हेरोदेस योहन को मार डालना चाहता था; किन्तु वह जनता से डरता था, जो योहन को नबी मानती थी।#मत 21:26
6हेरोदेस के जन्मदिवस के अवसर पर हेरोदियस की पुत्री ने अतिथियों के सामने नृत्य किया और हेरोदेस को मुग्ध कर दिया। 7इसलिए उसने शपथ खा कर वचन दिया, “जो कुछ तुम माँगोगी, उसे मैं दे दूँगा।” 8उसकी माँ ने उसे पहले से सिखा दिया था। इसलिए वह बोली, “मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्मादाता का सिर दीजिए।” 9हेरोदेस को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण उसने आदेश दिया, “योहन का सिर इसे दे दिया जाए।” 10और सैनिकों को भेज कर उसने बन्दीगृह में योहन का सिर कटवा दिया।#मत 17:12 11उनका सिर थाली में लाया गया और लड़की को दे दिया गया और वह उसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12योहन के शिष्य आये, और वे उनका शव ले गये। उन्होंने उसे कबर में रखा और जाकर येशु को इसकी सूचना दी।
पाँच हजार को भोजन कराना
13येशु यह समाचार सुन कर वहाँ से हट गये और नाव पर चढ़ कर एक निर्जन स्थान की ओर एकान्त में चले गए। जब लोगों को इसका पता चला, तब वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उनकी खोज में चल पड़े।#मक 6:31-44; लू 9:10-17; यो 6:1-13
14नाव से उतर कर येशु ने एक विशाल जनसमूह को देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया और उन्होंने उनके रोगियों को स्वस्थ कर दिया।#मत 9:36
15सन्ध्या होने पर शिष्य उनके पास आ कर बोले, “यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। आप इन लोगों को
विदा कीजिए, जिससे ये गाँवों में जाकर अपने लिए भोजन खरीद लें।” 16येशु ने उत्तर दिया, “उन्हें जाने की जरूरत नहीं। तुम लोग ही उन्हें भोजन दो।” 17इस पर शिष्यों ने कहा, “यहाँ हमारे पास केवल पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।” 18येशु ने कहा, “उन्हें यहाँ मेरे पास लाओ।” 19येशु ने लोगों को घास पर बैठा देने का आदेश दिया। तब उन्होंने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और आकाश की ओर आँखें उठाकर आशिष माँगी। तब उन्होंने रोटियाँ तोड़ कर शिष्यों को दीं और शिष्यों ने लोगों को। 20सब ने खाया और वे खा कर तृप्त हो गये। शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों से भरी बारह टोकरियाँ उठाईं।#2 रा 4:44 21भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त लगभग पाँच हजार पुरुष थे।
येशु झील पर चलते हैं
22इसके तुरन्त बाद येशु ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उनसे पहले झील के उस पार चले जाएँ; इतने में वह स्वयं लोगों को विदा कर देंगे।#मक 6:45-56; यो 6:15-21
23येशु लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढ़े। सन्ध्या होने पर वह वहाँ अकेले थे।#लू 6:12; 9:18
24नाव उस समय तट से एक-दो किलोमीटर#14:24 मूल में ‘अनेक स्तदियन’ : एक स्तदियन लगभग 185 मीटर होता है दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी। 25रात के चौथे पहर येशु झील पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।#भज 77:19 26जब उन्होंने येशु को झील पर चलते हुए देखा, तब वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, “यह कोई प्रेत है”, डर के मारे चिल्ला उठे।#लू 24:37 27येशु ने तुरन्त उन से कहा, “धैर्य रखो। मैं हूँ। डरो मत।”
28पतरस ने उत्तर दिया, “प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए।” 29येशु ने कहा, “आ जाओ।” पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए येशु की ओर बढ़ा; 30किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा, तो पुकार उठा, “प्रभु! मुझे बचाइए।” 31येशु ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, “अल्प-विश्वासी! तुम ने संदेह क्यों किया”#मत 8:26; यश 43:2 32दोनों नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। 33जो शिष्य नाव में थे, वे येशु के चरणों पर गिर पड़े। वे बोले, “आप सचमुच परमेश्वर के पुत्र हैं।
गिनेसरेत नगर में रोगियों को स्वस्थ करना
34वे पार उतर कर गिनेसरेत नगर के क्षेत्र में आए। 35वहाँ के लोगों ने येशु को पहचान लिया और आसपास के सब गाँवों में इसकी खबर फैला दी। वे सब रोगियों को येशु के पास लाए 36और उनसे निवेदन किया कि वह उन्हें अपने वस्त्र का सिरा ही स्पर्श करने दें। जितनों ने उनका स्पर्श किया, वे सब स्वस्थ हो गये।#मत 9:21; लू 6:19
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योहन बपतिस्मादाता की हत्या#मक 6:14,17-30; लू 9:7-9
1उस समय शासक#14:1 मूल में, ‘तेत्र-अर्खेस’ अर्थात् देश के चौथाई भाग का शासक। हेरोदेस ने येशु की ख्याति सुनी।#लू 3:19-20 2उसने अपने दरबारियों से कहा, “यह योहन बपतिस्मादाता है। यह मृतकों में से जी उठा है। इस कारण इसमें ये चमत्कारिक शक्तियाँ क्रियाशील हैं।”
3हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्तार किया और उन्हें बाँध कर बन्दीगृह में डाल दिया था;#मत 11:2 4क्योंकि योहन ने उससे कहा था, “भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है।”#लेव 18:16; 20:21
5हेरोदेस योहन को मार डालना चाहता था; किन्तु वह जनता से डरता था, जो योहन को नबी मानती थी।#मत 21:26
6हेरोदेस के जन्मदिवस के अवसर पर हेरोदियस की पुत्री ने अतिथियों के सामने नृत्य किया और हेरोदेस को मुग्ध कर दिया। 7इसलिए उसने शपथ खा कर वचन दिया, “जो कुछ तुम माँगोगी, उसे मैं दे दूँगा।” 8उसकी माँ ने उसे पहले से सिखा दिया था। इसलिए वह बोली, “मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्मादाता का सिर दीजिए।” 9हेरोदेस को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण उसने आदेश दिया, “योहन का सिर इसे दे दिया जाए।” 10और सैनिकों को भेज कर उसने बन्दीगृह में योहन का सिर कटवा दिया।#मत 17:12 11उनका सिर थाली में लाया गया और लड़की को दे दिया गया और वह उसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12योहन के शिष्य आये, और वे उनका शव ले गये। उन्होंने उसे कबर में रखा और जाकर येशु को इसकी सूचना दी।
पाँच हजार को भोजन कराना
13येशु यह समाचार सुन कर वहाँ से हट गये और नाव पर चढ़ कर एक निर्जन स्थान की ओर एकान्त में चले गए। जब लोगों को इसका पता चला, तब वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उनकी खोज में चल पड़े।#मक 6:31-44; लू 9:10-17; यो 6:1-13
14नाव से उतर कर येशु ने एक विशाल जनसमूह को देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया और उन्होंने उनके रोगियों को स्वस्थ कर दिया।#मत 9:36
15सन्ध्या होने पर शिष्य उनके पास आ कर बोले, “यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। आप इन लोगों को
विदा कीजिए, जिससे ये गाँवों में जाकर अपने लिए भोजन खरीद लें।” 16येशु ने उत्तर दिया, “उन्हें जाने की जरूरत नहीं। तुम लोग ही उन्हें भोजन दो।” 17इस पर शिष्यों ने कहा, “यहाँ हमारे पास केवल पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।” 18येशु ने कहा, “उन्हें यहाँ मेरे पास लाओ।” 19येशु ने लोगों को घास पर बैठा देने का आदेश दिया। तब उन्होंने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और आकाश की ओर आँखें उठाकर आशिष माँगी। तब उन्होंने रोटियाँ तोड़ कर शिष्यों को दीं और शिष्यों ने लोगों को। 20सब ने खाया और वे खा कर तृप्त हो गये। शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों से भरी बारह टोकरियाँ उठाईं।#2 रा 4:44 21भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त लगभग पाँच हजार पुरुष थे।
येशु झील पर चलते हैं
22इसके तुरन्त बाद येशु ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उनसे पहले झील के उस पार चले जाएँ; इतने में वह स्वयं लोगों को विदा कर देंगे।#मक 6:45-56; यो 6:15-21
23येशु लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढ़े। सन्ध्या होने पर वह वहाँ अकेले थे।#लू 6:12; 9:18
24नाव उस समय तट से एक-दो किलोमीटर#14:24 मूल में ‘अनेक स्तदियन’ : एक स्तदियन लगभग 185 मीटर होता है दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी। 25रात के चौथे पहर येशु झील पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।#भज 77:19 26जब उन्होंने येशु को झील पर चलते हुए देखा, तब वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, “यह कोई प्रेत है”, डर के मारे चिल्ला उठे।#लू 24:37 27येशु ने तुरन्त उन से कहा, “धैर्य रखो। मैं हूँ। डरो मत।”
28पतरस ने उत्तर दिया, “प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए।” 29येशु ने कहा, “आ जाओ।” पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए येशु की ओर बढ़ा; 30किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा, तो पुकार उठा, “प्रभु! मुझे बचाइए।” 31येशु ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, “अल्प-विश्वासी! तुम ने संदेह क्यों किया”#मत 8:26; यश 43:2 32दोनों नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। 33जो शिष्य नाव में थे, वे येशु के चरणों पर गिर पड़े। वे बोले, “आप सचमुच परमेश्वर के पुत्र हैं।
गिनेसरेत नगर में रोगियों को स्वस्थ करना
34वे पार उतर कर गिनेसरेत नगर के क्षेत्र में आए। 35वहाँ के लोगों ने येशु को पहचान लिया और आसपास के सब गाँवों में इसकी खबर फैला दी। वे सब रोगियों को येशु के पास लाए 36और उनसे निवेदन किया कि वह उन्हें अपने वस्त्र का सिरा ही स्पर्श करने दें। जितनों ने उनका स्पर्श किया, वे सब स्वस्थ हो गये।#मत 9:21; लू 6:19
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