नीतिवचन 2

2
बुद्धि का पुरस्‍कार
1प्रिय शिष्‍य!#2:1 शब्‍दश: “मेरे पुत्र” यदि तू मेरा कहना माने,
और मेरी आज्ञाओं को निधि के सदृश
अपने हृदय में रखे;
2यदि तू बुद्धि की बात पर कान लगाए,
और समझ की बात पर हृदय,
3यदि तू अन्‍तर्दृ‌ष्‍टि प्राप्‍त करने के लिए पुकारे,
यदि तू समझ को बुलाए,
4यदि तू चांदी की खान के सदृश उसको खोजे,
और गुप्‍त खजाने के समान उसको ढूंढ़ता
रहे, #मत 13:44
5तो तू परमेश्‍वर के प्रति भय-भाव को समझ
सकेगा,
और तू परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्‍त करेगा।
6प्रभु ही बुद्धि देता है;
उसके मुख से ही ज्ञान और समझ की बातें
निकलती हैं। #यो 6:45; प्रज्ञ 9:10; प्रव 1:1
7वह निष्‍कपट व्यक्‍ति के लिए ज्ञान संचित
करता है;
जिनका आचरण खरा है,
उनकी वह ढाल के सदृश रक्षा करता है।
8जो न्‍याय के पथ पर चलते हैं, उनका वह
रक्षक है
और वह अपने भक्‍तों के मार्ग की रक्षा
करता है।
9प्रिय शिष्‍य, बुद्धि ग्रहण करने से तू धर्म और
न्‍याय को समझ पाएगा,
निष्‍कपट आचरण तथा सन्‍मार्ग को पहचान
पाएगा,
10क्‍योंकि बुद्धि तेरे हृदय में प्रवेश करेगी,
ज्ञान तेरे प्राण को सुख प्रदान करेगा।
11विवेक तेरी निगरानी करेगा,
और समझ तेरी रक्षा करेगी।
12ये वरदान दुर्जनों के मार्ग से तुझे बचाएंगे,
वे कुटिल बातें करने वाले लोगों से
तेरी रक्षा करेंगे।
13दुर्जन धर्म का मार्ग छोड़कर
अन्‍धकार के मार्ग पर चलते हैं।
14वे दुष्‍कर्म से हर्षित होते हैं;
उन्‍हें अनिष्‍ट और अहित के कामों में
मजा आता है।
15वे कुटिल मार्ग के अनुयायी हैं,
वे पथभ्रष्‍ट लोग हैं।
16बुद्धि ग्रहण करने से
तू परायी स्‍त्री से बचा रहेगा।
वह मीठी-मीठी बातें बोलती है;
17वह अपनी युवा अवस्‍था के साथी को छोड़
देती है;
वह परमेश्‍वर के विधान को भूल जाती है।
18उसका घर विनाश के गर्त्त में समा जाता है,
उसकी गलियां अधोलोक की ओर जाती हैं।
19जो उसके पास जाता है, वह लौटकर नहीं
आता;
और न वह पुन: जीवन का मार्ग पाता है।
20अत: प्रिय शिष्‍य,
तू सज्‍जनों के मार्ग पर चल,
तू धार्मिकों के पथ को पकड़े रह।
21क्‍योंकि निष्‍कपट व्यक्‍ति ही देश में बसे
रहेंगे,
निर्दोष मनुष्‍य ही उसमें निवास करते रहेंगे।#भज 37:9
22किन्‍तु दुर्जन देश से निकाल दिए जाएंगे,
धर्महीन व्यक्‍तियों का समूल नाश हो
जाएगा।

वर्तमान में चयनित:

नीतिवचन 2: HINCLBSI

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