उस समय फरीसियों ने जा कर आपस में परामर्श किया कि हम किस प्रकार येशु को उनकी अपनी बात के फन्दे में फँसाएँ। उन्होंने येशु के पास हेरोदेस-दल के सदस्यों के साथ अपने शिष्यों को यह प्रश्न पूछने भेजा, “गुरुवर! हम यह जानते हैं कि आप सच्चे हैं और सच्चाई से परमेश्वर के मार्ग की शिक्षा देते हैं। आप किसी की परवाह नहीं करते, क्योंकि आप मुँह-देखी बात नहीं कहते। इसलिए हमें बताइए, आपका क्या विचार है − रोमन सम्राट को कर देना उचित है या नहीं?” उनकी दुष्टता भाँप कर येशु ने कहा, “ढोंगियो! मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? राज-कर का सिक्का मुझे दिखाओ।” वे उनके पास एक रोमन सिक्का लाए। येशु ने उन से कहा, “यह किसकी आकृति और किसका लेख है?” उन्होंने उत्तर दिया, “रोमन सम्राट का।” इस पर येशु ने उन से कहा, “तो, जो सम्राट का है, वह सम्राट को दो और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” यह सुन कर वे अचम्भे में पड़ गये और येशु को छोड़कर चले गये।
उसी दिन सदूकी सम्प्रदाय के लोग येशु के पास आए। उनकी धारणा है कि मृत व्यक्ति का पुनरुत्थान नहीं होता। उन्होंने येशु के सामने यह प्रश्न रखा, “गुरुवर! मूसा ने कहा है कि यदि कोई मनुष्य निस्सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे। अब, हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने विवाह किया किन्तु वह निस्सन्तान मर गया और अपनी पत्नी को अपने भाई के लिए छोड़ गया। इसी प्रकार दूसरे और तीसरे भाई ने भी किया, और सातों भाइयों के साथ यही हुआ। सब के अन्त में वह स्त्री मर गयी। अब पुनरुत्थान होने पर वह सातों भाइयों में से किसकी पत्नी होगी? वह तो सब भाइयों की पत्नी रह चुकी है।”
येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “ तुम लोग न तो धर्मग्रन्थ जानते हो और न परमेश्वर का सामर्थ्य, इसलिए भ्रम में पड़े हुए हो। पुनरुत्थान होने पर न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं, बल्कि वे स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं − जहाँ तक मृतकों के पुनरुत्थान का प्रश्न है, क्या तुम लोगों ने कभी यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्वर ने तुम से कहा है : ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ’? वह मृतकों का नहीं, जीवितों का परमेश्वर है।” यह सुन कर लोग उनकी शिक्षा पर बहुत चकित हुए।
जब फरीसियों ने यह सुना कि येशु ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया है, तब वे इकट्ठे हो गये और उन में से एक व्यवस्था के आचार्य ने येशु की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा, “गुरुवर! व्यवस्था-ग्रन्थ में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” येशु ने उस से कहा, “ ‘अपने प्रभु परमेश्वर को अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण और सम्पूर्ण बुद्धि से प्रेम करो।’ यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है। दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है : ‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करो।’ इन्हीं दो आज्ञाओं पर समस्त व्यवस्था और नबियों की शिक्षा अवलम्बित है।”
फरीसी अभी वहाँ एकत्र थे। येशु ने फरीसियों से पूछा, “मसीह के विषय में तुम लोगों का क्या विचार है; वह किसके वंशज हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “दाऊद के।” इस पर येशु ने उनसे कहा, “तब दाऊद आत्मा की प्रेरणा से उन्हें प्रभु क्यों कहते हैं? उनका कथन है :
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा,
तुम सिंहासन की दाहिनी ओर बैठो,
जब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को
तुम्हारे पैरों तले न डाल दूँ।’
“यदि दाऊद उन्हें प्रभु कहते हैं, तो वह उनके वंशज कैसे हो सकते हैं?” इसके उत्तर में कोई भी फरीसी येशु से एक शब्द भी नहीं बोल सका और उस दिन से किसी को उन से और प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ।