मत्ती 27
27
रोमन राज्यपाल पिलातुस के सामने
1जब प्रात:काल हुआ तब सब महापुरोहितों और समाज के धर्मवृद्धों ने परस्पर परामर्श किया कि येशु को मार डाला जाए।#मक 15:1; लू 22:66; यो 18:28 2उन्होंने येशु को बाँधा और उन्हें ले जा कर राज्यपाल पिलातुस को सौंप दिया।#लू 23:1; यो 18:31-32
यूदस की आत्महत्या
3जब येशु के पकड़वाने वाले यूदस ने देखा कि उन्हें दण्डाज्ञा मिली है, तब उसे पश्चात्ताप हुआ और वह महापुरोहितों और धर्मवृद्धों के पास चाँदी के तीस सिक्के वापस ले आया,#मत 26:15 और बोला, 4“मैंने निर्दोष रक्त का सौदा कर पाप किया है।” उन्होंने उत्तर दिया, “हमें इस से क्या! तुम जानो।” 5इस पर यूदस ने चाँदी के सिक्के मन्दिर में फेंक दिये और वहाँ से चला गया। तब जा कर उसने फांसी लगा ली।#प्रे 1:18; 2 शम 17:23
6महापुरोहितों ने चाँदी के सिक्के उठा कर कहा, “इन्हें खजाने में जमा करना उचित नहीं है, यह तो रक्त की कीमत है।”#मक 12:41 7इसलिए आपस में परामर्श करने के बाद उन्होंने परदेशियों को दफनाने के लिए उन सिक्कों से कुम्हार की जमीन खरीद ली। 8यही कारण है कि वह जमीन आज तक रक्त की जमीन कहलाती है।#प्रे 1:19; जक 11:12-13; यिर 32:6-9 9इस प्रकार नबी यिर्मयाह का यह कथन पूरा हो गया : “उन्होंने चाँदी के तीस सिक्के लिये। वही मूल्य इस्राएल के वंशजों ने उस अमूल्य व्यक्ति के लिए निर्धारित किया था; 10और उन्होंने ये सिक्के कुम्हार की जमीन के लिए दे दिये, जैसा कि प्रभु ने मुझे आदेश दिया था।”
प्राणदण्ड की आज्ञा
11अब येशु राज्यपाल के सामने खड़े थे।#मक 15:2-5; लू 23:2-3; यो 18:29-38 राज्यपाल ने उन से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप स्वयं यह कह रहे हैं।” 12महापुरोहित और धर्मवृद्ध उन पर अभियोग लगाते रहे, परन्तु येशु ने कोई उत्तर नहीं दिया।#मत 26:63; यश 53:7 13इस पर पिलातुस ने येशु से कहा, “क्या तुम नहीं सुनते कि ये तुम्हारे विरुद्ध कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” 14फिर भी येशु ने उत्तर में एक शब्द भी नहीं कहा। इस पर राज्यपाल को बहुत आश्चर्य हुआ।#यो 19:9
15पर्व के ऐसे अवसर पर राज्यपाल लोगों की इच्छानुसार एक बन्दी को रिहा किया करता था।#मक 15:6-15; लू 23:13-25; यो 18:39—19:1 16उस समय बरअब्बा#27:16 पाठान्तर, “येशु-बरअब्बा” नामक एक कुख्यात व्यक्ति बन्दीगृह में था। 17पिलातुस ने इकट्ठे हुए लोगों से कहा, “तुम क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए किसे रिहा करूँ − बरअब्बा को, अथवा येशु को जो मसीह कहलाता है#27:17 पाठांतर, “येशु-बरअब्बा को अथवा मसीह कहलाने वाले येशु को?”?” 18वह जानता था कि उन्होंने येशु को ईष्र्या से पकड़वाया है।#यो 11:47-48; 12:19
19इसके अतिरिक्त जब पिलातुस न्यायासन पर बैठा हुआ था, तब उसकी पत्नी ने यह संदेश भेजा था, “इस धर्मात्मा के मामले में हाथ नहीं डालना, क्योंकि इसी के कारण मुझे आज स्वप्न में बहुत कष्ट हुआ है।”
20इसी बीच महापुरोहितों और धर्मवृद्धों ने लोगों को बहका दिया कि वे बरअब्बा की मुक्ति और येशु की मृत्यु की माँग करें। 21राज्यपाल ने लोगों से फिर पूछा, “तुम क्या चाहते हो? दोनों में से किसे तुम्हारे लिए रिहा करूँ?”
उन्होंने उत्तर दिया, “बरअब्बा को।” 22इस पर पिलातुस ने उन से कहा, “तो, मैं येशु का क्या करूँ, जो मसीह कहलाता है?” सब ने उत्तर दिया, “इसे क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 23पिलातुस ने पूछा, “क्यों? इसने कौन-सा अपराध किया है?” किन्तु वे और भी जोर से चिल्ला उठे, “इसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
24जब पिलातुस ने देखा कि येशु को बचाने में उसे सफलता नहीं मिल रही है, वरन् उपद्रव बढ़ता ही जा रहा है, तो उसने पानी मँगा कर लोगों के सामने हाथ धोए और कहा, “मैं इस मनुष्य के रक्त का दोषी नहीं हूँ। तुम लोग जानो।”#व्य 21:6 25सारी भीड़ ने उत्तर दिया, “इसका रक्त हम पर और हमारी सन्तान पर हो!”#प्रे 5:28
26तब पिलातुस ने उनके लिए बरअब्बा को मुक्त कर दिया और येशु को कोड़े लगवा कर क्रूस पर चढ़ाने के लिए सैनिकों के हवाले कर दिया।
काँटों का मुकुट
27इसके बाद राज्यपाल के सैनिक येशु को राजभवन के अन्दर ले गए और उन्होंने येशु के पास सारा सैन्य-दल एकत्र कर लिया।#मक 15:16-19; यो 19:2-3 28उन्होंने येशु के कपड़े उतार कर उन्हें लाल चोगा पहनाया, 29काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रखा और उनके दाहिने हाथ में सरकण्डा थमा दिया। तब उनके सामने घुटने टेक कर उन्होंने यह कहते हुए उनका उपहास किया, “यहूदियों के राजा, प्रणाम!” 30उन्होंने उन पर थूका और सरकण्डा ले कर उनके सिर पर मारा।#यश 50:6 31इस प्रकार उनका उपहास करने के बाद, उन्होंने येशु का चोगा उतार लिया और उन्हें उनके निजी कपड़े पहना दिये। तत्पश्चात् वे येशु को क्रूस पर चढ़ाने ले चले।#मक 15:21-41; लू 23:26,33-49; यो 19:16-30
क्रूस पर चढ़ाया जाना
32नगर से निकलते समय सैनिकों को शिमोन नामक कुरेने देश का एक निवासी मिला। उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि वह येशु का क्रूस उठा कर ले चले।
33वे उस स्थान पर पहुँचे, जो गुलगुता अर्थात् ‘खोपड़ी’ का स्थान कहलाता है। 34वहाँ लोगों ने येशु को पित्त मिला हुआ दाखरस पीने को दिया। येशु ने उसे चखा, पर उसे पीना न चाहा।#भज 69:21
35सैनिकों ने येशु को क्रूस पर चढ़ाया और चिट्ठी डाल कर उनके वस्त्र आपस में बाँट लिये।#भज 22:18 36इसके बाद वे वहाँ बैठकर उन पर पहरा देने लगे। 37येशु के सिर के ऊपर उनका दोषपत्र लटका दिया गया। वह इस प्रकार था : “यह यहूदियों का राजा येशु है।”
38येशु के साथ ही उन्होंने दो डाकुओं को क्रूस पर चढ़ाया − एक को उनकी दाहिनी ओर और दूसरे को उनकी बायीं ओर।#यश 53:12
अपमान और उपहास
39उधर से आने-जाने वाले लोग येशु की निन्दा करते और सिर हिलाते हुए#भज 22:7; 109:25; प्रव 12:17-18; 13:7 40यह कह रहे थे, “हे मन्दिर ढाने वाले और तीन दिनों में उसे फिर बना देने वाले! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने को बचा और क्रूस से उतर आ”।#मत 26:61; यो 2:19 41इसी तरह शास्त्रियों और धर्मवृद्धों के साथ महापुरोहित भी यह कहते हुए उनका उपहास कर रहे थे, 42“इसने दूसरों को बचाया, किन्तु यह अपने को नहीं बचा सकता। यह तो इस्राएल का राजा है। अब यह क्रूस से उतरे, तो हम इस में विश्वास करेंगे। 43यह परमेश्वर पर निर्भर रहा। यदि परमेश्वर इससे प्रसन्न है, तो अब इसे छुड़ाये; क्योंकि इसने कहा था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’#भज 22:8; प्रज्ञ 2:18-20 ” 44जो डाकू येशु के साथ क्रूस पर चढ़ाए गये थे, वे भी इसी तरह येशु को भला-बुरा कह रहे थे।
येशु की मृत्यु
45दोपहर से लेकर तीन बजे तक समस्त पृथ्वी पर अँधेरा छाया रहा। 46लगभग तीन बजे येशु ने ऊंचे स्वर से पुकारा, “एली! एली! लेमा सबकतानी?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर! हे मेरे परमेश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया है?”#भज 22:1
47यह सुन कर पास खड़े लोगों में से कुछ बोले, “यह नबी एलियाह को पुकार रहा है।” 48उन में से एक तुरन्त दौड़ कर पनसोख्ता#27:48 अथवा ‘स्पंज’ ले आया। उसने उसे अम्लरस#27:48 अथवा ‘सिरका’ में डुबोया और सरकण्डे में लगा कर येशु को पीने को दिया।#भज 69:21 49कुछ लोगों ने कहा, “रहने दो! देखें, एलियाह इसे बचाने आते हैं या नहीं।” 50तब येशु ने फिर ऊंचे स्वर से चिल्ला कर अपना प्राण त्याग दिया।
51उसी समय मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। पृथ्वी काँप उठी। चट्टानें फट गयीं।#नि 26:31; इब्र 10:19-20 52कबरें खुल गयीं और बहुत-से मृत सन्तों के शरीर पुनर्जीवित हो गये। 53वे येशु के पुनरुत्थान के बाद कबरों से निकले और पवित्र नगर जा कर बहुतों को दिखाई दिये।#प्रे 26:23; दान 12:2 54शतपति और उसके साथ येशु पर पहरा देने वाले सैनिक भूकम्प और इन सब घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गये और बोल उठे, “निश्चय ही, यह परमेश्वर का पुत्र था।”
55वहाँ बहुत-सी स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं। वे येशु की सेवा-परिचर्या करते हुए गलील प्रदेश से उनके साथ-साथ आयी थीं।#लू 8:2-3 56उनमें मरियम मगदलेनी, याकूब और यूसुफ की माता मरियम और जबदी के पुत्रों की माता थीं।#मत 20:20
कबर में रखा जाना
57सन्ध्या हो जाने पर अरिमतियाह नगर का एक धनी सज्जन आया।#मक 15:42-47; लू 23:50-55; यो 19:38-42 उसका नाम यूसुफ था। वह स्वयं येशु का शिष्य बन गया था।#नि 34:25 58उसने पिलातुस के पास जाकर येशु का शव#27:58 अथवा ‘शरीर’ माँगा और पिलातुस ने आदेश दिया कि शव उसे सौंप दिया जाए। 59यूसुफ ने शव ले जाकर उसे स्वच्छ मलमल के कफन में लपेटा 60और उस नई कबर में रख दिया, जिसे उसने अपने लिए चट्टान में खुदवाया था। वह कबर के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़का कर चला गया।#यश 53:9 61मरियम मगदलेनी और दूसरी मरियम वहाँ कबर के सामने बैठी हुई थीं।
कबर पर पहरा
62दूसरे दिन अर्थात् शुक्रवार#27:62 शब्दश: “तैयारी के दिन” के बाद विश्राम दिवस पर, महापुरोहित और फरीसी एक साथ पिलातुस के यहाँ गये 63और बोले, “श्रीमान! हमें याद है कि उस धोखेबाज ने अपने जीवनकाल में कहा था कि मैं तीन दिन बाद जी उठूँगा।#मत 27:40; 12:40 64इसलिए तीसरे दिन तक कबर की सुरक्षा का आदेश दिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि उसके शिष्य उसे चुरा कर ले जाएँ और जनता से कहें कि वह मृतकों में से जी उठा है। यह पिछला धोखा तो पहले से भी बुरा होगा।” 65पिलातुस ने कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार हैं। जाओ, और जैसा उचित समझो, सुरक्षा का प्रबन्ध करो।” 66वे चले गये और उन्होंने कबर के मुँह पर रखे पत्थर पर मुहर लगायी और पहरा बैठा कर कबर को सुरक्षित कर दिया।#दान 6:17
वर्तमान में चयनित:
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रोमन राज्यपाल पिलातुस के सामने
1जब प्रात:काल हुआ तब सब महापुरोहितों और समाज के धर्मवृद्धों ने परस्पर परामर्श किया कि येशु को मार डाला जाए।#मक 15:1; लू 22:66; यो 18:28 2उन्होंने येशु को बाँधा और उन्हें ले जा कर राज्यपाल पिलातुस को सौंप दिया।#लू 23:1; यो 18:31-32
यूदस की आत्महत्या
3जब येशु के पकड़वाने वाले यूदस ने देखा कि उन्हें दण्डाज्ञा मिली है, तब उसे पश्चात्ताप हुआ और वह महापुरोहितों और धर्मवृद्धों के पास चाँदी के तीस सिक्के वापस ले आया,#मत 26:15 और बोला, 4“मैंने निर्दोष रक्त का सौदा कर पाप किया है।” उन्होंने उत्तर दिया, “हमें इस से क्या! तुम जानो।” 5इस पर यूदस ने चाँदी के सिक्के मन्दिर में फेंक दिये और वहाँ से चला गया। तब जा कर उसने फांसी लगा ली।#प्रे 1:18; 2 शम 17:23
6महापुरोहितों ने चाँदी के सिक्के उठा कर कहा, “इन्हें खजाने में जमा करना उचित नहीं है, यह तो रक्त की कीमत है।”#मक 12:41 7इसलिए आपस में परामर्श करने के बाद उन्होंने परदेशियों को दफनाने के लिए उन सिक्कों से कुम्हार की जमीन खरीद ली। 8यही कारण है कि वह जमीन आज तक रक्त की जमीन कहलाती है।#प्रे 1:19; जक 11:12-13; यिर 32:6-9 9इस प्रकार नबी यिर्मयाह का यह कथन पूरा हो गया : “उन्होंने चाँदी के तीस सिक्के लिये। वही मूल्य इस्राएल के वंशजों ने उस अमूल्य व्यक्ति के लिए निर्धारित किया था; 10और उन्होंने ये सिक्के कुम्हार की जमीन के लिए दे दिये, जैसा कि प्रभु ने मुझे आदेश दिया था।”
प्राणदण्ड की आज्ञा
11अब येशु राज्यपाल के सामने खड़े थे।#मक 15:2-5; लू 23:2-3; यो 18:29-38 राज्यपाल ने उन से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप स्वयं यह कह रहे हैं।” 12महापुरोहित और धर्मवृद्ध उन पर अभियोग लगाते रहे, परन्तु येशु ने कोई उत्तर नहीं दिया।#मत 26:63; यश 53:7 13इस पर पिलातुस ने येशु से कहा, “क्या तुम नहीं सुनते कि ये तुम्हारे विरुद्ध कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” 14फिर भी येशु ने उत्तर में एक शब्द भी नहीं कहा। इस पर राज्यपाल को बहुत आश्चर्य हुआ।#यो 19:9
15पर्व के ऐसे अवसर पर राज्यपाल लोगों की इच्छानुसार एक बन्दी को रिहा किया करता था।#मक 15:6-15; लू 23:13-25; यो 18:39—19:1 16उस समय बरअब्बा#27:16 पाठान्तर, “येशु-बरअब्बा” नामक एक कुख्यात व्यक्ति बन्दीगृह में था। 17पिलातुस ने इकट्ठे हुए लोगों से कहा, “तुम क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए किसे रिहा करूँ − बरअब्बा को, अथवा येशु को जो मसीह कहलाता है#27:17 पाठांतर, “येशु-बरअब्बा को अथवा मसीह कहलाने वाले येशु को?”?” 18वह जानता था कि उन्होंने येशु को ईष्र्या से पकड़वाया है।#यो 11:47-48; 12:19
19इसके अतिरिक्त जब पिलातुस न्यायासन पर बैठा हुआ था, तब उसकी पत्नी ने यह संदेश भेजा था, “इस धर्मात्मा के मामले में हाथ नहीं डालना, क्योंकि इसी के कारण मुझे आज स्वप्न में बहुत कष्ट हुआ है।”
20इसी बीच महापुरोहितों और धर्मवृद्धों ने लोगों को बहका दिया कि वे बरअब्बा की मुक्ति और येशु की मृत्यु की माँग करें। 21राज्यपाल ने लोगों से फिर पूछा, “तुम क्या चाहते हो? दोनों में से किसे तुम्हारे लिए रिहा करूँ?”
उन्होंने उत्तर दिया, “बरअब्बा को।” 22इस पर पिलातुस ने उन से कहा, “तो, मैं येशु का क्या करूँ, जो मसीह कहलाता है?” सब ने उत्तर दिया, “इसे क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 23पिलातुस ने पूछा, “क्यों? इसने कौन-सा अपराध किया है?” किन्तु वे और भी जोर से चिल्ला उठे, “इसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
24जब पिलातुस ने देखा कि येशु को बचाने में उसे सफलता नहीं मिल रही है, वरन् उपद्रव बढ़ता ही जा रहा है, तो उसने पानी मँगा कर लोगों के सामने हाथ धोए और कहा, “मैं इस मनुष्य के रक्त का दोषी नहीं हूँ। तुम लोग जानो।”#व्य 21:6 25सारी भीड़ ने उत्तर दिया, “इसका रक्त हम पर और हमारी सन्तान पर हो!”#प्रे 5:28
26तब पिलातुस ने उनके लिए बरअब्बा को मुक्त कर दिया और येशु को कोड़े लगवा कर क्रूस पर चढ़ाने के लिए सैनिकों के हवाले कर दिया।
काँटों का मुकुट
27इसके बाद राज्यपाल के सैनिक येशु को राजभवन के अन्दर ले गए और उन्होंने येशु के पास सारा सैन्य-दल एकत्र कर लिया।#मक 15:16-19; यो 19:2-3 28उन्होंने येशु के कपड़े उतार कर उन्हें लाल चोगा पहनाया, 29काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रखा और उनके दाहिने हाथ में सरकण्डा थमा दिया। तब उनके सामने घुटने टेक कर उन्होंने यह कहते हुए उनका उपहास किया, “यहूदियों के राजा, प्रणाम!” 30उन्होंने उन पर थूका और सरकण्डा ले कर उनके सिर पर मारा।#यश 50:6 31इस प्रकार उनका उपहास करने के बाद, उन्होंने येशु का चोगा उतार लिया और उन्हें उनके निजी कपड़े पहना दिये। तत्पश्चात् वे येशु को क्रूस पर चढ़ाने ले चले।#मक 15:21-41; लू 23:26,33-49; यो 19:16-30
क्रूस पर चढ़ाया जाना
32नगर से निकलते समय सैनिकों को शिमोन नामक कुरेने देश का एक निवासी मिला। उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि वह येशु का क्रूस उठा कर ले चले।
33वे उस स्थान पर पहुँचे, जो गुलगुता अर्थात् ‘खोपड़ी’ का स्थान कहलाता है। 34वहाँ लोगों ने येशु को पित्त मिला हुआ दाखरस पीने को दिया। येशु ने उसे चखा, पर उसे पीना न चाहा।#भज 69:21
35सैनिकों ने येशु को क्रूस पर चढ़ाया और चिट्ठी डाल कर उनके वस्त्र आपस में बाँट लिये।#भज 22:18 36इसके बाद वे वहाँ बैठकर उन पर पहरा देने लगे। 37येशु के सिर के ऊपर उनका दोषपत्र लटका दिया गया। वह इस प्रकार था : “यह यहूदियों का राजा येशु है।”
38येशु के साथ ही उन्होंने दो डाकुओं को क्रूस पर चढ़ाया − एक को उनकी दाहिनी ओर और दूसरे को उनकी बायीं ओर।#यश 53:12
अपमान और उपहास
39उधर से आने-जाने वाले लोग येशु की निन्दा करते और सिर हिलाते हुए#भज 22:7; 109:25; प्रव 12:17-18; 13:7 40यह कह रहे थे, “हे मन्दिर ढाने वाले और तीन दिनों में उसे फिर बना देने वाले! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने को बचा और क्रूस से उतर आ”।#मत 26:61; यो 2:19 41इसी तरह शास्त्रियों और धर्मवृद्धों के साथ महापुरोहित भी यह कहते हुए उनका उपहास कर रहे थे, 42“इसने दूसरों को बचाया, किन्तु यह अपने को नहीं बचा सकता। यह तो इस्राएल का राजा है। अब यह क्रूस से उतरे, तो हम इस में विश्वास करेंगे। 43यह परमेश्वर पर निर्भर रहा। यदि परमेश्वर इससे प्रसन्न है, तो अब इसे छुड़ाये; क्योंकि इसने कहा था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’#भज 22:8; प्रज्ञ 2:18-20 ” 44जो डाकू येशु के साथ क्रूस पर चढ़ाए गये थे, वे भी इसी तरह येशु को भला-बुरा कह रहे थे।
येशु की मृत्यु
45दोपहर से लेकर तीन बजे तक समस्त पृथ्वी पर अँधेरा छाया रहा। 46लगभग तीन बजे येशु ने ऊंचे स्वर से पुकारा, “एली! एली! लेमा सबकतानी?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर! हे मेरे परमेश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया है?”#भज 22:1
47यह सुन कर पास खड़े लोगों में से कुछ बोले, “यह नबी एलियाह को पुकार रहा है।” 48उन में से एक तुरन्त दौड़ कर पनसोख्ता#27:48 अथवा ‘स्पंज’ ले आया। उसने उसे अम्लरस#27:48 अथवा ‘सिरका’ में डुबोया और सरकण्डे में लगा कर येशु को पीने को दिया।#भज 69:21 49कुछ लोगों ने कहा, “रहने दो! देखें, एलियाह इसे बचाने आते हैं या नहीं।” 50तब येशु ने फिर ऊंचे स्वर से चिल्ला कर अपना प्राण त्याग दिया।
51उसी समय मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। पृथ्वी काँप उठी। चट्टानें फट गयीं।#नि 26:31; इब्र 10:19-20 52कबरें खुल गयीं और बहुत-से मृत सन्तों के शरीर पुनर्जीवित हो गये। 53वे येशु के पुनरुत्थान के बाद कबरों से निकले और पवित्र नगर जा कर बहुतों को दिखाई दिये।#प्रे 26:23; दान 12:2 54शतपति और उसके साथ येशु पर पहरा देने वाले सैनिक भूकम्प और इन सब घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गये और बोल उठे, “निश्चय ही, यह परमेश्वर का पुत्र था।”
55वहाँ बहुत-सी स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं। वे येशु की सेवा-परिचर्या करते हुए गलील प्रदेश से उनके साथ-साथ आयी थीं।#लू 8:2-3 56उनमें मरियम मगदलेनी, याकूब और यूसुफ की माता मरियम और जबदी के पुत्रों की माता थीं।#मत 20:20
कबर में रखा जाना
57सन्ध्या हो जाने पर अरिमतियाह नगर का एक धनी सज्जन आया।#मक 15:42-47; लू 23:50-55; यो 19:38-42 उसका नाम यूसुफ था। वह स्वयं येशु का शिष्य बन गया था।#नि 34:25 58उसने पिलातुस के पास जाकर येशु का शव#27:58 अथवा ‘शरीर’ माँगा और पिलातुस ने आदेश दिया कि शव उसे सौंप दिया जाए। 59यूसुफ ने शव ले जाकर उसे स्वच्छ मलमल के कफन में लपेटा 60और उस नई कबर में रख दिया, जिसे उसने अपने लिए चट्टान में खुदवाया था। वह कबर के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़का कर चला गया।#यश 53:9 61मरियम मगदलेनी और दूसरी मरियम वहाँ कबर के सामने बैठी हुई थीं।
कबर पर पहरा
62दूसरे दिन अर्थात् शुक्रवार#27:62 शब्दश: “तैयारी के दिन” के बाद विश्राम दिवस पर, महापुरोहित और फरीसी एक साथ पिलातुस के यहाँ गये 63और बोले, “श्रीमान! हमें याद है कि उस धोखेबाज ने अपने जीवनकाल में कहा था कि मैं तीन दिन बाद जी उठूँगा।#मत 27:40; 12:40 64इसलिए तीसरे दिन तक कबर की सुरक्षा का आदेश दिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि उसके शिष्य उसे चुरा कर ले जाएँ और जनता से कहें कि वह मृतकों में से जी उठा है। यह पिछला धोखा तो पहले से भी बुरा होगा।” 65पिलातुस ने कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार हैं। जाओ, और जैसा उचित समझो, सुरक्षा का प्रबन्ध करो।” 66वे चले गये और उन्होंने कबर के मुँह पर रखे पत्थर पर मुहर लगायी और पहरा बैठा कर कबर को सुरक्षित कर दिया।#दान 6:17
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