मारकुस 10

10
तलाक का प्रश्‍न
1वहाँ से विदा हो कर येशु यहूदा प्रदेश के सीमा-क्षेत्र और यर्दन नदी के उस पार के प्रदेश में आए।#मत 19:1-9 एक विशाल जनसमूह फिर उनके पास एकत्र हो गया और उन्‍होंने अपनी आदत के अनुसार लोगों को फिर शिक्षा दी।#मक 9:33
2फरीसी सम्‍प्रदाय के सदस्‍य येशु के पास आए और उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्‍य से उन्‍होंने यह प्रश्‍न किया, “क्‍या अपनी पत्‍नी का परित्‍याग करना पुरुष के लिए उचित है?” 3येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्‍हें क्‍या आदेश दिया है?” 4उन्‍होंने कहा, “मूसा ने तो त्‍यागपत्र लिख कर पत्‍नी का परित्‍याग करने की अनुमति दी है।”#व्‍य 24:1; मत 5:31-32 5येशु ने उन से कहा, “उन्‍होंने तुम्‍हारे हृदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। 6किन्‍तु सृष्‍टि के आरम्‍भ ही से परमेश्‍वर ने उन्‍हें नर और नारी बनाया;#उत 1:27 7इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्‍नी के साथ ही रहेगा और वे दोनों एक शरीर होंगे।#उत 2:24 8इस प्रकार अब वे दो नहीं, बल्‍कि एक शरीर हैं। 9इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्‍य अलग नहीं करे।”
10शिष्‍यों ने, घर पहुँच कर, इस सम्‍बन्‍ध में येशु से फिर प्रश्‍न किया 11और उन्‍होंने यह उत्तर दिया, “जो अपनी पत्‍नी का परित्‍याग करता और किसी दूसरी स्‍त्री से विवाह करता है, वह पहली के विरुद्ध व्‍यभिचार करता है।#लू 16:18 12और यदि पत्‍नी अपने पति का परित्‍याग करती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह भी व्‍यभिचार करती है।”
बच्‍चों को आशीर्वाद
13कुछ लोग येशु के पास बच्‍चों को लाए कि वह उन्‍हें स्‍पर्श करें; परन्‍तु शिष्‍यों ने लोगों को डाँटा।#मत 19:13-15; लू 18:15-17 14येशु यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्‍होंने कहा, “बच्‍चों को मेरे पास आने दो। उन्‍हें मत रोको, क्‍योंकि परमेश्‍वर का राज्‍य उन-जैसे लोगों का ही है। 15मैं तुम से सच कहता हूँ; जो मनुष्‍य छोटे बालक की तरह परमेश्‍वर का राज्‍य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।”#मत 18:3 16तब येशु ने बच्‍चों को गोद में लिया और उन पर हाथ रख कर उन्‍हें आशीर्वाद दिया।#मक 9:36
धनी युवक
17येशु यात्रा पर निकल ही रहे थे कि एक व्यक्‍ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, “भले गुरु! शाश्‍वत जीवन का उत्तराधिकारी बनने के लिए मुझे क्‍या करना चाहिए?”#मत 19:16-30; लू 18:18-30 18येशु ने उससे कहा, “मुझे भला क्‍यों कहते हो? परमेश्‍वर को छोड़ और कोई भला नहीं। 19तुम आज्ञाओं को जानते हो : हत्‍या मत करो, व्‍यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता पिता का आदर करो।”#नि 20:12-17; व्‍य 5:16-20; 24:14
20उसने उत्तर दिया, “गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ।” 21येशु ने उसे ध्‍यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्‍होंने उससे कहा, “तुम में एक बात की कमी है। जाओ; जो तुम्‍हारा है, उसे बेच कर गरीबों को दे दो और स्‍वर्ग में तुम्‍हें धन मिलेगा। तब आ कर मेरा अनुसरण करो।”#मक 8:34; मत 10:38 22यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया और वह उदास हो कर चला गया, क्‍योंकि उसके पास बहुत धन-सम्‍पत्ति थी।
धन के कारण विघ्‍न-बाधा
23येशु ने चारों ओर दृष्‍टि दौड़ायी और अपने शिष्‍यों से कहा, “धनवानों के लिए परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!” 24शिष्‍य यह बात सुन कर चकित रह गये। परन्‍तु येशु ने उनसे फिर कहा, “बच्‍चो! परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश करना कितना कठिन है!#भज 62:10; 1 तिम 6:17 25परमेश्‍वर के राज्‍य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से होकर निकलना अधिक सरल है।” 26शिष्‍य और भी विस्‍मित हो गये और एक-दूसरे से बोले, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?” 27येशु ने उन्‍हें एकटक देखा और कहा, “मनुष्‍यों के लिए तो यह असम्‍भव है, किन्‍तु परमेश्‍वर के लिए नहीं; क्‍योंकि परमेश्‍वर के लिए सब कुछ सम्‍भव है।”#उत 18:14; अय्‍य 42:2
स्‍वैच्‍छिक निर्धनता का पुरस्‍कार
28पतरस बोल उठा, “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़कर आपके अनुयायी बन गये हैं।” 29येशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ : ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और शुभ समाचार के लिए घर, भाइयों, बहिनों, माता, पिता, बाल-बच्‍चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो 30और जो अब, इस लोक में सौ गुना न पाए−घर, भाई, बहिनें, माताएँ, बाल-बच्‍चे और खेत, साथ ही साथ अत्‍याचार और आनेवाले युग में शाश्‍वत जीवन। 31परन्‍तु अनेक जो प्रथम हैं, वे अंतिम हो जाएँगे और जो अंतिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे।”
दु:खभोग और पुनरुत्‍थान की तीसरी भविष्‍यवाणी
32वे यरूशलेम के मार्ग पर जा रहे थे। येशु शिष्‍यों के आगे-आगे चल रहे थे।#मत 20:17-19; लू 18:31-34 शिष्‍य बहुत घबराए हुए थे और पीछे आने वाले लोग भयभीत थे। येशु बारहों को फिर अलग ले जा कर उन्‍हें बताने लगे कि मुझ पर क्‍या-क्‍या बीतेगी :#यो 11:16,55; मक 9:31 33“देखो, हम यरूशलेम जा रहे हैं। मानव-पुत्र महापुरोहितों और शास्‍त्रियों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। वे उसे प्राणदण्‍ड के योग्‍य ठहराएँगे और अन्‍य-जातियों के हाथ में सौंप देंगे। 34वे उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे; पर वह तीन दिन के बाद फिर जी उठेगा।”
याकूब और योहन का निवेदन
35जबदी के पुत्र याकूब और योहन येशु के पास आए और उनसे बोले, “गुरुवर, हम चाहते हैं कि जो कुछ हम आपसे माँगें, आप उसे पूरा करें।”#मत 20:20-28 36येशु ने उत्तर दिया, “तुम लोग क्‍या चाहते हो? मैं तुम्‍हारे लिए क्‍या करूँ?” 37उन्‍होंने कहा, “जब आपकी महिमा हो, तब हम दोनों को अपने साथ बैठने दीजिए−एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ।” 38येशु ने उन से कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम क्‍या माँग रहे हो। जो प्‍याला मुझे पीना है, क्‍या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्‍मा मुझे लेना है, क्‍या तुम उसे ले सकते हो?”#मक 14:36; लू 12:50; रोम 6:3 39उन्‍होंने उत्तर दिया, “हाँ, हम ले सकते हैं।” इस पर येशु ने कहा, “जो प्‍याला मुझे पीना है, उसे तुम पियोगे और जो बपतिस्‍मा मुझे लेना है, उसे तुम लोगे।#प्रे 12:2; प्रक 1:9 40किन्‍तु तुम्‍हें अपने दाएँ या बाएँ बैठाना मेरा काम नहीं है। ये स्‍थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए वे तैयार किए गये हैं।”
सेवाभाव का महत्व
41जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ तो वे याकूब और योहन पर क्रुद्ध हो गये। 42येशु ने शिष्‍यों को अपने पास बुला कर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और उनके सत्ता-धारी उन पर अधिकार जताते हैं।#लू 22:25-27 43किन्‍तु तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्‍हारा सेवक बने#मक 9:35 44और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने; 45क्‍योंकि मानव-पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्‍कि सेवा करने और बहुतों के बदले उनकी मुक्‍ति के मूल्‍य में अपने प्राण देने आया है।”
अंधे बरतिमाई को दृष्‍टिदान
46वे यरीहो नगर पहुँचे। जब येशु अपने शिष्‍यों तथा एक विशाल जनसमूह के साथ यरीहो से निकल रहे थे, तब तिमाई का पुत्र बरतिमाई, एक अन्‍धा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा हुआ था।#मत 20:29-34; लू 18:35-43 47जब उसने सुना कि यह नासरत-निवासी येशु हैं, तो वह पुकार-पुकार कर कहने लगा, “हे येशु, दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए!” 48बहुत-से लोगों ने उसे चुप रहने के लिए डाँटा; किन्‍तु वह और भी जोर से पुकारने लगा, “हे दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए।” 49येशु रुक गए। उन्‍होंने कहा, “उसे बुलाओ।” लोगों ने अन्‍धे को बुलाया और कहा, “धैर्य रखो। उठो! वह तुम्‍हें बुला रहे हैं।” 50वह अपनी चादर फेंक कर उछल पड़ा और येशु के पास आया। 51येशु ने उससे पूछा, “क्‍या चाहते हो? मैं तुम्‍हारे लिए क्‍या करूँ?” अन्‍धे ने उत्तर दिया, “गुरुवर! मैं फिर देखने लगूं”। 52येशु ने उससे कहा, “जाओ तुम्‍हारे विश्‍वास ने तुम्‍हें स्‍वस्‍थ कर दिया।” उसी क्षण वह देखने लगा और मार्ग में येशु के पीछे हो लिया।

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