जब येशु यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बेतफगे के समीप आए, तब येशु ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा, “सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें खूंटे से बंधी हुई एक गदही मिलेगी और उसके साथ उसका एक बछेरू होगा। उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ। यदि कोई तुम से कुछ बोले, तो कह देना, ‘प्रभु को इनकी जरूरत है।’ और वह उन्हें तुरन्त भेज देगा।” यह इसलिए हुआ कि नबी का यह कथन पूरा हो जाए : “सियोन नगरी से कहो : देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है। वह विनम्र है। वह गदही पर और उसके बछेरू पर, वरन् लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार है।” दोनों शिष्य चले गए। येशु ने जैसा आदेश दिया, उन्होंने वैसा ही किया। वे गदही और उसके बछेरू को ले आए। उन्होंने उन पर अपनी चादरें बिछा दीं, जिन पर येशु बैठ गए। भीड़ में से बहुत-से लोगों ने अपनी चादरें रास्ते में बिछा दीं। कुछ लोगों ने पेड़ों की डालियाँ काट कर रास्ते में फैला दीं। येशु के आगे-आगे और उनके पीछे आनेवाले लोग यह नारा लगा रहे थे, “दाऊद के वंशज की जय हो! जय हो! धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आता है! सर्वोच्च स्वर्ग में जय हो! जय हो!” जब येशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया तब समस्त नगर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन हैं?” जनसमूह ने कहा, “यह गलील प्रदेश के नासरत-निवासी नबी येशु हैं।”
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